सी.पी. राधाकृष्णन: भारत के नए उपराष्ट्रपति के तौर पर सी.पी. राधाकृष्णन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। एनडीए की ओर से उम्मीदवार बनाए गए राधाकृष्णन ने विपक्षी इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को मात दी।
चुनाव में राधाकृष्णन को कुल 452 वोट हासिल हुए जबकि रेड्डी को 300 वोट मिले। इस जीत के साथ सी.पी. राधाकृष्णन अब देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति दोनों की जिम्मेदारी संभालेंगे।
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सी.पी. राधाकृष्णन: कई तरह की सैलरी और सुविधाएं
उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद सी.पी. राधाकृष्णन को कई तरह की सैलरी और सुविधाएं मिलने वाली हैं। आम तौर पर यह समझा जाता है कि उपराष्ट्रपति को एक तय वेतन मिलता है,
लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें नियमित वेतन नहीं दिया जाता, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में सैलरी दी जाती है।
राज्यसभा सभापति के रूप में उन्हें हर महीने चार लाख रुपए वेतन के रूप में मिलेंगे। इसके अलावा एक शानदार सरकारी बंगला दिया जाएगा, जो देश के उच्च संवैधानिक पदों के अनुरूप सुविधाओं से लैस होता है।
उपराष्ट्रपति के पास सरकारी गाड़ी की सुविधा होती है और वह भी बुलेटप्रूफ सुरक्षा वाली कार होती है। उन्हें जेड प्लस सुरक्षा कवर भी उपलब्ध कराया जाता है।
दो लाख रुपये पेंशन मिलेगी
देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को विदेश और देश के भीतर यात्रा करने के लिए किसी तरह का निजी खर्च नहीं करना पड़ता। सभी यात्राओं का खर्च सरकार वहन करती है।
इसके साथ ही उपराष्ट्रपति को दैनिक भत्ता और चिकित्सा से जुड़ी सुविधाएं भी मिलती हैं। मेडिकल सुविधाओं का पूरा खर्च सरकार उठाती है ताकि स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी परेशानी की स्थिति में उन्हें सर्वश्रेष्ठ इलाज मिल सके।
अब सवाल यह उठता है कि उपराष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद क्या सुविधाएं बरकरार रहती हैं। इस पर संवैधानिक प्रावधान साफ है कि पद छोड़ने के बाद भी उन्हें पेंशन मिलती है। यह पेंशन भी राज्यसभा के पूर्व सभापति के रूप में दी जाती है।
पेंशन उनकी सैलरी का लगभग आधा हिस्सा होती है। यानी सी.पी. राधाकृष्णन को पद छोड़ने के बाद हर महीने करीब दो लाख रुपए पेंशन मिलेगी। इसके साथ-साथ उन्हें मेडिकल सुविधाओं और अन्य सरकारी लाभों का फायदा मिलता रहेगा।
संसद में सरकार का प्रभाव मजबूत
जीत के बाद सी.पी. राधाकृष्णन ने अपने पहले बयान में इस चुनाव को राष्ट्रवादी विचारधारा की जीत बताया। उन्होंने कहा कि विपक्ष ने इस चुनाव को वैचारिक लड़ाई करार दिया था, लेकिन मतदान के पैटर्न ने दिखा दिया कि राष्ट्रवादी सोच को देश का समर्थन मिला है।
उन्होंने कहा कि यह जीत केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं है, बल्कि हर भारतीय की जीत है। उनका मानना है कि भारत को अगर 2047 तक एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है तो सभी नागरिकों को एकजुट होकर विकास की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
उन्होंने संकल्प जताया कि आने वाले वर्षों में वह देश की प्रगति के लिए पूरी निष्ठा से काम करेंगे और संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं को और मजबूत करेंगे।
सी.पी. राधाकृष्णन की यह जीत राजनीतिक रूप से भी अहम मानी जा रही है क्योंकि उपराष्ट्रपति चुनाव को सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वैचारिक टकराव के रूप में देखा जा रहा था।
एनडीए के उम्मीदवार की जीत से साफ हो गया है कि संसद में सरकार का प्रभाव मजबूत है और विपक्ष को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
देश के उपराष्ट्रपति पद की अहमियत केवल औपचारिक नहीं है, बल्कि यह पद संसद के उच्च सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने और संसदीय लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ऐसे में सी.पी. राधाकृष्णन की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। उनकी सोच और बयान से यह स्पष्ट है कि वे अपने कार्यकाल में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर काम करना चाहते हैं।
भारत के नए उपराष्ट्रपति के रूप में सी.पी. राधाकृष्णन का यह कार्यकाल आने वाले वर्षों में कैसा रहेगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन इतना तय है कि उनकी जीत ने न केवल एनडीए खेमे को मजबूती दी है बल्कि भारतीय राजनीति में वैचारिक बहस को भी एक नई दिशा दी है।