साने ताकाइची: जापान के इतिहास में पहली बार किसी महिला ने प्रधानमंत्री पद की ओर कदम बढ़ाया है।
सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के अध्यक्ष पद का चुनाव जीतकर 60 साल की साने ताकाइची ने इतिहास रच दिया है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइजुमी के बेटे और पर्यावरण मंत्री शिंजिरो कोइजुमी को हराकर यह जीत दर्ज की।
ताकाइची को उनके समर्थक ‘जापान की आयरन लेडी’ कहते हैं, जो उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और राष्ट्रवादी सोच को दर्शाता है।
इस जीत के साथ यह लगभग तय माना जा रहा है कि ताकाइची जापान की अगली प्रधानमंत्री बनेंगी। इस तरह देश को पहली महिला प्रधानमंत्री मिलेगी।
यह न सिर्फ राजनीतिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक ऐतिहासिक बदलाव है, क्योंकि जापान लंबे समय से महिला नेतृत्व की कमी से जूझता रहा है।
Table of Contents
पुरुषप्रधान राजनीति में महिलाओं की बड़ी छलांग
जापान की राजनीति में लैंगिक असमानता लंबे समय से चर्चा का विषय रही है। विश्व आर्थिक मंच के जेंडर गैप इंडेक्स में जापान 148 देशों में 118वें स्थान पर है।
वहां संसद के निचले सदन में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 15.7% है, जो वैश्विक औसत 27.1% से काफी कम है।
ऐसे माहौल में साने ताकाइची का उभार एक बड़ी सामाजिक जीत है। विशेषज्ञ मानते हैं कि उनका नेतृत्व न केवल जापान की राजनीति में लैंगिक संतुलन की शुरुआत करेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की महिलाओं को राजनीति में आने की प्रेरणा देगा।
साने ताकाइची कौन हैं?
साने ताकाइची का जन्म जापान के नारा शहर में हुआ था। वह तीन दशक से ज्यादा समय से जापान की संसद में प्रतिनिधि सभा की सदस्य हैं। राजनीति में आने से पहले वह टीवी असाही की एंकर रह चुकी हैं।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत अमेरिका में की, जहां उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रतिनिधि पैट श्रोएडर के लिए काम किया।
यहीं से उनके भीतर वैश्विक दृष्टिकोण और राजनीतिक परिपक्वता विकसित हुई।
ताकाइची 1989 में राजनीति में सक्रिय हुईं और धीरे-धीरे जापान की सबसे प्रभावशाली महिला नेताओं में शामिल हो गईं।
वे कई बार जापान सरकार में मंत्री रह चुकी हैं, खासकर आंतरिक मामलों और आर्थिक सुरक्षा जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी उनके पास रही है।
ताकाइची को उनकी राष्ट्रवादी और रूढ़िवादी विचारधारा के लिए जाना जाता है, जो जापान की पारंपरिक पहचान को मजबूत करने की बात करती है।
अमेरिका-जापान संबंधों पर मजबूत पकड़
ताकाइची के अंतरराष्ट्रीय नजरिए की सबसे बड़ी ताकत है उनका अमेरिका से गहरा रिश्ता। उन्होंने खुद कहा है कि वे अमेरिका के साथ साझेदारी को “रणनीतिक आत्मनिर्भरता” के साथ आगे बढ़ाना चाहती हैं।
उनकी सोच “जापान फर्स्ट” नीति पर आधारित है, जो पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति से मेल खाती है।
ताकाइची का मानना है कि जापान को अपनी सैन्य और आर्थिक नीतियों में आत्मनिर्भर होना चाहिए और क्षेत्रीय स्तर पर अपनी भूमिका को और मजबूत बनाना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वे प्रधानमंत्री बनती हैं, तो जापान की विदेश नीति और अधिक राष्ट्रवादी और स्वतंत्र रुख़ ले सकती है।
चीन और कोरिया के साथ संबंधों पर विवादित रुख़
साने ताकाइची अपने रूढ़िवादी राष्ट्रवाद और द्वितीय विश्व युद्ध की विरासत पर अपने स्पष्ट विचारों के लिए भी जानी जाती हैं।
वे कई बार यासुकुनी तीर्थस्थल जाने की वकालत कर चुकी हैं। यह वही स्थान है जहां जापान के युद्ध नायकों की स्मृति में पूजा होती है, लेकिन चीन और दक्षिण कोरिया इसे युद्ध अपराधियों के सम्मान स्थल के रूप में देखते हैं।
उनके इस रुख़ के कारण पड़ोसी देशों के साथ तनाव बढ़ सकता है। इसलिए विश्लेषक मानते हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें अपनी नीतियों में थोड़ा लचीलापन दिखाना होगा ताकि जापान का क्षेत्रीय संतुलन बिगड़े नहीं।
भारत को लेकर कैसी है सोच?
साने ताकाइची ने कई मौकों पर भारत को जापान का रणनीतिक साझेदार बताया है। उनका मानना है कि भारत और जापान मिलकर एशिया में एक स्थायी आर्थिक और सुरक्षा ढांचा तैयार कर सकते हैं।
वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की प्रशंसक मानी जाती हैं और जापान-भारत रक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने की समर्थक हैं। उनकी “एशिया सुरक्षा दृष्टि” में भारत को एक केंद्रीय भूमिका दी गई है।