Friday, November 28, 2025

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: लगातार मौतों से उबल रहा BLO सिस्टम और भड़क रही राज्यीय राजनीति

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बीच देश के कई राज्यों में BLO की मौतों का सिलसिला अचानक तेज़ हो गया है। जहां चुनाव आयोग इस बड़े अभियान को तेजी से पूरा करवाने में जुटा है, वहीं जमीन पर काम कर रहे BLO लगातार तनाव, दबाव और थकावट से जूझ रहे हैं।

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यही हालात अब राजनीतिक बहस को भी भड़का रहे हैं—TMC और BJP एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं, जबकि राजस्थान, केरल और बंगाल जैसे राज्यों में कर्मचारी संगठनों ने खुले तौर पर विरोध शुरू कर दिया है।

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: चुनाव व्यवस्था की खामोश रीढ़, जिन पर काम का पहाड़ टूट पड़ा

BLO यानी बूथ लेवल ऑफिसर—ये वे कर्मचारी हैं जो चुनाव आयोग की पूरी मशीनरी को जमीन पर सहारा देते हैं। शिक्षक हों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हों या विभागीय कमर्चारी—इनमें से ही किसी को BLO बनाया जाता है।

हर BLO को 1,000–1,500 वोटरों की लिस्ट का जिम्मा दिया जाता है, जिसमें नाम जोड़ने से लेकर नाम हटाने, घर-घर जाकर सत्यापन करने और फॉर्म भरवाने तक का पूरा भार उन्हीं पर होता है।

इस बार की चुनौती यह है कि SIR को सिर्फ एक महीने में खत्म करना है। पहले यही काम क्रमशः कई महीनों तक चलता था, लेकिन अब 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक की समय-सीमा ने हालात बदतर कर दिए हैं। 12 राज्यों में करोड़ों वोटरों की लिस्ट अपडेट करने की तंग डेडलाइन से BLO का वर्कलोड अचानक कई गुना बढ़ गया।

काम के दबाव में टूटती जिंदगियां: अलग-अलग राज्यों से आई दर्दनाक घटनाएं

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: हाल के दिनों में कई राज्यों से BLO की मौतों की खबरें आईं—कहीं हार्ट अटैक, कहीं सुसाइड और कहीं स्ट्रोक। आंकड़ों को लेकर विवाद जरूर है, लेकिन घटनाएं वास्तविक हैं और लगातार बढ़ रही हैं।

गुजरात:

एक स्कूल प्रिंसिपल, जिनकी BLO ड्यूटी उनके मूल कार्यस्थल से 48 किलोमीटर दूर लगाई गई थी। रोज़ लगभग 100 किलोमीटर की यात्रा और डेडलाइन का दबाव—हार्ट अटैक ने उनकी जान ले ली।

राजस्थान:

दो अलग-अलग मामलों में BLO की मौत—एक ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी, एक और को फोन कॉल के तुरंत बाद हार्ट अटैक आया। परिवारों का आरोप साफ है—“ऊपर से लगातार दबाव, धमकियाँ और वर्कलोड।”

पश्चिम बंगाल:

एक महिला BLO ब्रेन स्ट्रोक से चल बसी, दूसरी ने आत्महत्या कर ली। दोनों के परिवारों का कहना है—तनाव इतना बढ़ गया था कि वे ठीक से सो भी नहीं पा रही थीं।

मध्य प्रदेश और केरल:

निलंबन, कार्यवाही और सुपरवाइजर दबाव के बीच BLO की मौतें, जिनसे स्थानीय कर्मचारी संगठनों में उबाल आ गया है।

क्यों SIR बना दबाव का पहाड़? तैयारी कम, लक्ष्य ज्यादा

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: SIR को 12 राज्यों में एक साथ लागू कर दिया गया, लेकिन इसकी तैयारी उतनी मजबूत नहीं थी। न ऐप ठीक से काम कर रहा, न पर्याप्त स्टाफ मिला, न ही कोई विशेष राहत।

BLO कह रहे हैं—

घर-घर जाकर फॉर्म देना-लेना

रोज़ाना किलोमीटरों पैदल चलना

ऐप क्रैश होने पर डेटा बार-बार भरना

नियमित सरकारी काम भी साथ में

और ऊपर से सुपरवाइजरों के फोन

इन सबने माहौल ऐसा बनाया है, जहां कई BLO नींद, आराम और मानसिक स्थिरता तक खो बैठे हैं।

सियासी ठन-ठनाट: TMC का हमला, BJP का पलटवार, और बीच में फंसा आयोग

SIR वर्कलोड ने बिगाड़ा संतुलन: यह मुद्दा अब सियासी तलवार बन चुका है।
TMC का आरोप है कि—

SIR को चुनावी फायदे के लिए गलत समय पर लागू किया गया

गरीब, आदिवासी, मतुआ जैसी कम्युनिटीज़ के वास्तविक वोटरों के नाम कट रहे हैं

BLO की मौतें चुनाव आयोग की लापरवाही का नतीजा हैं

ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया कि “यह अमानवीय कार्यभार लोगों की जान ले रहा है।”

इसके जवाब में BJP कहती है—

बंगाल में फर्जी और घुसपैठिए वोटर वर्षों से वोट बैंक बने हुए हैं

SIR से फर्जी नाम हट रहे हैं, इसलिए TMC बौखलाई हुई है

BLO पर तनाव TMC की स्थानीय राजनीति और दबाव की वजह से भी बढ़ रहा है

राजनीति की यह लड़ाई अब SIR को लेकर नहीं रही—बल्कि इस बात पर अटक गई है कि किसका वोट बैंक बच रहा है और कौन खो रहा है।

कर्मचारी संगठनों का गुस्सा: “BLO मशीन नहीं हैं, इंसान हैं”

राजस्थान, केरल, बंगाल और गुजरात में कई जगह BLO संगठन खुलकर विरोध में उतर आए हैं।
कैंडल मार्च, धरने, ज्ञापन—कर्मचारी साफ कह रहे हैं:

हमें इंसानी सीमा से बाहर जाकर काम करने को कहा जा रहा है, हमारे पास संसाधन नहीं,सुरक्षा नहीं, और न ही मानसिक सपोर्ट ।

वे मांग कर रहे हैं कि SIR को रोका जाए या कम से कम वर्कलोड कम किया जाए।

चुनाव आयोग अभी भी चुप—यही चुप्पी विवाद को और बढ़ा रही है

20 नवंबर 2025 तक चुनाव आयोग ने न तो BLO मौतों पर और न ही ममता बनर्जी के “28 मौतों” वाले दावे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया दी है।
इस चुप्पी के कारण विवाद और बढ़ रहा है और राज्यों में कर्मचारी और राजनीतिक दल दोनों स्पष्ट जवाब की मांग कर रहे हैं।

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