Friday, December 26, 2025

बेंगलुरु का सच: कांग्रेस शासन में टूटती व्यवस्था और मरता नागरिक

बेंगलुरु कभी आधुनिक भारत का प्रतीक माना जाता था। तकनीक, शिक्षा और रोजगार का केंद्र। लेकिन आज वही शहर एक ऐसी त्रासदी का गवाह बना है जिसने कांग्रेस शासन के शहरी और स्वास्थ्य मॉडल की वास्तविकता को निर्वस्त्र कर दिया है।

34 वर्षीय वेंकटरमन की मृत्यु केवल एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं है, यह उस शासन व्यवस्था का मृत्यु प्रमाण पत्र है जो नागरिक को केवल आँकड़ा और वोट मानती है।

आपात स्वास्थ्य व्यवस्था का ढह जाना

बेंगलुरु जैसे महानगर में हार्ट अटैक से जूझ रहे व्यक्ति को दो निजी अस्पतालों से लौटा दिया जाना किसी दुर्घटना का परिणाम नहीं है। यह एक सुनियोजित और लंबे समय से चल रही प्रशासनिक उपेक्षा का नतीजा है।

आपात स्थिति में प्राथमिक उपचार देना हर अस्पताल का दायित्व है, लेकिन कांग्रेस शासन में यह दायित्व कागज़ों तक सीमित होकर रह गया है।

राज्य सरकार ने न तो निजी अस्पतालों के लिए कठोर आपात नियम बनाए, न उनके उल्लंघन पर कोई भय या दंड सुनिश्चित किया। परिणाम यह हुआ कि अस्पतालों ने मानव जीवन को फाइल और भुगतान से जोड़ दिया।

निजी अस्पतालों को खुली छूट और जनता से दूरी

कर्नाटक में कांग्रेस शासन के दौरान स्वास्थ्य क्षेत्र को सेवा के बजाय उद्योग की तरह बढ़ावा दिया गया। बड़े अस्पताल समूहों को जमीन, सब्सिडी और संरक्षण मिला, लेकिन बदले में जनता के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं हुई।

वेंकटरमन को अस्पताल से अस्पताल भेज देना इसी नीति का प्रत्यक्ष परिणाम है। मरीज को जयदेव अस्पताल जाने की सलाह देना आसान है, लेकिन उसे वहाँ सुरक्षित पहुँचाने की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। यह संवेदनहीनता नहीं बल्कि शासन की अक्षमता है।

एम्बुलेंस व्यवस्था की अराजक स्थिति

यदि बेंगलुरु जैसे शहर में एम्बुलेंस की तत्काल उपलब्धता सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो यह शासन की सीधी विफलता है। कांग्रेस शासन में एम्बुलेंस नेटवर्क बिखरा हुआ है, अस्पतालों के बीच कोई समन्वय नहीं है और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली पूरी तरह अव्यवस्थित है।

इस अराजकता का परिणाम यह हुआ कि एक महिला अपने हार्ट अटैक पीड़ित पति को स्कूटर पर ले जाने को मजबूर हुई। यह दृश्य किसी पिछड़े इलाके का नहीं, बल्कि देश के सबसे महंगे शहरों में से एक का है।

शहरी योजना में नागरिक जीवन का मूल्य शून्य

भारत में हार्ट अटैक अचानक मृत्यु के प्रमुख कारणों में है। इसके बावजूद कांग्रेस सरकार ने कभी यह नहीं सोचा कि शहर में विकेंद्रीकृत आपात चिकित्सा इकाइयाँ हों। हर कुछ किलोमीटर पर प्राथमिक कार्डियक केयर यूनिट स्थापित करना कोई असंभव लक्ष्य नहीं था।

ईसीजी, ऑक्सीजन, डिफिब्रिलेटर और प्रशिक्षित पैरामेडिकल स्टाफ के साथ टेलीमेडिसिन का उपयोग कर हजारों जानें बचाई जा सकती थीं। लेकिन कांग्रेस की शहरी योजना में फ्लाईओवर और विज्ञापन प्राथमिक रहे, नागरिक का जीवन नहीं।

सामाजिक उदासीनता प्रशासनिक विफलता का परिणाम

सबसे भयावह तथ्य यह है कि सड़क पर गिरते हुए व्यक्ति को देखकर भी अधिकांश लोग आगे बढ़ते रहे। यह केवल समाज का नैतिक पतन नहीं है, बल्कि वर्षों से चली आ रही प्रशासनिक असफलता का परिणाम है।

जब राज्य नागरिक को सुरक्षा का भरोसा नहीं देता, कानून का प्रभाव कमजोर होता है और मदद की कोई संरचित प्रणाली नहीं होती, तब समाज भी धीरे धीरे असंवेदनशील हो जाता है।

टैक्स देने वाला नागरिक और व्यवस्था की बेरुखी

वेंकटरमन और उनकी पत्नी कोई विशेष वर्ग नहीं थे। वे सामान्य, कानून का पालन करने वाले नागरिक थे जिन्होंने निश्चित रूप से समय पर टैक्स चुकाया होगा। लेकिन जब जीवन और मृत्यु का प्रश्न आया, तब राज्य की सारी व्यवस्थाएँ गायब थीं।

यह मध्यमवर्गीय भारत की वास्तविक स्थिति है। कांग्रेस शासन में यह वर्ग न तो प्राथमिकता है, न ही संरक्षण का पात्र। वह केवल करदाता और मतदाता बनकर रह गया है।

कांग्रेस का शहरी शासन मॉडल और उसकी विफलता

बेंगलुरु आज ट्रैफिक, जल संकट, स्वास्थ्य अव्यवस्था और प्रशासनिक अकर्मण्यता का प्रतीक बन चुका है। कांग्रेस का शहरी शासन मॉडल घोषणाओं और ब्रांडिंग तक सीमित है। जमीन पर न तो ढांचा है, न जवाबदेही।

स्टार्टअप हब और स्मार्ट सिटी के दावों के पीछे आम नागरिक का जीवन सबसे सस्ता हो गया है।

रूपा का निर्णय और व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न

पति की मृत्यु के बाद भी रूपा द्वारा आँखें दान करना उस मानवीय चेतना का प्रमाण है जो व्यवस्था में समाप्त हो चुकी है, लेकिन नागरिक में अभी जीवित है। उनका यह कहना कि समय पर थोड़ी सी मदद भी जान बचा सकती थी, पूरे शासन तंत्र पर गंभीर आरोप है।

यह दान एक व्यक्तिगत निर्णय नहीं, बल्कि एक असफल शासन के विरुद्ध मौन अभियोग है।

यह दुर्घटना नहीं, चेतावनी है

बेंगलुरु की यह घटना कोई अपवाद नहीं है। यह कांग्रेस शासन में स्वास्थ्य और शहरी प्रशासन के पतन की स्पष्ट चेतावनी है। यदि इसे भी अन्य घटनाओं की तरह भुला दिया गया, तो अगली मौत किसी और की होगी और व्यवस्था फिर बच निकलने का प्रयास करेगी।

जब तक नागरिक जीवन को केंद्र में रखकर शासन नहीं होगा, तब तक बेंगलुरु जैसे शहर आधुनिक नहीं, बल्कि असुरक्षित बने रहेंगे।

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Mudit
Mudit
लेखक 'भारतीय ज्ञान परंपरा' के अध्येता हैं और 9 वर्षों से भारतीय इतिहास, धर्म, संस्कृति, शिक्षा एवं राजनीति पर गंभीर लेखन कर रहे हैं।
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