Pankaj Udhas: 2024 में, भारत सरकार ने ग़ज़ल गायकी के दिग्गज श्री पंकज उदास को मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया। यह न केवल उनके असाधारण संगीत योगदान की स्वीकृति थी, बल्कि उनके जीवन भर की मानवीय सेवाओं का भी सम्मान था।
‘चिट्ठी आई है’ से लेकर ‘और आहिस्ता कीजिए बातें’ तक, उन्होंने ग़ज़ल को सिर्फ एक संगीत विधा नहीं, बल्कि जन-जन की आत्मा का स्वर बना दिया।
Pankaj Udhas: शुरुआती जीवन: कविता और सुरों का संगम
17 मई 1951 को गुजरात के जेतपुर में जन्मे श्री पंकज उदास का बचपन काव्य और संगीत के वातावरण में बीता।
उन्होंने शास्त्रीय संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली, लेकिन उनका समर्पण और सुरों के प्रति प्रेम उन्हें भारतीय संगीत जगत की ऊँचाइयों तक ले गया।
उनके बड़े भाई मनहर उदास भी एक प्रसिद्ध गायक थे, और परिवार का यह सांगीतिक वातावरण ही पंकजजी की प्रेरणा बना।
Pankaj Udhas: ग़ज़ल को जनमानस से जोड़ने वाली आवाज़
Pankaj Udhas: 1986 की फिल्म नाम का गीत ‘चिट्ठी आई है’ उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट बना, जिसने उन्हें हर दिल अज़ीज़ बना दिया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक ‘घुंघरू टूट गए’, ‘जीएँ तो जीएँ कैसे’, और ‘चांदी जैसा रंग है तेरा’ जैसी ग़ज़लों से श्रोताओं को सम्मोहित कर दिया।
उनकी ग़ज़लें केवल रचनाएँ नहीं थीं — वे भावना, प्रेम, पीड़ा और उम्मीद का संगम थीं, जो हर वर्ग के श्रोता को छू जाती थीं।
Pankaj Udhas: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज़
Pankaj Udhas: श्री उधास भारतीय ग़ज़ल को वैश्विक मंचों तक ले गए। उन्होंने रॉयल अल्बर्ट हॉल (लंदन), मैडिसन स्क्वेयर गार्डन (न्यूयॉर्क), सिडनी ओपेरा हाउस, और O2 एरीना जैसे प्रतिष्ठित स्थानों पर प्रस्तुति दी।
उनके कार्यक्रम सिर्फ संगीत के आयोजन नहीं थे — वे आत्मिक अनुभव होते थे जहाँ लोग सुरों के माध्यम से जुड़ते थे।
2022 में उन्होंने सिडनी ओपेरा हाउस में अपनी अंतिम ग़ज़ल एल्बम ‘Forever Ghalib’ जारी की, जो दर्शकों के लिए एक भावनात्मक विदाई बन गई।
समाजसेवा: सुरों के साथ सेवा का संगम
Pankaj Udhas: संगीत के साथ-साथ श्री उधास ने मानवीय कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2002 में उन्होंने ‘ख़ज़ाना — अ फेस्टिवल ऑफ ग़ज़ल्स’ की शुरुआत की, जो थैलेसीमिया और कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए समर्पित था।
वे Parents Association Thalassemic Unit Trust (PATUT) के 40 वर्षों तक अध्यक्ष रहे और बच्चों के लिए 740 से अधिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट की व्यवस्था करवाई।
Cancer Patients Aid Association (CPAA) के साथ उनका जुड़ाव भी लंबे समय तक रहा।
सम्मान और विरासत
श्री उधास को अपने जीवनकाल में अनेक प्रतिष्ठि सम्मानों से नवाज़ा गया, जिनमें शामिल हैं:
2024: पद्म भूषण (मरणोपरांत)
1985: के.एल. सहगल अवार्ड (सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल गायक)
1996: इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी पुरस्कार
2003: एमटीवी इमीज़ अवार्ड (सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल एल्बम)
2006: पद्मश्री
2023: मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार एवं संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
अंतिम अलविदा
26 फ़रवरी 2024 को, श्री पंकज उधास का निधन हो गया, लेकिन उनकी आवाज़ और उनके द्वारा छोड़ी गई मानवीय विरासत अनगिनत दिलों में गूंजती रहेगी। वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने न केवल ग़ज़ल को जीवित रखा, बल्कि उसे एक भावनात्मक आंदोलन बना दिया।