Thursday, December 4, 2025

मुरादाबाद: मदरसे में दाखिले से पहले ‘वर्जिनिटी टेस्ट’ कराने को बोला मौलाना, 13 साल की बच्ची के पिता ने लगाया गंभीर आरोप

मुरादाबाद: उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है।

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यहां एक मदरसे पर आरोप लगा है कि उसने 13 साल की बच्ची के दाखिले के लिए उसके पिता से ‘वर्जिनिटी सर्टिफिकेट’ लाने की शर्त रखी।

यह मामला जैसे ही सामने आया, पूरे क्षेत्र में हड़कंप मच गया।

चंडीगढ़ के रहने वाले मोहम्मद यूसुफ ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।

उनका कहना है कि जब उनकी बेटी को मुरादाबाद के पाकबाड़ा इलाके स्थित जामिया अहसनुल बनात गर्ल्स कॉलेज (मदरसा) में 8वीं कक्षा में दाखिला दिलाने की बात हुई, तो मदरसे के प्रबंधन ने यह अजीब शर्त रखी।

‘अब्बू पर शक’ का हवाला देकर किया गया मेडिकल टेस्ट का सुझाव

मुरादाबाद: परिजनों के मुताबिक, मदरसे प्रबंधन ने फोन पर बताया कि कुछ लोगों से सूचना मिली है कि बच्ची के अब्बू यानी मोहम्मद यूसुफ अपनी बेटी के साथ गलत व्यवहार करते हैं।

इसलिए दाखिले से पहले उसका मेडिकल टेस्ट कराना जरूरी है।

मदरसे वालों ने यह भी कहा कि यह “नैतिक सुरक्षा” के लिए किया जा रहा है, लेकिन परिजन इसे बेहद अपमानजनक और मानसिक रूप से आघात पहुंचाने वाला कदम मानते हैं।

परिवार की आपत्ति: ‘ये बच्ची के सम्मान पर सीधा हमला है’

मुरादाबाद: मोहम्मद यूसुफ ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “यह झूठा, शर्मनाक और इंसानियत के खिलाफ है।

मेरी बेटी सिर्फ 13 साल की है। किसी भी धार्मिक संस्था को ऐसी घटिया शर्त रखने का कोई हक नहीं है।”

उन्होंने बताया कि जब उन्होंने इस पर आपत्ति जताई, तो मदरसे के लोगों ने उनसे अभद्रता की और धमकी दी कि अगर वे ‘मेडिकल रिपोर्ट’ नहीं लाते, तो बच्ची की टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) जारी कर दी जाएगी और दाखिला रद्द कर दिया जाएगा।

पुलिस को मिला लिखित सबूत, जांच में जुटी टीम

मुरादाबाद: परिजनों ने पुलिस को वह फॉर्म भी सौंपा है, जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि “मेडिकल टेस्ट अनिवार्य है।”

यही फॉर्म अब जांच का अहम सबूत माना जा रहा है।

मुरादाबाद के एसपी सिटी कुमार रणविजय सिंह ने बताया, “शिकायत दर्ज कर ली गई है।

जांच में जो भी तथ्य सामने आएंगे, उनके आधार पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

क्या धार्मिक संस्थान ‘मोरल पुलिसिंग’ करने लगे हैं?

मुरादाबाद: इस घटना ने समाज में कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या अब धार्मिक शिक्षा संस्थान यह तय करेंगे कि कौन बच्चा ‘पवित्र’ है या नहीं?

और क्या इस तरह की शर्तें बच्चों के मानसिक अधिकारों और निजता (privacy rights) का खुला उल्लंघन नहीं हैं?

बच्ची के परिजनों का कहना है कि इस घटना ने उनकी बेटी को गहरी मानसिक चोट पहुंचाई है, और अब वे न्याय की मांग कर रहे हैं।

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