ट्रम्प का सीधा खेल और बाइडेन से अंतर
डोनाल्ड ट्रम्प की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह जो भी करते हैं, खुलेआम करते हैं।
न किसान आंदोलन खड़ा कराते हैं, न कनाडा या खालिस्तान के जरिये भारत को अस्थिर करते हैं, न मणिपुर में मिशनरियों के जरिए दंगे भड़काते हैं। बाइडेन की तरह पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन की साज़िशें भी नहीं रचते।
ट्रम्प अगर पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर को बुलाना चाहते हैं, तो सीधे बुलाते हैं। अगर भारत पर दबाव बनाना है तो सामने से बोलते हैं।
उनकी शैली प्रत्यक्ष है, छुपकर वार करने वाली नहीं। इसलिए जो लोग मानते हैं कि ट्रम्प भारत में बाइडेन जैसी साजिशें रचेंगे, वे गलत हैं।
भारत को बाहरी दबाव से घेरने की रणनीति
ट्रम्प का हस्तक्षेप भारत के भीतर नहीं बल्कि बाहर होगा। यह दबाव सीमा विवाद के माध्यम से भी आ सकता है और व्यापारिक मोर्चे से भी।
लेकिन भारत ने चीन से तनाव कम कर लिया है, जिससे दोनों स्थितियों को सहजता से संभालने की क्षमता हासिल कर ली है।
दुनिया के लिए बदलाव का वाहक ट्रम्प
आज भले ही ट्रम्प अभिशाप जैसे लगते हों, पर वास्तव में वह तेजी से वैश्विक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं।
पाँच सौ वर्षों से चला आ रहा ब्रिटिश-अमेरिकी साम्राज्यवाद अब दरक रहा है और इसका वाहक ट्रम्प ही बन रहे हैं। वह यूरोप को यह समझा रहे हैं कि सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं लेनी होगी।
ट्रम्प ने एशिया को भी संदेश दिया है कि चीन और भारत अगर आगे बढ़ना चाहते हैं तो सीमा विवाद सुलझाकर सहमति के रास्ते निकालें। इसी सोच ने भारत-चीन समीपता को गति दी है।
सामाजिक और वैचारिक बदलाव
बाइडेन कार्यकाल में तेजी से फैला LGBTQ एजेंडा ट्रम्प की मौजूदगी में कमजोर पड़ा है। महज कुछ महीनों में ही दुनिया इस पागलपन से दूरी बनाती नजर आ रही है।
भारत के लिए आपदा में अवसर
ट्रम्प ने भारत और चीन को समीप लाने के लिए मजबूर किया। परिणामस्वरूप वैश्विक मीडिया में भारत का गुणगान हो रहा है।
बड़े-बड़े विद्वान कह रहे हैं कि भारत बहुत सहनशील है, लेकिन अपनी संप्रभुता पर चुनौती कभी स्वीकार नहीं करेगा। इस तरह का वैश्विक प्रचार भारत के लिए अभूतपूर्व है।
नैरेटिव बिल्डिंग की अहमियत
इस दौर ने यह भी दिखाया है कि नैरेटिव बिल्डिंग कितनी जरूरी है। चीन ने मीडिया और विद्वानों पर निवेश कर रखा है और अपनी आवश्यकता के अनुसार उनका इस्तेमाल करता है। भारत के लिए यह एक बड़ा सबक है।
आर्थिक सुधारों पर ट्रम्प का दबाव
जीएसटी में अचानक किए गए बदलाव और सेमीकंडक्टर प्लांट की गति, इन सबके पीछे ट्रम्प का दबाव भी है।
जर्मनी, ब्रिटेन और सिंगापुर जैसे देशों के साथ तेजी से हुए समझौते इसी वैश्विक दबाव का परिणाम हैं।
दीर्घकालिक लाभ का संकेत
भले ही ट्रम्प के कदम तात्कालिक रूप से अशांतकारी दिखें, लेकिन दीर्घ दृष्टि से यह विश्व व्यवस्था को आत्मनिर्भर और संतुलित बनाने की दिशा में सकारात्मक कदम साबित हो रहे हैं।
ट्रम्प देशों को मजबूर कर रहे हैं कि वे अपनी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था की जिम्मेदारी स्वयं उठाएं। यही भविष्य के लिए अच्छा है।