Thursday, November 21, 2024

Corporate World: वर्क फ्रॉम होम से ज्यादा बेहतर है ऑफिस में काम करना

Corporate World: हाल ही में आयी एक स्टडी में कहा गया कि घर से बैठकर ऑफिस काम करना अच्छा नहीं है। इससे मेन्टल हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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जब से कोविड आया है वर्क फ्रॉम होम का कल्चर चालु गया है। इस समय साड़ी दुनिया घर बैठे ही काम कर रही हैं। इस दौर ने वर्क फ्रॉम होम के कल्चर को बढ़ावा मिला जिसका फायदा भी बहुत हुआ। कोविड तो चला गया लेकिन वर्क फ्रॉम होम का कल्चर छोड़ गया। आह भी कॉर्पोरेट में कई कंपनियां ऐसी है जो घर से काम करने का ऑप्शन अपने सहकर्मियों को दे रही है। लेकिन क्या आपको पता है लम्बे समय तक घर पर बैठके काम करने से आपकी मेन्टल हेल्थ पर कितना बुरा प्रभाव पड़ सकता है। हाल ही में हुयी स्टडी में खुलासा हुआ कि घर पर काम करने की बजाय ऑफिस में काम करना ज्यादा बेहतर है।

घर से काम करने का मेन्टल हेल्थ पर पड़ता है बुरा असर

Corporate World: हाल ही में ग्लोबल लेवल पर हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि भारत में ऑफिस में काम करने वाले इम्पलॉयी की मेंटल हेल्थ घर से काम करने वालों एम्प्लोयी से अच्छी होती है। इसमें स्टडी में कहा गया है कि यूरोप और अमेरिका के उलट भारत में दफ्तर से काम करने वालों को मानसिक सुकून मिलता है। यहां दफ्तर से काम करने वाले लोग घर से काम करने वाले या हाईब्रिड माहौल में काम करने वालों की तुलना में काम डिप्रेशन में रहते हैं।

अमेरिका और यूरोप कि स्टडी में बताया गया है कि इन जगहों पर हाइब्रिड माहौल में काम करने वाले एम्प्लोयी कि मेंटल हेल्थ अच्छी होती है। उसका दिमाग घर पर काम करने वालों से ज्यादा एक्टिव रहता है। ये स्टडी अमेरिका के सेपियंस लैब में वर्क कल्चर एंड मेंटल वेलबीइंग द्वारा करवाई गयी थी। इस स्टडी के तहत करीब 55 हजार कर्मचारियों को इस रिसर्च का हिस्सा बनें।

वर्क प्लेस के अलावा भी कई फैक्टर्स पर हुई स्टडी

इस स्टडी में पता चला कि अकेले काम करने वालों की तुलना में टीम के साथ काम वाले लोगों की मेंटल हेल्थ अच्छी होती है। वहीं दूसरी तरफ टीम के आकार और मेंटल हेल्थ में ग्रोथ की बात करें तो इस मामले में दूसरे देश भारत है जो सबसे ज्यादा अच्छा है।

आपको बता दें कि वर्क लाइफ को बेहतर करने वाले पहलुओं में टीम प्रेशर,भावना, स्ट्रेस, कंपटीशन, टॉक्सिक एनवायरमेंट, आपसी रिलेशनशिप, अपने काम के प्रति गर्व महसूस करना, लैंगिक भेदभाव, जैसे फैक्टर्स पर भी स्टडी की गयी थी।

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