Shubhankar Mishra Podcast: प्रेमानंद महाराज पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं।
उनके प्रवचन लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँचते हैं और कई बड़े फिल्मी सितारे तक उनसे मिलने के लिए मथुरा-वृंदावन पहुँचते हैं।
उनके अनुयायियों का मानना है कि महाराज के प्रवचन और जीवन की सरलता ही उन्हें खास बनाती है।
लेकिन हाल ही में जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनकी लोकप्रियता बस थोड़े समय की है और उन्हें अभी और पढ़ने-लिखने की ज़रूरत है।
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“विद्वान या चमत्कारी नहीं”, रामभद्राचार्य
Shubhankar Mishra Podcast: शुभांकर मिश्रा के पॉडकास्ट में बात करते हुए जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि “मैं प्रेमानंद से कोई द्वेष नहीं रखता।
वह मेरे बालक जैसे हैं। लेकिन मैं उन्हें न तो विद्वान कह रहा हूँ और न ही चमत्कारी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि चमत्कार वही कहलाता है, जो शास्त्रीय चर्चा के बीच सहजता से सिद्ध हो।
प्रेमानंद महाराज को लेकर उन्होंने कहा कि वे और अधिक पढ़ाई-लिखाई करें तो बेहतर होगा।
नीम करोली बाबा पर भी टिप्पणी
Shubhankar Mishra Podcast: इसी पॉडकास्ट में जब उनसे नीम करोली बाबा को लेकर पूछा गया कि क्या उन्हें हनुमानजी का अवतार कहना उचित है, तो जगद्गुरु ने जवाब दिया कि यह अतिरंजना होगी।
उन्होंने कहा कि हनुमानजी को किसी अवतार की आवश्यकता नहीं है, वे चारों युगों में विद्यमान हैं।
हाँ, नीम करोली बाबा पर हनुमानजी की विशेष कृपा ज़रूर रही होगी।
क्या सही थे ये प्रश्न?
Shubhankar Mishra Podcast: यहीं से विवाद की शुरुआत होती है। आलोचकों का कहना है कि पॉडकास्ट का उद्देश्य ज्ञानवर्धन होना चाहिए, न कि सतही स्तर के सवालों से व्यूज़ बटोरना।
सवाल यह उठता है कि क्या प्रेमानंद महाराज ने कभी खुद को चमत्कारी या विद्वान बताया?
वास्तविकता यह है कि प्रेमानंद महाराज अक्सर अपने प्रवचनों में कहते हैं कि वे बहुत कम पढ़े-लिखे हैं और कभी चमत्कार का दावा नहीं करते।
ऐसे में उनके बारे में “विद्वान या चमत्कारी” होने पर राय पूछना कितना सार्थक है?
उन्होनें कभी ये नहीं कहा वो डायलिसिस नहीं कराते। तो फिर इस तरह का बकवास सवाल उनसे पूछा ही क्यों गया?
अनुचित तुलना और व्यूज़ का खेल
Shubhankar Mishra Podcast: लोगों का कहना है कि जब आपके सामने रामभद्राचार्य जैसे गहन विद्वान बैठे हों, तो उनसे समाज, धर्म, शास्त्र और जीवन के मूल्यों पर प्रश्न किए जाने चाहिए।
इसके बजाय यदि उनसे पूछा जाए कि अमुक संत को लोग क्यों विद्वान या चमत्कारी कहते हैं, तो यह पॉडकास्ट के स्तर को गिराने जैसा है।
यहाँ तक कहा गया कि अगर सात मिलियन सब्सक्राइबर वाला पॉडकास्टर भी दो कौड़ी के प्रश्न करेगा, तो वह अपने ही दर्शकों के साथ अन्याय करेगा।