बांग्लादेश में हिंदुओं पर कहर: बांग्लादेश के रंगपुर जिले के तारागंज उपजिला में 1971 के हिंदू स्वतंत्रता सेनानी योगेश चंद्र रॉय और उनकी पत्नी सुबर्णा रॉय की बर्बर हत्या ने पूरे देश में खौफ पैदा कर दिया है।
75 वर्षीय योगेश रॉय, जिन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई थी, शनिवार रात अपने ही घर में मारे गए।
हमलावरों ने रात के अंधेरे में उनके और उनकी पत्नी का गला रेतकर हत्या कर दी।
दोनों दंपति लंबे समय से अपने गाँव में अकेले रह रहे थे।
बेटों के पुलिस में होने के बावजूद केस दर्ज करने में देरी
बांग्लादेश में हिंदुओं पर कहर: इस हत्या ने बांग्लादेश की कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
योगेश रॉय के दो बेटे है। शोवेन चंद्र रॉय, जो रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) में तैनात हैं, और दूसरा राजेश खन्ना, जो ढाका पुलिस में कार्यरत हैं। इसके बावजूद हत्या के तुरंत बाद कोई औपचारिक केस दर्ज नहीं किया गया।
पुलिस ने पहले “कोई सुराग नहीं” कहकर कार्रवाई टाल दी, जबकि हत्या अत्यंत क्रूर तरीके से की गई थी।
बाद में शोवेन चंद्र रॉय की शिकायत पर 10–15 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR तो दर्ज हुई, लेकिन अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
अंतरिम सरकार के दौर में हिंदुओं पर हमलों में तेज़ी
यह हत्या ऐसे समय में हुई है जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले लगातार बढ़ रहे हैं।
अंतरिम प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की सरकार पर आरोप लग रहा है कि उसने कट्टरपंथी संगठनों के प्रति नरम रुख अपनाया है।
इसी का नतीजा है कि हिंदू समुदाय, मुक्तियुद्धा परिवारों और प्रगतिशील विचारधारा के लोगों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं।
अवामी लीग के निर्वासित नेताओं ने खुलकर कहा है कि जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी समूह फिर से सक्रिय हो चुके हैं और सरकार उन्हें रोकने में असफल रही है।
शेख हसीना सरकार के गिरने के बाद बढ़े हमले
मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक, 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर “हजारों हमले” दर्ज किए गए।
यहाँ तक कि मंदिरों, घरों, दुकानों और स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को टारगेट किया जा रहा है।
कट्टरपंथी तत्व सोशल मीडिया, मस्जिदों और राजनीतिक अभियान में खुले तौर पर नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं।
आज़ादी के सेनानी की हत्या ने उठाए बड़े सवाल
योगेश चंद्र रॉय जैसे मुक्तियोद्धा, जिन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए जान जोखिम में डाली, उनकी और उनकी पत्नी की घर में घुसकर हत्या, केवल एक अपराध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है।
यह सवाल पूछने पर मजबूर करता है कि अगर स्वतंत्रता सेनानी सुरक्षित नहीं, तो साधारण हिंदू परिवारों की सुरक्षा कैसी होगी?
क्या बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय का भविष्य अंधकार की ओर बढ़ रहा है?
और क्या सरकार अपने नागरिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में सक्षम है?
इस दोहरे हत्या कांड ने साबित कर दिया है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति दिनोंदिन और खराब होती जा रही है।
कट्टरपंथियों का हौसला बढ़ रहा है, और कानून की पकड़ कमजोर होती दिख रही है।
जब एक मुक्तियुद्धा के परिवार को भी इंसाफ न मिले, तो यह पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी है।

