Thursday, September 19, 2024

Rani Lakshmibai Death Anniversary: “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थीं “

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Rani Lakshmibai Death Anniversary: बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी… हम सबका बचपन इन्हीं कविताओं को पढ़ते और वीरांगनाओं की गाथाएं सुनते हुए बीता है।रानी लक्ष्मी एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्हें मरना मंजूर था लेकिन अग्रेजों की हुकूमत नहीं। 18 जून, 1958 की सुबह रानी लक्ष्मीबाई की आखरी सुबह थी। केवल 29 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते-लड़ते शहीद हो गयी। आज उनका बलिदान दिवस है। आइये जानते हैं आज उनके जीवन की गाथा।

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Rani Lakshmibai Death Anniversary: बचपन में मणिकर्णिका, सबकी प्यारी मनु

रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 9 नवंबर, 1828 में बनारस के एक मराठी परिवार में हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था, लेकिन सब उन्हें प्यार से मनु बुलाते हैं। मनु बचपन से ही शास्त्र हुए शस्त्रों में माहिर थी। ये कोई साधारण महिला नहीं थी ,सुंदरता के साथ साथ ये साहस का भी प्रतीक हैं। इनकी गाथाएं सुनकर हम सबका बचपन बीता है और आज भी हम सब इन्हीं गाथाओं से प्रेरित होते हैं।

ऐसे मिला था रानी लक्ष्मीबाई का नाम

1842 में मणिकर्णिका की शादी हो गयी। उनकी शादी झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवलेकर से हुई थी। शादी के बाद मणिकर्णिका को रानी लक्ष्मीबाई का नाम दिया गया। इस नाम से आज उन्हें सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व जानता है। वीरता तो रानी लक्ष्मीबाई के कण-कण में बसी थी।

रानी लक्ष्मीबाई को क्यों संभालना पड़ा साम्राज्य

विवाह के कुछ समय बाद ही रानी ने पुत्र को जन्म दिया, लेकिन केवल 4 महीनों में ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गयी। ना जाने कैसे किस्मत पलटी और शादी के 11 साल बाद ही महाराजा की भी मृत्यु हो गयी। पति और अपने बेटे को खोने के बाद रानी ने ठान ली थी कि चाहे जो हो जाए वो अपना साम्राज्य (झांसी) और वहां के लोगों पर आंच तक नहीं आने देंगी जिसके चलते उन्होनें झांसी की भागदौड़ अपने हाथों में ले ली।

झांसी पर अंग्रेजों की थी नजर

झांसी के महाराजा क्र मृत्यु के बाद अंग्रेजों को ये समझ आ गया था कि झांसी पर कब्ज़ा करने का ये अच्छा समय है। उस समय भारत में ब्रिटिश इंडिया कंपनी कि वायसरॉय डलहौजी थे। उन्हें ऐसा इसलिए लगा क्यूंकि वहां कि रक्षा करने के लिए और जंग लड़ने के लिए झांसी के पास कोई नहीं था। इसके बाद उसने रानी लक्ष्मीबाई से बातचीत कर समझौता करने का सोचा और उनसे बातचीत शुरू की।

दत्तकपुत्र को उत्तराधिकारी बनाना अंग्रेजों को नहीं था मंजूर

अंग्रजी हुकूमत ने लगातार रानी लक्ष्मीबाई पर दबाव डालना शुरू कर दिया था। रानी समझ चुकी थी अंग्रेजों की नजर अब झांसी पर थी जिसके चलते उन्होनें महाराजा गंगाधर के चचेरे भाई दामोदर को अपना दत्तक पुत्र बना लिया, लेकिनअंग्रेजों ने उसे झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने रानी को 60000 सालाना पेंशन लेने को कहा, और झांसी का किला उनके हवाले करने को कहा।

रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसे बनाई रणनीति

रानी समझ गयी थी की अब अंग्रेज जोर-जबरदस्ती से झांसी को अपने कब्जे में करने का प्रयास करेंगे। रानी लक्ष्मीबाई ने फिर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाई जिसमें उन्होनें अंग्रेजों से बगावत करने का तय किया।

रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने के लिए दोस्त खान, गुलाम गौस खान,खुदा बख्श, काशी बाई, लाला भाई बख्शी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह और दीवान जवाहर सिंह के साथ मिलकर 14000 बागियों की एक फौज तैयार कर ली। इस फौज में शामिल काशी बाई बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की परछाई की तरह थी।

रानी को अंग्रेजी हुकमत नहीं थी स्वीकार

रानी लक्ष्मीबाई कभी भी अंग्रेजों से भिड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन उन्होनें सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए वो कभी अंग्रेजों की हुकूमत तो स्वीकार नहीं करेंगी। किस भी परिस्थिति में अपना साम्राज्य, झांसी अंग्रेजों को नहीं देंगी। ऐसा कहा जाता है की अंग्रेजों ने रानी को बिना किसी हथियार के मिलने को कहा था लेकिन रानी को उन पर बिलकुल विश्वास नहीं था। रानी ने अंग्रेजों से मिलने के लिए साफ इंकार कर दिया था।

पुत्र को पीठ पर बांध कर जंग में उतरी थीं रानी

23 मार्च, 1858 को बिर्टिश सेना ने झांसी पर हमला कर दिया। 30 मार्च को भारी बमबारीकरअंग्रेज किले की दीवार में तोड़कर झांसी में घुसने में कामयाब हो गए। जिसके बाद 17 जून, 1858 को रानी जंग के मैदान में उतरी, लेकिन इस बात का अंदाज़ा न तो उन्हें था न ही किसी और को कि ये जंग उनकी जिंदगी की आखरी जंग होगी। उन्होनें पूरी झब अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर लड़ी।

क्यों हुई रानी की मौत, ये एक बड़ा सवाल

रानी की मौत को लेकर कई मत हैं। गौरतलब है कि इनकी मौत को लेकर काफी असमंजस बना रहता है। लेकिन ज्यादा लोग एकमत होते हैं लार्ड कैनिंग कीइस रिपोर्ट पर। इस रिपोर्ट के मुताबिक, रानी को सैनिक ने पीछे से गोली मारी, इसके बाद जब वह अपने घोड़े को मोड़ती है और उस सैनिक पर गोली चलाती हैं, लेकिन वो बच जाता है और अपनी तलवार से रानी लक्ष्मीबाई को मार देता है।

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