ट्रम्प की पलटी और भारत पर नया बयान, मगर असली सवाल अब भी वही
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर अपने पुराने रुख से यू-टर्न लिया है। आज उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते बेहद महत्वपूर्ण हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक शानदार व्यक्ति हैं।
ट्रम्प ने मौजूदा तनाव को केवल “एक क्षण” करार दिया, स्थायी स्थिति नहीं बताया।
ट्रम्प का यह बयान साफ संकेत देता है कि वह अपने ही दो शीर्ष कैबिनेट सहयोगियों को संदेश देना चाहते हैं, जो लगातार टीवी चैनलों पर भारत के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रम्प यह जिम्मेदारी दूसरों को नहीं देना चाहते, भड़काऊ बयानबाजी का काम वह खुद अपने हाथ में रखते हैं।
पीएम मोदी ने दी ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया
पीएम मोदी ने ट्रंप के इस बयान पर ट्रंप को टैग करते हुए लिखा, “राष्ट्रपति ट्रम्प की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की मैं तहे दिल से सराहना करता हूँ और उनका पूर्ण समर्थन करता हूँ। भारत और अमेरिका के बीच एक अत्यंत सकारात्मक और दूरदर्शी व्यापक एवं वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है।”
समझौते की कोशिशें और भारत की विदेश नीति का अडिग रुख
ट्रम्प का ताजा बयान इस ओर इशारा करता है कि वह भारत के साथ दोबारा नए सिरे से समझौते की कोशिश कर सकते हैं।
हालांकि, इतिहास गवाह है कि पंडित नेहरू के समय से ही भारत ने तय कर रखा है कि उसकी विदेश नीति किसी दूसरे देश की शर्तों पर नहीं चलेगी।
यह सही है कि लंबे समय तक भारत ने सोवियत संघ के दबाव में अपने संबंधों को संचालित किया, बावजूद इसके उसने हमेशा खुद को गुटनिरपेक्ष ही बताया।
व्यवहार में कई बार स्वतंत्र विदेश नीति डगमगाई हो सकती है, लेकिन सिद्धांत रूप से इसे कभी नहीं छोड़ा गया। यही कारण है कि भारत किसी भी कीमत पर अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा।
इतिहास की कसौटी और भारत की संप्रभुता की ताकत
ट्रम्प को शायद यह समझने में समय लगेगा कि जो देश एक हज़ार साल तक विदेशी आक्रांताओं, क़ासिम, ग़ज़नी, गोरी, खिलजी, ग़ुलाम, लोदी, मुग़ल, फ्रांसीसी, पुर्तगाली और ब्रिटिश, को झेलने के बाद आज़ादी तक पहुंचा है, वह अपनी संप्रभुता कभी दांव पर नहीं लगा सकता।
भारत के लिए यह संप्रभुता बीते हजार वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। अगर यह सुरक्षित रही तो देश सब कुछ खोकर भी दोबारा खड़ा हो जाएगा।
लेकिन अगर इसे गंवा दिया गया, तो सब कुछ इकट्ठा करके भी राष्ट्र अपनी असली ताकत खो बैठेगा। जब तक ट्रम्प इस सच्चाई को नहीं समझेंगे, रिश्तों में स्थायित्व मुश्किल ही रहेगा।
मजबूत कारोबारी रिश्ते और ट्रम्प का सीमित समय
भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापारिक साझेदारी ने दोनों देशों के लोगों के रिश्तों को बेहद मजबूत कर दिया है।
पीपल-टू-पीपल रिलेशन इतने गहरे हैं कि केवल सरकारी फैसलों से इन्हें तुरंत खत्म करना संभव नहीं।
साथ ही, ट्रम्प के पास महज तीन साल की सत्ता शेष है। उसके बाद उनकी वापसी की संभावना न के बराबर है।
राष्ट्रों के इतिहास में तीन साल कोई बड़ी अवधि नहीं होती। एक साल तो पहले ही उनकी बयानबाजी में गुजर गया।
और बचे दो साल जल्द ही विदाई के दौर में ढल जाएंगे। इसलिए भारत-अमेरिका के रिश्ते इतनी आसानी से टूटने वाले नहीं हैं।