Naren Gurung: नरेन गुरुङ सिक्किम के एक प्रतिष्ठित कलाकार और साहित्यकार हैं, जिन्हें लोक संस्कृति और आधुनिकता के बीच पुल बनाने के लिए जाना जाता है। 21 जनवरी 1957 को जन्मे उन्होंने 1974 में पश्चिम बंगाल शिक्षा बोर्ड से उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की।
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Naren Gurung: कला और सांस्कृतिक प्रतिभा
अपने करियर की शुरुआत उन्होंने सिक्किम के डिक्लिंग हाई स्कूल में प्राथमिक शिक्षक के रूप में की। उनकी कला और सांस्कृतिक प्रतिभा को पहचानते हुए, 1979 में उन्हें सिक्किम सरकार ने सांग और ड्रामा यूनिट में स्थानांतरित किया, जहाँ उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और इस यूनिट के संस्थापक कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई।
नेपाली लोक संगीत और साहित्य
गुरुङ ने गायक, संगीतकार, नृत्य निर्देशक और नाटक कलाकार के रूप में राज्य सरकार को कई वर्षों तक सेवाएं दीं। उन्होंने नेपाली लोक संगीत और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनकी प्रतिभा ने सिक्किम के लुप्त होती लोक परंपराओं को पुनर्जीवित किया, खासकर स्थानीय गीतों, नृत्यों और कथाओं को संरक्षित किया।
उनका नाम कई बार रेडियो ऑडियो रिकॉर्डिंग में सुनाई देता है, जहां उन्होंने गंगटोक, शिलांग, अगरतला, इंफाल, गुवाहाटी और कुर्सियांग के ऑल इंडिया रेडियो केंद्रों पर अपने लोक गीत प्रस्तुत किए।
वे संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली के आजीवन सदस्य हैं और अन्य संस्थानों जैसे NEZCC, EZCC, सिक्किम अकादमी, नेपाली साहित्य परिषद और संस्कार भारती से भी जुड़े हैं।
कई पुस्तकें लिखीं
श्री गुरुङ ने नेपाली लोक गीतों और नृत्यों जैसे मरुनी, सोरठी, संगीनी, रतौली, डमकी, भैलो, मालश्री, तामांग सेलो, झौरे, गैने, देवसी-भैलो आदि पर व्यापक शोध किया है। उनके अध्ययन और लेखन से सिक्किम की लोक कला समृद्ध हुई।
उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘लोक दर्पणभित्र भञ्ज्याङ्का भाकाहरू’, ‘लोकायनमा बाँचेका नेपाली लोकगीत संगीत’, और ‘तिरसना गीत-संगीतको’ प्रमुख हैं। उनकी सेवाओं को मान्यता देते हुए,
उन्हें सिक्किम राज्य पुरस्कार (2008), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2004), सिक्किम सेवा सम्मान (2022) और लोक साहित्यकार एम.एम. गुरुङ स्मृति पुरस्कार (2022) जैसे कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
पद्म श्री क्यों मिला?
नरेन गुरुङ को वर्ष 2025 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें लोक संस्कृति, संगीत और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए दिया गया।
उन्होंने सिक्किम और नेपाली लोक कला को आधुनिक युग में पुनर्जीवित किया, जिससे यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रह सके। उनके शोध और लेखन ने लोक गीतों और नृत्यों को नई पहचान दी।
साथ ही, उन्होंने भारत और विदेशों में सिक्किम की सांस्कृतिक विरासत को बड़े स्तर पर प्रस्तुत किया। उनकी भूमिका संगीत नाटक अकादमी और अन्य राष्ट्रीय संस्थानों के साथ मिलकर लोक कला को समृद्ध करने में भी महत्वपूर्ण रही।
इस तरह, नरेन गुरुङ का पद्म श्री सम्मान उनकी जीवनभर की सेवा, शोध, संरक्षण और सांस्कृतिक योगदान के लिए मिला, जो केवल सिक्किम तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर को सशक्त बनाने वाला है।
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