ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद इन दिनों सुर्खियों में है जिसकी वजह है केदारनाथ से 228 किलो सोना गायब होने का दावा। आइये जानते हैं की ये पूरा मामला क्या है ये शंकराचार्य की उपाधि मिलती कैसे है और ये हमेशा अपने साथ कपड़े से ढ़का दंड क्यों रखते हैं।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद चर्चा में क्यों है?
इन दिनों शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद काफी चर्चा में है। इनके ऊपर केदारनाथ-बद्रीनाथ के अध्यक्ष अजयेंद्र अजय ने उनके ऊपर सनसनी फैलाने के आरोप लगाए हैं साथ ही अजय के उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक जाने का भी चैलेंज दिया है।
कुछ दिनों पहले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने दावा किया था की केदारनाथ से 228 किलो सोना गायब हुआ है। जिसके जवाब में अजय ने कहा की अब उन्हें चर्चे में रहने की आदत हो गयी है। वो आये दिन प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और आरोप लगते हैं। इसी मामले पर अजय ने उन्हें है कोर्ट जाने का चैलेंज भी दिया है। उन्होनें कहा कि ” मई उनके शंकराचार्य होने का सम्मान करता हूं, लेकिन जितनी प्रेस कांफ्रेंस ये करते हैं उतनी तो नेता भी नहीं नहीं करते। उन्होनें जो भी आरोप लगाए है, उसे पूरे तथ्य के साथ सामने लाएं। इसके लिए वो अथॉरिटी के पास जाएं और जांच की मांग करें। ” ये था पूरा मामला आइये अब जानते हैं किये शंकरचार्य की उपाधि कैसे मिलती है और ये हमेशा अपने साथ कपड़े से ढ़का दंड क्यों रखते हैं।
शंकराचार्य से पहले जानें आदि शंकराचार्य के बारे में
शंकराचार्य के बारे में बताने से पहले आपका आदि शंकराचार्य के बारे में जानना जरुरी है। आदि शंकराचार्य एक हिंदू धर्मगुरु थे, जिनकी ज्ञान और धर्म की जानकारी की वजह से उसका बहुत नाम था। ऐसा कहा जाता है कि सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का बड़ा योगदान रहा है। उन्हें संस्कृत के विद्वान, अद्वैत वेदांत के प्रणेता, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक कहा जाता है। वे काफी तेजस्वी थे और उन्होंने 20 साल का ज्ञान सिर्फ 2 साल में ग्रहण कार लिया था, साथ ही उन्होंने सनातन धर्म को आगे बढ़ने के लिए बहुत काम भी किया था।
फिर उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए। फिर उन चार मठों के जो प्रमुख हुए, उन्हें शंकराचार्य की उपाधि दी गयी। वो चार मठ हैं उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का श्रृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ। अब इन मठों के जो प्रमुख हैं, वो ही देश के चार शंकराचार्य हैं। जिनमें गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी हैं, जबकि शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी, श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं।
कैसे मिलती है शंकराचार्य की उपाधि
इसके लिए कुछ खास योग्यताओं का होना जरुरी है। जैसे संन्यासी होना। संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग करना, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना जरुरी है। शंकराचार्य की नियुक्ति गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करते हुए होती है। ये इसलिए होता है, क्योंकि आदि शंकराचार्य ने भी अपने चार उत्तीर्ण शिष्यों को ही चार मठों का शंकराचार्य बनाया था। ऐसे में हर शंकराचार्य अपने मठ के शिष्य को शंकराचार्य घोषित करने की ये परंपरा चली आ रही है। इसके साथ ही शंकराचार्य पदवी के शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की सहमति अनिवार्य होती है। इसके बाद ही शंकराचार्य की उपाधि मिलती है।
शंकराचार्य का काम क्या होता है
सनातन धर्म में शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं। धर्म से जुड़े किसी विषय में शंका या विवाद होने की स्थिति में शंकराचार्य की सलाह आखिरी मानी जाती है और ये अपने अपने मठों के जुड़े सभी फैसले भी यही लेते हैं। शंकराचार्य का कहना है कि शंकराचार्य से अपेक्षा की जाती है कि जहां धर्म की बात हो वहां बिना किसी लोभ और दबाव में आए वो सच कहे।
अपने साथ हमेशा क्यों रखते हैं दंड?
शंकराचार्यों के पास एक दंड देखा जाता है आपने भी इसे जरूर देखा होगा। ये दंड बताता है कि वे एक दंडी संन्यासी हैं। ये दंड उन्हें अपने गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद दिया जाता है , जिसे विष्णु भगवान का प्रतीक माना माना जाता है। कहा जाता है कि इसमें शक्तियों को समाहित किया जाता है और संन्यासी हर रोज इसका अभिषेक और तर्पण करते हैं।
दंड कई तरह के होते हैं और इनमें अलग-अलग गांठ के हिसाब से इन्हें बांट दिया जाता है। हर दंड का अलग नाम होता है, जिसमें सुदर्शन दंड, गोपाल दंड, नारायण दंड, वासुदेव दंड शामिल हैं। इसकी पवित्रता के लिए इसे हमेशा कपड़े से ढककर रखा जाता है।