रांची: झारखंड की राजधानी राँची में एक साधारण विवाद के बाद हुई रेस्टोरेंट मालिक विजय कुमार की हत्या अब एक बड़े राजनीतिक और वैचारिक बहस का विषय बन गई है।
इस हत्या को कुछ लिबरल वर्ग ने सोशल मीडिया पर ‘हिंदू असहिष्णुता’ और ‘शाकाहारी बनाम मांसाहारी’ के एंगल से जोड़ने की कोशिश की।
लेकिन जाँच में सामने आया सच इससे बिल्कुल उलट है। यह मामला किसी धार्मिक या वैचारिक मतभेद का नहीं, बल्कि आपराधिक प्रवृत्ति और जमीन के झगड़ों से जुड़ा हुआ अपराध है।
कैसे शुरू हुआ विवाद, ‘वेज’ की जगह ‘नॉनवेज’ बिरयानी
रांची: शनिवार, 19 अक्टूबर 2025 को कांके पिठोरिया रोड स्थित शेफ चौपाटी रेस्टोरेंट में अभिषेक सिंह नामक व्यक्ति अपने दोस्तों के साथ पहुँचा।
उसने वेज बिरयानी का ऑर्डर दिया, लेकिन गलती से नॉनवेज बिरयानी परोस दी गई।
इस छोटी-सी गलती पर अभिषेक सिंह ने होटल मालिक विजय कुमार से बहस शुरू की।
कुछ ही देर में विवाद इतना बढ़ गया कि अभिषेक सिंह ने गोलियाँ चला दीं, जिससे विजय कुमार की मौके पर ही मौत हो गई।
रांची: लेकिन मुद्दा ये है कि क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए किसी साधारण व्यक्ति को इस तरह मौत के घाट उतार देना सही था?
ये हत्या क्या अचानक गुस्से में आकर लिए गए फैसले का नतीजा था या सर पहले से अपराधी मानसिकता रखने वाले गिरोह का इसके पीछे हाथ था, ये के बड़ा सवाल है।
एनकाउंटर के बाद गिरफ्तारी, अपराधी की असलियत सामने आई
रांची: हत्या के बाद मुख्य आरोपित अभिषेक सिंह अपने साथियों के साथ भाग निकला। राँची पुलिस ने रिंग रोड सुकुरहुटु ITBP कैंप के पास उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी।
जवाबी कार्रवाई में पुलिस की गोली उसके पैरों में लगी और वह घायल होकर गिरफ्तार हो गया। पुलिस ने बताया कि अभिषेक और उसके साथियों के पास से अवैध हथियार, गोलियाँ और नकदी मिलीं।
इसके अलावा, हथियार मुहैया कराने वाले हरेंद्र सिंह के पास से भी बंदूकें और गोला-बारूद बरामद हुए।
पुलिस की जाँच में पता चला कि दोनों अपराधियों का जमीन हड़पने और धमकाने के मामलों से पुराना संबंध रहा है।
पुलिस की जाँच, ‘जमीनी विवाद’ से जुड़ा अपराध
रांची: राँची के एसपी प्रवीण पुष्कर ने बताया कि यह अपराध केवल बिरयानी विवाद का नतीजा नहीं था।
“अभिषेक और हरेंद्र दोनों पर पहले से कई मुकदमे दर्ज हैं। हरेंद्र सिंह को पहले भी पुलिस विभाग से निलंबित किया जा चुका है।
प्राथमिक जाँच से यह स्पष्ट है कि मामला जमीनी विवाद और पुरानी रंजिशों से जुड़ा हुआ हो सकता है।”
इस बयानके बाद ये स्पष्ट हो जाता है कि यह घटना किसी धार्मिक आस्था या खान-पान की असहिष्णुता से नहीं, बल्कि अपराधी तत्वों की हिंसक मानसिकता से उपजी थी।
‘लिबरल नैरेटिव’, अपराध को बनाया ‘हिंदू घृणा’ का बहाना
रांची: इस पूरी घटना को लेकर सोशल मीडिया पर कथित लिबरल वर्ग ने ऐसा माहौल बनाया जैसे यह हत्या किसी हिंदू शाकाहारी असहिष्णुता की वजह से हुई हो।
कई यूजर्स ने पोस्ट कर लिखा कि “जो खुद को दूसरों से ज़्यादा पवित्र मानते हैं, वही ऐसी नफरत फैलाते हैं।”
हालाँकि, यह बात पूरी तरह गलत है, क्योंकि न तो पीड़ित और न ही अपराधी किसी सांप्रदायिक झगड़े में शामिल थे, दोनों ही हिंदू समुदाय से आते हैं।

सनातन धर्म को बदनाम करने की कोशिश
रांची: कुछ पोस्ट्स में इस हत्या को ‘हिंदुत्व की असहिष्णुता’ से जोड़ने की कोशिश की गई। एक यूजर ने लिखा कि “सनातन हिंदुत्व की खूबसूरती जहाँ बलात्कारियों को रिहा किया जाता है और माला पहनाई जाती है।”
ऐसे बयान यह दर्शाते हैं कि लिबरल्स का मकसद अपराध पर सवाल उठाना नहीं, बल्कि हिंदू समाज को निशाना बनाना है।
जबकि वास्तविकता यह है कि सनातन धर्म किसी भी हिंसा या अपराध की अनुमति नहीं देता।
धर्म के नाम पर किसी अपराधी की हरकत को जायज़ ठहराना या पूरे समुदाय को दोष देना ग़लत है।
राजनीतिक रंग भी चढ़ा, मोदी सरकार’ को ठहराया ज़िम्मेदार
रांची: झारखंड में इस समय कांग्रेस-जेएमएम गठबंधन की सरकार है। राज्य की कानून व्यवस्था बनाए रखना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है।
लेकिन कुछ लिबरल आवाज़ों ने इस घटना का ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ने की कोशिश की।
यह वही रणनीति है जिसमें राज्य के अपराधों का ठीकरा केंद्र पर डालकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की जाती है।
अपराध को धर्म से जोड़ना सबसे बड़ा अपराध
रांची: राँची की यह घटना एक आपसी विवाद और आपराधिक प्रवृत्ति का मामला थी, न कि कोई धार्मिक हिंसा।
लेकिन जिस तरह से इस घटना को ‘हिंदू घृणा’ और ‘शाकाहार की असहिष्णुता’ का रंग दिया गया, वह दर्शाता है कि आज का लिबरल वर्ग सत्य से ज़्यादा नैरेटिव गढ़ने में रुचि रखता है।

