Friday, December 5, 2025

भारत का इतिहास: अकबर के सामने नहीं झुकीं रानी दुर्गावती,मातृभूमि और आत्मसम्मान के लिए दिया बलिदान

भारत का इतिहास: भारत के इतिहास में कई वीरांगनाएँ हुईं, जिन्होंने अपने साहस, पराक्रम और बलिदान से अमिट छाप छोड़ी।

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इन्हीं में से एक थीं गोंडवाना की महारानी रानी दुर्गावती, जिन्हों ने 1562 में मुगलों से युद्ध करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

भारत का इतिहास: उनका जीवन त्याग, नारी-शक्ति और मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है।

भारत का इतिहास: जन्म और आरंभिक जीवन

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को उत्तर प्रदेश के कालिंजर किले में हुआ। उनका जन्म दुर्गाष्टमी के दिन हुआ था, इसलिए उनका नाम दुर्गावती रखा गया।

भारत का इतिहास: वे चंदेल वंश के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं। बचपन से ही उनमें साहस, पराक्रम और युद्धकला के प्रति गहरी रुचि दिखाई देती थी।

भारत का इतिहास: विवाह और शासन की बागडोर

भारत का इतिहास: रानी दुर्गावती का विवाह गोंडवाना साम्राज्य के शासक संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ।

लेकिन विवाह के कुछ ही वर्षों बाद राजा दलपत शाह का निधन हो गया। उस समय उनका पुत्र नारायण सिंह मात्र तीन वर्ष का था।

ऐसे कठिन समय में रानी दुर्गावती ने दृढ़ निश्चय के साथ गोंडवाना की बागडोर संभाली और शासन का केंद्र वर्तमान जबलपुर को बनाया।

भारत का इतिहास: अकबर की सेना से टकराव

भारत का इतिहास: 1562 में मुगल सम्राट अकबर की सेना ने गोंडवाना पर आक्रमण किया।

संख्या में कम होते हुए भी रानी दुर्गावती ने हार मानने से इनकार किया और युद्धभूमि में डटकर सामना किया।

प्रारंभिक चरण में उनकी सेना ने मुगलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। लेकिन अगले ही दिन शत्रु भारी सेना के साथ लौटा।

भारत का इतिहास: रानी दुर्गावती अपने प्रसिद्ध सफेद हाथी पर सवार होकर रणभूमि में उतरीं।

युद्ध के दौरान उनका पुत्र घायल हो गया, जिसे उन्होंने सुरक्षित स्थान पर भेजा।

अंत तक लड़ते हुए उनके पास केवल 300 सैनिक बचे और वे स्वयं भी गंभीर रूप से घायल हो गईं।

भारत का इतिहास: रणभूमि में दिया आत्मबलिदान

जब रानी दुर्गावती को एहसास हुआ कि युद्ध की दिशा अब पलटना असंभव है, तब उनके सैनिकों ने उनसे जीवन बचाने की विनती की।

लेकिन रानी ने पीछे हटना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने दीवान आधार सिंह से प्राण लेने को कहा, मगर वे तैयार नहीं हुए।

भारत का इतिहास: अंततः रानी ने अपनी कटार अपने सीने में भोंककर आत्मबलिदान दे दिया।

यह घटना भारतीय इतिहास में साहस और आत्मसम्मान की सर्वोच्च मिसाल बन गई।

भारत का इतिहास: रानी दुर्गावती की विरासत

रानी दुर्गावती केवल गोंडवाना की ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की वीरांगना थीं।

उनका नाम आज भी महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं के साथ लिया जाता है।

भारत का इतिहास: गोंडवाना की धरती पर उनका बलिदान आज भी लोगों के लिए प्रेरणा है।

वे भारतीय इतिहास की उस परंपरा की प्रतिनिधि हैं, जहाँ नारी ने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति देने में भी संकोच नहीं किया।

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