50% टैरिफ हटाने की मांग: अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डी.सी. में व्यापार और विदेश नीति को लेकर एक तीखी बहस छिड़ चुकी है।
अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ (50% तक आयात शुल्क) के खिलाफ तीन सांसदों ने एक प्रस्ताव पेश कर विरोध दर्ज कराया है।
इन सांसदों का तर्क है कि यह कदम न केवल अवैध और नियोजन की सीमा के बाहर है, बल्कि अमेरिका-भारत के रणनीतिक और आर्थिक रिश्तों को भी भारी नुकसान पहुँचा रहा है।
क्या है आखिर टैरिफ
50% टैरिफ हटाने की मांग: अगस्त 2025 में ट्रंप प्रशासन ने भारतीय वस्तुओं पर 25% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था।
कुछ ही दिनों बाद, भारत द्वारा रूस से तेल आयात जारी रखने के हवाले से उस पर अतिरिक्त 25% “सेकेंडरी टैरिफ” की घोषणा की गई। इन दोनों शुल्कों को जोड़ने से भारतीय निर्यातकों पर कुल 50% टैक्स लग गया।
इस कदम को लागू करने के लिए ट्रंप प्रशासन ने International Emergency Economic Powers Act का सहारा लिया।
यह एक ऐसा कानून है जो राष्ट्रपति को वैश्विक ‘राष्ट्रीय आपातकालीन’ स्थिति घोषित कर किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की शक्तियाँ देता है।
टैक्स के समर्थक इसे “अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों की रक्षा” वाला कदम बताते हैं, लेकिन आलोचक कहते हैं कि यह सामान्य अमेरिकी उपभोक्ताओं पर भी टैक्स का बोझ डालता है और आपूर्ति-श्रृंखला में बाधा पैदा करता है।
अमेरिकी सांसदों ने किया विरोध
50% टैरिफ हटाने की मांग: प्रतिरोध की अगुवाई डेबोरा रॉस, मार्क वेसी और राजा कृष्णमूर्ति—इन तीन प्रभावशाली डेमोक्रेटिक सांसदों ने की है।
डेबोरा रॉस ने बताया कि भारतीय कंपनियों ने नॉर्थ कैरोलिना में भारी निवेश किया है और हजारों लोगों को रोजगार दिया है। उनका कहना था कि ये टैरिफ उस मजबूत आर्थिक रिश्ते को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
मार्क वेसी ने कहा कि ये गैर-कानूनी शुल्क नॉर्थ टेक्सास के आम लोगों पर महँगाई का बोझ डाल रहे हैं। उन्होंने याद दिलाया कि भारत अमेरिका का एक बेहद अहम दोस्त और आर्थिक साझेदार है।
राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि भारतीय निर्यात पर लगाए गए ये शुल्क आपूर्ति-श्रृंखला को बाधित कर रहे हैं, अमेरिकी वर्कर्स और उपभोक्ताओं को नुकसान पहुँचा रहे हैं और अमेरिका-भारत के साझा सुरक्षा व आर्थिक हितों को कमजोर कर रहे हैं।
इन सांसदों ने अपने प्रस्ताव में मांग की है कि राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा को रद्द किया जाए, भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ समाप्त किया जाए और व्यापार नीति तय करने की शक्ति पूरी तरह कांग्रेस को सौंपी जाए।
सांसदों द्वारा पहले भी की गई थी अपील
50% टैरिफ हटाने की मांग: इससे पहले अक्टूबर 2025 में भी सांसदों के एक बड़े समूह ने ट्रंप प्रशासन को पत्र लिखकर इस नीति को वापस लेने और अमेरिका-भारत रिश्तों के पुनर्मूल्यांकन की अपील की थी।
संसद के कुछ सदस्यों का कहना है कि यह टैरिफ न सिर्फ भारत के साथ तनाव बढ़ा रहा है, बल्कि चीन और रूस जैसे देशों की ओर भारत के झुकाव को भी बढ़ावा दे सकता है, जिससे Indo-Pacific रणनीति को नुकसान पहुँच सकता है।
उन्होंने इस टैरिफ को “बिना सोचे-समझे की गई गलती” बताया था और तुरंत बातचीत शुरू करने की मांग की थी।
भारत-अमेरिका रिश्तों पर प्रभाव
50% टैरिफ हटाने की मांग: भारत और अमेरिका पिछले एक दशक में रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग और तकनीकी निवेश जैसे कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर सहयोग बढ़ा रहे हैं।
ऐसे में इतने भारी टैरिफ का असर न सिर्फ आर्थिक साझेदारी पर पड़ेगा, बल्कि राजनीतिक विश्वास पर भी सवाल खड़े करेगा।
भारतीय वस्तुओं पर 50% टैक्स का सीधा असर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और ज्वैलरी जैसे निर्यात क्षेत्रों पर पड़ रहा है, जिससे अमेरिकी बाजार में इनकी प्रतिस्पर्धा सीमित होती जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को गलत संदेश जा रहा है।
यह मामला साफ़ करता है कि अर्थव्यवस्था और दोस्ती—दोनों के बीच संतुलन बनाना आज के राजनीतिक नेतृत्व के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बन चुका है।

