दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: दुनिया के ज्यादातर राष्ट्रप्रमुखों की आधिकारिक कारें काले रंग की होती हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हमेशा काले रंग की ही कार से सफर करते हैं और उनका पूरा सुरक्षा काफिला भी ब्लैक कलर का होता है।
यह चलन वर्षों पुराना है और इसके पीछे सुरक्षा, मनोविज्ञान और परंपरा—तीनों की बड़ी भूमिका है।
मोदी और अन्य देशों के नेताओं की काली कारों की वजह
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: प्रधानमंत्री मोदी का मोटरकेड 25–30 वाहनों का होता है और लगभग सभी वाहन काले रंग के होते हैं।
सिर्फ मोदी ही नहीं, बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री, रूस के राष्ट्रपति और फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों के शीर्ष नेता भी इसी रंग की गाड़ियों में चलते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि काला रंग अधिकार, औपचारिकता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। साथ ही यह रंग सुरक्षा के लिए भी अत्यंत उपयुक्त है।
सुरक्षा कारण, काला रंग बचाता है हमलों से
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: काले रंग को सुरक्षा एजेंसियां सबसे सुरक्षित मानती हैं। दूर से देख कर यह पहचानना मुश्किल होता है कि किस कार में कौन बैठा है।
स्नाइपर या किसी संभावित हमलावर के लिए भी काले कांच और काले पेंट वाली कार में बैठे व्यक्ति को निशाना बनाना कठिन होता है।
काला रंग कम ध्यान आकर्षित करता है और किसी भी भीड़भाड़ वाली जगह पर मोटरकेड को ‘ब्लेंड’ करने में मदद करता है।
यही कारण है कि दुनिया की ज्यादातर सुरक्षा एजेंसियां ब्लैक मोटरकेड ही इस्तेमाल करती हैं।
काला रंग क्यों दिखाता है सत्ता और अधिकार
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: काला रंग शक्ति, सम्मान, अधिकार और गंभीरता का प्रतीक है।
मनोविज्ञान के हिसाब से यह रंग नेतृत्व की गरिमा को सबसे अधिक दर्शाता है।
अमेरिका में राष्ट्रपति की ‘द बीस्ट’ ब्लैक रंग में ही होती है, और यही परंपरा बाद में पूरी दुनिया ने अपनाई। ब्लैक लिमोज़ीन दुनिया भर में सत्ता का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुकी है।
मोटरकेड की एकरूपता, सुरक्षा का बड़ा हिस्सा
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: पूरे काफिले का एक ही रंग में होना सुरक्षा प्रोटोकॉल का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जब सभी गाड़ियां एक जैसी दिखती हैं, तो हमलावरों के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि मुख्य वाहन कौन सा है।
सुरक्षा अधिकारियों को भी पूरे मोटरकेड की निगरानी एकसमान सेटअप में करना आसान होता है।
किसी बाहरी वाहन का अचानक घुसपैठ करना भी लगभग असंभव हो जाता है, क्योंकि रंग और पैटर्न तुरंत अलग दिख जाते हैं।
क्यों शुरू में लग्जरी कारें सिर्फ काली हुआ करती थीं?
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: 1886 से 1920 के शुरुआती दौर में कार पेंटिंग टेक्नोलॉजी सीमित थी और काला इनेमल पेंट सबसे ज्यादा टिकाऊ और तेजी से सूखने वाला था।
इसलिए महंगी और लग्जरी कारें लगभग हमेशा काले रंग में ही बनती थीं।
समय के साथ काला रंग विलासिता और सत्ता का प्रतीक बन गया। राष्ट्राध्यक्षों ने भी इसे अपनी पहचान के रूप में अपनाया।
क्या हर देश में नेता काली कार ही इस्तेमाल करते हैं?
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: हालांकि 90% देशों में यह परंपरा है, लेकिन कुछ अपवाद भी मौजूद हैं।
जापान के सम्राट की आधिकारिक कार, टोयोटा सेंचुरी रॉयल, काले के बजाय गहरे नेवी ब्लू रंग में होती है।
ब्रिटेन में किंग चार्ल्स की बेंटले स्टेट लिमोज़ीन मैरून कलर में है, लेकिन उनकी सुरक्षा गाड़ियां फिर भी काली ही होती हैं।
फिलीपींस जैसे कुछ देशों में राष्ट्राध्यक्ष कभी-कभी सफेद कारों का उपयोग करते रहे हैं।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों की कारों का रंग
दुनिया के नेता काली कारों में क्यों चलते हैं: भारत के नेता भी समय के साथ बदलते ट्रेंड्स का हिस्सा रहे हैं। इंदिरा गांधी सफेद रंग की एम्बेसडर कार में चलती थीं, क्योंकि उस समय सरकारी वाहन ज्यादातर सफेद ही होते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी के समय सुरक्षा कारणों से काली बुलेटप्रूफ BMW 7-सीरीज मुख्य वाहन बनी।
मनमोहन सिंह भी काली BMW 7-सीरीज का उपयोग करते थे, जबकि व्यक्तिगत रूप से उन्हें हल्के रंग की गाड़ियां पसंद थीं। जवाहरलाल नेहरू लग्जरी रोल्स रॉयस सिल्वर-एंड-ब्लैक कार में यात्रा करते थे।
पोप की कार, दुनिया का इकलौता बड़ा अपवाद
पोप की ‘पोपमोबाइल’ आमतौर पर सफेद रंग में होती है क्योंकि यह शांति और पवित्रता का प्रतीक है।
हालांकि ध्यान देने वाली बात है कि उनकी सुरक्षा गाड़ियां हमेशा काली होती हैं। 1930 से मर्सिडीज पोप को विशेष डिजाइन की गई गाड़ियां उपलब्ध कराता है।
1981 में पोप जॉन पॉल II पर हमले के बाद बुलेटप्रूफ पोपमोबाइल की शुरुआत हुई।

