Bangladesh: बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट को एक साल पूरा हो चुका है। बीते साल पांच अगस्त को हुए सत्ता परिवर्तन को लेकर तब यह दावा किया गया था कि देश की आम जनता और छात्रों की मांगों को सुनते हुए लोकतंत्र को एक नया रूप दिया जा रहा है।
लेकिन एक साल बीतते-बीतते यह आंदोलन बिखर गया है और अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वाकई यह बदलाव जनता की इच्छा से हुआ था या फिर पर्दे के पीछे से सेना ने अपनी चालें चलीं।
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Bangladesh: अंतरिम सरकार ने छात्रों से किया किनारा
छात्र आंदोलन जिसे बांग्लादेश में बदलाव की सबसे बड़ी ताकत माना जा रहा था, अब खुद टूट गया है। पांच अगस्त के आंदोलन में सक्रिय रहे आठ प्रमुख छात्र नेताओं में से आधे से ज्यादा ने मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार से किनारा कर लिया है।
जिन नेताओं को कभी यूनुस का सबसे करीबी माना जाता था, वे अब अपने-अपने राजनीतिक मंच बना चुके हैं। नाहिद इस्लाम, जो पहले यूनुस के सबसे विश्वस्त साथी माने जाते थे।
अब ‘नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी)’ के संस्थापक बन चुके हैं। वहीं, अबु बकर ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ नाम से एक अलग संगठन चला रहे हैं।
सेना के हाथ में चाबी
दूसरी ओर सत्ता की असल चाबी अब भी सेना के हाथ में ही है। छात्र आंदोलन की शुरुआत में सेना ने इन युवा नेताओं को परोक्ष समर्थन दिया, जिससे आम जनता को भरोसा हुआ कि यह बदलाव सचमुच लोकतंत्र के पक्ष में है।
लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, सेना की असली मंशा सामने आने लगी। अब आर्मी चीफ वकार जमान पूरी स्थिति पर नियंत्रण बनाए हुए हैं और मोहम्मद यूनुस केवल एक औपचारिक चेहरा बनकर रह गए हैं।
चुनाव को लेकर चुप्पी
सेना ने आंदोलन को हवा देकर बदलाव की बुनियाद रखी, लेकिन अब वही सेना नए चुनाव को लेकर चुप्पी साधे बैठी है।
छात्र नेता बार-बार मांग कर रहे हैं कि देश में जल्द से जल्द स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जाएं, लेकिन सेना इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही है।
मंगलवार को जब तख्तापलट की पहली वर्षगांठ पर सरकारी आयोजन हुआ, तो उसमें किसी भी छात्र नेता को आमंत्रित नहीं किया गया।
यह साफ संकेत है कि जिन युवाओं ने सत्ता परिवर्तन की नींव रखी थी, अब उन्हें ही हाशिए पर डाल दिया गया है।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में हैं। उनके समर्थक इस घटनाक्रम को लोकतंत्र की हत्या और सैन्य सत्ता की स्थापना के रूप में देख रहे हैं।
हसीना समर्थक यह भी दावा कर रहे हैं कि सेना ने छात्रों की भावनाओं का इस्तेमाल करके एक ऐसी सरकार बनाई है, जो लोकतंत्र के नाम पर केवल सेना के आदेशों का पालन करती है।