प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: बिहार की राजनीति में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी की हो रही है। नई राजनीति का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की है, जिसमें भागलपुर से वकील अभयकांत झा को टिकट दिया गया है।
लेकिन इस नाम के पीछे की रणनीति ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। सवाल यह उठ रहा है कि जब उम्मीदवार हिंदू हैं, तो इसे ‘मुस्लिम कार्ड’ क्यों कहा जा रहा है?
Table of Contents
जनसुराज की नई सूची में पेशेवरों की भरमार
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: प्रशांत किशोर की दूसरी सूची में कुल 65 उम्मीदवार शामिल हैं। इनमें 7 वकील, 9 डॉक्टर और 4 इंजीनियर हैं। यानी इस बार प्रशांत ने राजनीति में शिक्षित और प्रोफेशनल लोगों को प्राथमिकता दी है।
लेकिन इस पूरी सूची में सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरने वाला नाम अभयकांत झा का है।
कौन हैं अभयकांत झा?
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: 74 वर्षीय अभयकांत झा भागलपुर सिविल कोर्ट के सीनियर एडवोकेट हैं और बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
वे लंबे समय से जनहित के मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। झा की छवि एक ईमानदार, सुलझे हुए और समाजसेवी व्यक्ति के रूप में जानी जाती है।
वे शिक्षा, समाज सेवा और कानूनी सहायता से जुड़े कई अभियानों का हिस्सा रहे हैं।
1989 के भागलपुर दंगे से जुड़ी है झा की पहचान
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: अभयकांत झा का नाम 1989 के भागलपुर दंगे से भी जुड़ा है। उन्होंने उस समय मुस्लिम पीड़ितों के केस मुफ्त में लड़े थे, जिससे उन्हें मुस्लिम समुदाय में काफी सम्मान मिला।
रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने करीब 880 मुस्लिम पीड़ितों की मदद की थी। यही वजह है कि आज, उनके टिकट को ‘मुस्लिम कार्ड’ कहा जा रहा है।
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रशांत किशोर ने यह कदम बहुत सोच-समझकर उठाया है — ताकि एक ओर वे ब्राह्मण समाज को साथ रख सकें और दूसरी ओर मुस्लिम मतदाताओं को भी यह संदेश दे सकें कि जनसुराज की राजनीति न्याय और संवेदनशीलता पर आधारित है।
भागलपुर दंगे की पृष्ठभूमि
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: 24 अक्टूबर 1989 को भागलपुर में राम शिला पूजन यात्रा निकाली गई थी, जिसमें हजारों हिंदू शामिल हुए। लेकिन यात्रा के दौरान भड़काऊ नारे लगे और स्थिति बिगड़ गई
अफवाहों और हिंसा की आग इतनी फैली कि सैकड़ों लोगों की जान गई और हजारों को पलायन करना पड़ा।
दंगे में 116 मुस्लिमों को मारकर दफनाया गया और ऊपर गोभी की फसल बो दी गई थी — यह बिहार के इतिहास का एक सबसे भयावह सांप्रदायिक संघर्ष था।
भागलपुर सीट का चुनावी समीकरण
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: वर्तमान में भागलपुर सीट से कांग्रेस के अजीत शर्मा विधायक हैं, जबकि जेडीयू के अजय कुमार मंडल दूसरे स्थान पर रहे थे।
इस सीट पर 26% मुस्लिम आबादी है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत का निर्णायक कारक बन सकती है।
प्रशांत किशोर ने इस समीकरण को ध्यान में रखकर अभयकांत झा को उतारा है — ताकि ब्राह्मण और मुस्लिम दोनों वोट बैंक को साधा जा सके।
रणनीति या सॉफ्ट पॉलिटिक्स?
प्रशांत किशोर का ‘दोहरा दांव’: राजनीति के जानकारों का कहना है कि प्रशांत किशोर का यह कदम उनकी ‘इमेज पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है।
झा जैसे चेहरे को उतारकर वे यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी पार्टी सिर्फ भाषणों में नहीं, कर्मों में भी इंसाफ की बात करती है।
वहीं विरोधी दल इसे महज़ एक चुनावी स्टंट बता रहे हैं, लेकिन एक बात तो तय है — भागलपुर सीट अब बिहार चुनावों में सबसे दिलचस्प मुकाबले में से एक बन चुकी है।