बिहार में विधानसभा के मतदान अक्टूबर-नवम्बर के दौरान प्रस्तावित हैं। परन्तु, चुनावी घंटियाँ बजने से कई माह पूर्व ही प्रदेश में धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियाँ प्रचंड हो उठी हैं। कहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन परस्पर शक्ति प्रदर्शन में व्यस्त दिखाई देते हैं तो अन्यत्र उनके स्वयं के सहयोगी दल आपस में रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता करते हुए अपना विधायी प्रतिनिधित्व बढ़ाने हेतु आतुर प्रतीत होते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में भाजपा-जदयू के बीच खींचतान और राजद-कांग्रेस के मध्य संघर्ष के बीच रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जन सुराज इन सभी के सुनियोजित कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न कर रही है।
एक ओर जहाँ सेकुलर और सामाजिक न्याय के मतदाताओं का विभाजन तय प्रतीत होता है, वहीं हिन्दुत्व की नवीन जनलहर यहाँ भी उदित होती दिखाई दे रही है। इससे जदयू के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थोड़ा, किंतु पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और उनके अनुयायी अधिक विचलित हैं। इसी क्रम में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री जब अपने हिन्दू राष्ट्र के अभियान के साथ बिहार पधारे, तो बहुत कुछ बदल गया। क्योंकि उनकी आकर्षक आध्यात्मिक शैली बिहारवासियों पर अपनी अमिट छाप अवश्य छोड़ेगी।
इधर, सरसंघचालक मोहन भागवत सुपौल में और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर भी पटना में उपस्थित हैं। इससे धीरेंद्र शास्त्री के गोपालगंज में पंचदिवसीय हनुमत कथा का वातावरण निर्मित हो चुका है। साथ ही, बिहार में हिन्दुत्व के प्रसार से राजनीतिक संगठनों की व्याकुलता भी बढ़ी हुई है। हालाँकि, अपने हिन्दुत्व का शंखनाद करते हुए बागेश्वरधाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री ने कहा है कि वह किसी पार्टी के प्रचारक नहीं अपितु हिन्दू धर्म के चिंतक हैं।
धीरेन्द्र शास्त्री का हिन्दुत्व बिहार को भा रहा
पंडित शास्त्री का यह कहना कि वह अब हिन्दुओं को झुकने नहीं देंगे, हिन्दुओं की जनसंख्या में कमी नहीं आने देंगे, भारत के पहले से ही अनेक खंडन हो चुके हैं, अतः अब भारत के और विभाजन नहीं होने देंगे, को सुनकर हिन्दू प्रफुल्लित हैं। साथ ही, पंडित शास्त्री ने प्रश्नात्मक स्वर में यह पूछकर अपना धार्मिक एजेंडा स्पष्ट कर दिया है कि ईसाइयों के हितैषी 95 राष्ट्र हैं, मुसलमानों के हितैषी 65 राष्ट्र हैं, परंतु हिन्दुओं का हितैषी कौन सा राष्ट्र है?

उन्होंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए आगे कहा कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम इत्यादि देशों में जो 150 करोड़ हिन्दू हैं, जो विश्व की तृतीय सर्वाधिक बड़ी धार्मिक जनसंख्या है, उनका हितैषी तो अखंड भारत के ही राष्ट्रों को होना चाहिए, किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है। यदि ये ऐसा नहीं करेंगे तो हम स्पष्ट रूप से उनसे हिन्दुत्व से संबंधित ये कार्य करवाएंगे, परंतु हिन्दुओं का अहित नहीं होने देंगे।
उन्होंने निर्भीक भाव से कहा कि हम हिन्दुओं के लिए ही जिएंगे और हिन्दुओं के लिए ही मरेंगे। इसीलिए हम समग्र भारत में ही नहीं, अपितु संपूर्ण विश्व में भ्रमण कर हिन्दुत्व का संदेश प्रसारित कर रहे हैं। मुझे बिहार के निवासियों से अधिक अपेक्षाएँ हैं। हिन्दू राष्ट्र की सशक्त ध्वनि इसी क्रांतिकारी भूमि से पैदा होगी।
स्वाभाविक है कि बिहार में बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र शास्त्री का एक धार्मिक नेतृत्वकर्ता का रूप दिखा। इससे पूर्व वह ओडिशा, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों को भी भारतीयता के संदर्भ में जागृत करते आ रहे हैं। पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने आगे कहा कि जीवन कितना भी अच्छा हो, यदि उसमें भक्ति नहीं हो तो वह निरर्थक है। जीवन में भक्त और भक्ति एक दूसरे के बिना सफलता की कामना संभव नहीं है। अतः पुरुषार्थ करते रहिए, जीवन में सफलता अवश्य प्राप्त होगी। उन्होंने कहा, जीवन में सबका आदर करें। लघुतम व्यक्ति भी सम्मान के योग्य होते हैं। जीवन के दायित्वों के साथ-साथ भक्ति भी अनिवार्य है। भक्ति के बिना सफल जीवन की अभिलाषा व्यर्थ है।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर ने कहा, भारत को विभाजित नहीं होने देंगे, हिन्दुओं की संख्या में कमी नहीं आने देंगे, हम हिन्दू राष्ट्र निर्माण करने आए हैं। उन्होंने कथा के अवसर पर ही कहा, हम किसी राजनीतिक दल के प्रचारक नहीं, अपितु हिन्दुत्व के विचारक हैं। यह राष्ट्र हमारा है, यह बिहार हमारा है। हम हिंदुत्व जागृत करने आए हैं। हिन्दू राष्ट्र स्थापित करने आए हैं।
उन्होंने विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत विविध समुदायों के साथ धर्म पर विमर्श करते हुए भारतवर्ष को एक महान राष्ट्र बताया। उन्होंने कहा, हम हिन्दुओं को एकजुट करने आए हैं। आप हमें रामनगर में जब तक रखेंगे हम तब तक निवास करेंगे। पाँच दिवस ही क्या, पाँच मास तक हम हिंदुत्व के लिए कथा प्रवचन करते रहेंगे। विदेशों से भी श्रद्धालुगण कथा श्रवण करने पधारे हैं। इससे बागेश्वरधाम सरकार श्री शास्त्री की लोकप्रियता और भी बढ़ने लगी है।
संघप्रमुख के साथ साथ अमित शाह का बिहार के लिए एलान

चूँकि बिहार में इस वर्ष विधानसभा निर्वाचन होने वाले हैं, जिसके संदर्भ में समस्त राजनीतिक दलों ने प्रयासों का आरंभ भी कर दिया है। इस दृष्टि से मार्च के प्रथम द्वितीय सप्ताह में, वो भी होली के ठीक पूर्व बिहार में एक साथ संघप्रमुख मोहन भागवत, बागेश्वर सरकार धीरेंद्र शास्त्री और आर्ट ऑफ लिविंग के श्रीश्री रविशंकर का आगमन महत्त्वपूर्ण है। इससे सामाजिक समता और पंथनिरपेक्षता के आधार पर सजग रहे बिहार में हिंदुत्व का एक नवीन प्रवाह उत्पन्न होगा, जिससे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की नींव और सुदृढ़ता से स्थापित होगी।
गांधीनगर में आयोजित ‘शाश्वत मिथिला महोत्सव 2025‘ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के ऐलान ने यही संकेत दिया है। शाह ने कहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वो बिहार में ही अपना डेरा डालेंगे। इसके साथ ही, उन्होंने सीतामढ़ी में माता सीता का भव्य मंदिर बनाने की घोषणा भी की है। इस कार्यक्रम में शाह ने नवनिर्मित ‘शाश्वत मिथिला भवन’ में बिहार के गौरव महाकवि विद्यापति की प्रतिमा का अनावरण किया। ऐसे कार्यक्रम तो बिहार चुनाव की कमर कसने की आहट ही दे रहे हैं।
लगातार जीत का क्रम खोना नहीं चाहती भाजपा
चूँकि ओडिशा विधानसभा चुनाव में विजयी भारतीय जनता पार्टी झारखंड विधानसभा चुनाव में पराजित हो चुकी है। इसलिए आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को वह सर्वथा जीतना चाहती है। चूँकि वह यहाँ पर जनता दल (यूनाइटेड) के सहयोग से चुनाव लड़ती आई है, अतः वह विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को इतना दुर्बल कर देना चाहती है कि उसके समर्थन से जनता दल (यूनाइटेड) पुरानी मोलतोल करने योग्य नहीं रहे।
इसलिए वह इस बार जनता दल (यूनाइटेड) की सीटों की संख्या को भी कम से कम करने का मनोभाव बना चुकी है। यह करना इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि 2026 के पूर्वार्द्ध में ही पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं। जहाँ चुनाव विजयी होना नई दिल्ली के पश्चात् मोदी सरकार की प्राथमिकता सूची में है।
समझा जा सकता है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे कठिन विधानसभा चुनावों में अपनी विजय का ध्वज फहरा चुकी भारतीय जनता पार्टी अब बिहार में भी वही प्रयोग करने की योजना बना रही है। संघ और अपनी संबद्ध इकाइयों के माध्यम से वह जन-जन को आकर्षित करना चाहती है, ताकि नीतीश कुमार पर मानसिक दबाव बना रहे और सीटों के विभाजन में वे अल्पसंख्यक सीटों पर प्रतिद्वंद्विता करने को सहमत हो जाएँ। वहीं, यदि इसमें कोई अप्रत्याशित बाधा भी उत्पन्न हो तो प्रदेश में हिन्दुत्व की लहर इतनी प्रचंड हो जाए कि सेकुलरिज्म और जातिवाद हवा में उड़ जाए।