दिल में इलाहाबाद, घर इटली और जुबां पर हिंदी… ये कहानी है फ्रांसेस्का ओरसिनी की।
जो भारत के प्रति अपने प्रेम और हिंदी साहित्य के अध्ययन के लिए जानी जाती हैं। लेकिन हाल ही में जब वो भारत लौटीं, तो दिल्ली एयरपोर्ट से ही उन्हें डिपोर्ट कर दिया गया।
इसके पीछे कारण रहा वीजा नियमों का उल्लंघन। पर क्या सचमुच ये मामला सिर्फ वीजा का है, या इसके पीछे कोई और वजह छिपी है?
कौन हैं फ्रांसेस्का ओरसिनी?
फ्रांसेस्का ओरसिनी का जन्म इटली के मिलान में हुआ, लेकिन उनका दिल इलाहाबाद में बसता है।
वो वर्तमान में लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज़ (SOAS) में हिंदी और दक्षिण एशियाई साहित्य की प्रोफेसर हैं।
41 साल पहले उन्होंने हिंदी सीखनी शुरू की थी। अपनी एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि “मेरी हिंदी की यात्रा 41 साल पहले शुरू हुई थी… मेरी मां को साहित्य से प्यार था और उसी माहौल ने मुझे हिंदी की तरफ खींच लिया।”
कौन हैं फ्रांसेस्का ओरसिनी?
फ्रांसेस्का पहली बार 20 साल की उम्र में भारत आई थीं। उन्होंने वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा में एक महीने तक रहकर हिंदी साहित्य का अध्ययन किया।
इसी दौरान उनकी मित्रता प्रेमचंद की पोती से हुई और फिर इलाहाबाद से उनका एक अटूट रिश्ता बन गया।
बाद में उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान से स्कॉलरशिप प्राप्त की और जेएनयू में अध्ययन किया, जहाँ उन्हें नामवर सिंह और केदारनाथ सिंह जैसे दिग्गजों से पढ़ने का अवसर मिला।
साहित्य में योगदान
फ्रांसेस्का ने उत्तर भारत की बहुभाषी साहित्यिक परंपरा पर गहराई से शोध किया है।
उनकी किताब “Print and Pleasure” इलाहाबाद की प्रिंट संस्कृति और हिंदी-उर्दू की साझा विरासत पर केंद्रित है।
उनका काम इस विचार को मजबूत करता है कि हिंदी और उर्दू, दोनों मिलकर उत्तर भारत की एक संयुक्त सांस्कृतिक आत्मा को गढ़ते हैं।
एयरपोर्ट पर क्यों रोकी गईं फ्रांसेस्का?
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, फ्रांसेस्का ओरसिनी के पास 5 साल का वैध ई-वीजा था।
लेकिन जब वे चीन में एक अकादमिक सम्मेलन से लौटकर हांगकांग से दिल्ली पहुँचीं, तो अधिकारियों ने उन्हें एयरपोर्ट से ही वापस भेज दिया।
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, “ओरसिनी पर्यटक वीजा पर आई थीं, लेकिन उन्होंने पहले इस वीजा का दुरुपयोग शैक्षणिक गतिविधियों के लिए किया था। इसलिए मार्च 2025 में उन्हें ब्लैकलिस्ट कर दिया गया।”
सरकार का कहना है कि उन्होंने वीजा नियमों का उल्लंघन किया, जो किसी भी देश में मानक प्रक्रिया के तहत दंडनीय है।
कुछ ही घंटों में डिपोर्ट
दिल्ली एयरपोर्ट पर कुछ ही घंटों में इमिग्रेशन अधिकारियों ने उन्हें हांगकांग वापस भेज दिया।
फ्रांसेस्का ने दावा किया कि उनका उद्देश्य सिर्फ “दोस्तों से मिलना” था, पर प्रशासन ने कहा कि उनका वीजा यात्रा के उद्देश्य से मेल नहीं खाता था।
साहित्य जगत की प्रतिक्रिया
सरकार के इस कदम पर साहित्य और अकादमिक जगत में भारी नाराज़गी है।
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि “ओरसिनी भारतीय साहित्य की एक महान विद्वान हैं। उन्हें डिपोर्ट करना एक असुरक्षित और अंधी सरकार का संकेत है।”
लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने टिप्पणी की, “ओरसिनी का काम हिंदी के आधुनिक लोकवृत्त के निर्माण में मील का पत्थर है। समझ नहीं आता, उनके किस काम से राष्ट्रहित खतरे में पड़ गया।”
इतिहासकार मुकुल केसवन ने एक्स पर लिखा कि “हिंदी के नाम पर राजनीति करने वाली सरकार ने उसी भाषा की सबसे बड़ी शोधकर्ता को भारत में प्रवेश से रोक दिया, यह विडंबना है।”
आखिरी बार भारत यात्रा
फ्रांसेस्का ओरसिनी ने आखिरी बार अक्टूबर 2024 में भारत का दौरा किया था।
उस दौरान वे साहित्यिक कार्यक्रमों और विश्वविद्यालय व्याख्यानों में शामिल हुई थीं।
लेकिन मार्च 2025 में उन्हें गृह मंत्रालय की ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया, जिसके बाद यह पहली बार था जब उन्हें एयरपोर्ट से लौटाया गया।
एक ‘दिल इलाहाबादी’ का दर्द
फ्रांसेस्का ओरसिनी भारत की उन कुछ विदेशी विद्वानों में से हैं जिन्होंने हिंदी और भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
पर आज वही भारत उन्हें “वीजा उल्लंघन” के नाम पर बाहर कर चुका है।

