हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: हर बार की तरह इस बार भी हिंदू त्योहारों पर हिंसा का वही दृश्य दोहराया गया। नवरात्रि और दशहरा के दौरान देशभर से पत्थरबाजी और उपद्रव की खबरें आईं।
श्रद्धा और शोभायात्रा के बीच एक बार फिर कट्टरपंथियों ने पत्थरों की बारिश कर दी। कहीं काँच की बोतलें फेंकी गईं, कहीं पुलिस पर हमला हुआ। ऐसा लगता है जैसे हिंदू त्योहार अब कुछ लोगों के लिए हिंसा का अभ्यास बन गए हैं।
हर बार वही सवाल उठता है कि निशाना हमेशा हिंदू त्योहार ही क्यों बनते हैं? क्या कभी सुना कि हनुमान चालीसा पढ़ने वालों ने किसी पर पत्थर चलाया हो?
नहीं, क्योंकि यह असहिष्णुता एकतरफा है। यह कट्टरपंथियों की वो सोच है जो दूसरे की आस्था को नीचा दिखाने में अपनी जीत मानती है।
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नेपाल से लेकर भारत तक, दिखी एक ही मानसिकता
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: ये केवल भारत की समस्या नहीं है। नेपाल में भी दुर्गा विसर्जन के दौरान शोभायात्रा पर हमला हुआ। यानी यह मानसिकता सीमाओं से परे है।
यह समस्या किसी धर्म या राष्ट्र की नहीं, बल्कि एक ऐसी सोच की है जो अपने मजहब को दूसरों की आस्था से ऊपर रखती है।
यह मजहबी कट्टरता पहचान के संकट से जन्मी है, जहाँ हिंसा अपनी असुरक्षा को छिपाने का साधन बन जाती है।
राजनीतिक संरक्षण से और मजबूत हुई कट्टरता
भारत में यह प्रवृत्ति अब सिर्फ सामाजिक नहीं रही, इसे राजनीतिक संरक्षण मिल चुका है। वोट बैंक की राजनीति ने इस असहिष्णुता को ‘संवेदनशीलता’ का नाम दे दिया है।
लगभग 15-16 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के चलते कई राज्यों में चुनावी समीकरण बदल जाते हैं, और यही वजह है कि कुछ नेता खुद को बड़ा ‘मुस्लिम हितैषी’ दिखाने की होड़ में हैं।
‘I Love Muhammad’ के नाम पर बरेली में उपद्रव
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: बरेली में हाल ही में जो हुआ, वह इस मानसिकता का ताज़ा उदाहरण है। ‘I Love Muhammad’ के नाम पर दंगाइयों ने उपद्रव मचाया, पुलिस पर गोलीबारी और पत्थराव किया गया।
किन हैरानी तब हुई जब समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधिमंडल मौके पर पहुँचा, दंगाइयों का पक्ष लेने के लिए। आरोपियों को बेगुनाह बताया गया और पुलिस-प्रशासन को दोषी ठहराया गया।
वोट बैंक की राजनीति ने दिया दंगाइयों को हौसला
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: यह वही राजनीति है जिसने दंगाइयों को यह भरोसा दे दिया है कि चाहे कुछ भी करो, ‘वोट बैंक’ के लिए कुछ दल हमेशा साथ रहेंगे।
तुम्हारे लिए वकील खड़े होंगे, मीडिया का एक हिस्सा तुम्हें ‘पीड़ित’ बताएगा और नेता तुम्हारे बचाव में बयान देंगे।
यह संरक्षण हिंसा की आग को और भड़काता है।
कानून से ऊपर मजहब की सोच
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: जब कोई समाज यह मान ले कि उसकी धार्मिक भावनाएँ कानून से ऊपर हैं, तो राज्य भी बेबस दिखने लगता है।
यह सबसे खतरनाक स्थिति होती है क्योंकि यही सोच अंततः देश की सामाजिक एकता को तोड़ती है।
केवल गिरफ्तारियाँ काफी नहीं, चाहिए वैचारिक जवाब
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: हर बार पत्थर चलने के बाद कुछ गिरफ्तारियाँ, कुछ बयान और फिर सब कुछ पहले जैसा हो जाता है। लेकिन अब यह समझना होगा कि यह सिर्फ कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं, बल्कि वैचारिक चुनौती है।
जब तक समाज और राज्य मिलकर इस कट्टरपंथी सोच को वैचारिक स्तर पर चुनौती नहीं देंगे, तब तक यह हिंसा खत्म नहीं होगी।
यह कहना कि हर धर्म में कुछ कट्टर लोग होते हैं, अब केवल एक ढाल बन चुका है। यहाँ मामला ‘कुछ’ लोगों का नहीं, बल्कि उस मानसिकता का है जो हर हिंदू त्योहार पर अपनी नफरत का प्रदर्शन करती है। यह वही मानसिकता है जिसने सह-अस्तित्व के भारतीय विचार को चुनौती दी है।
तुष्टिकरण का अंत ही समाधान है
हिन्दू त्योहारों को निशाना बनाया: जब तक सत्ता के लालच में डूबे राजनीतिक दल इस्लामी कट्टरपंथियों को संरक्षण देते रहेंगे, तब तक हर त्यौहार पर पत्थर चलते रहेंगे।
समाज को यह तय करना होगा कि वह वोट बैंक की राजनीति के आगे झुकेगा या अपनी संस्कृति, अपनी आस्था और अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए खड़ा होगा।
Personal Opinion Of The Author