Saturday, May 31, 2025

PROF. ANIL KUMAR BORO: प्रो. अनिल कुमार बोरों पद्मश्री से सम्मानित, बोडो साहित्य और लोकसंस्कृति के सशक्त संवाहक

PROF. ANIL KUMAR BORO: 9 दिसंबर 1961 को असम के कहितामा गांव (मानस नेशनल पार्क के निकट) में जन्मे प्रो. अनिल कुमार बोरों ने एक ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपना स्थान बनाया।

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शैक्षणिक योग्यता और करियर की शुरुआत

PROF. ANIL KUMAR BORO: उन्होंने गुवाहाटी विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की और बाद में लोककथा अनुसंधान विभाग से पीएच.डी. की।

1988 में डिमोरिया कॉलेज से बतौर लेक्चरर अपने करियर की शुरुआत की और वर्ष 2000 में गुवाहाटी विश्वविद्यालय के लोककथा विभाग से जुड़ गए।

साहित्यिक योगदान

PROF. ANIL KUMAR BORO: प्रो. बोरों ने अब तक 30 से अधिक पुस्तकें लिखी और संपादित की हैं, जिनमें कविता, आलोचना, उपन्यास, बाल साहित्य, यात्रा-वृत्तांत और लोक साहित्य प्रमुख हैं।

उनकी प्रमुख कृतियों में Folk Literature of the Bodos, A History of Bodo Literature, The Flute and the Harp, Delphini Onthai जैसी किताबें शामिल हैं।

वैश्विक साहित्य का बोडो में अनुवाद

PROF. ANIL KUMAR BORO: उन्होंने कई विदेशी भाषाओं से बोडो में साहित्य का अनुवाद किया है, जिससे बोडो पाठकों को विश्व साहित्य से जोड़ा जा सका। इससे भाषाओं और संस्कृतियों के बीच सेतु निर्माण हुआ।

साहित्यिक पत्रिकाओं का संपादन

PROF. ANIL KUMAR BORO: वे The Bodo Quarterly Journal of Folklorists और Thunslai जैसी पत्रिकाओं के संपादन में भी सक्रिय रहे हैं, जो बोडो साहित्यिक विमर्श को मजबूत करने में सहायक रही हैं।

मातृभाषा और नई शिक्षा नीति में योगदान

PROF. ANIL KUMAR BORO: प्रो. बोरों ने बोडो भाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को बोडोलैंड में लागू कराने में अग्रणी भूमिका निभाई।

वे बोडो साहित्य सभा के सक्रिय सदस्य रहे हैं और 2021 से कोकराझार लिटरेरी फेस्टिवल के प्रमुख आयोजकों में से एक हैं।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व

PROF. ANIL KUMAR BORO: प्रो. बोरों ने ग्रीस, इटली, लिथुआनिया, डेनमार्क और चीन जैसे देशों में बोडो साहित्य और भारतीय लोकसंस्कृति का प्रतिनिधित्व किया है, जिससे बोडो संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली।

प्रमुख पुरस्कार और सम्मान

साहित्य अकादमी पुरस्कार (2012)

रंगसर साहित्य सम्मान

साहित्य साधना बोथा (2024)

और अब उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है।

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