Friday, January 31, 2025

Mental Health: क्या आप भी हर चीज का नेगेटिव साइड देखते हैं, साइकोलॉजी में ही छुपी है वजह और इसका इलाज

Mental Health: आजकल की जनरेशन में बहुत सी आम बात है हर चीज का नेगेटिव साइड देखना। जब भी हमारे मन में कोई बात आती है, हम उसकी बुरी से बुरी साइड इमेजिन कर लेते हैं। जैसे किसी के साथ रिलेशनशिप में आने से पहले ही उसके छोड़कर जाने का डर सताना, कोई बहुत देर तक फ़ोन न उठाये तो ये सोचना कि कहीं कुछ गलत तो नहीं हो गया। कुछ अच्छी चीज भी हो रही होती है तो उसका भी बुरा साइड इमेजिन कर ही लेते हैं। अगर आपके साथ ये सब है तो ठीक है डरने की कोई बात नहीं है। ये सब बिलकुल नार्मल है।

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हम सभी के मन में पॉजिटिव से पहले अकसर नेगेटिव विचार आते हैं। ऐसे में हमें हमारे आसपास वाले यही सलाह देते हैं कि “अरे बुरा मत सोचो, इतना मत सोचो, सब अच्छा ही होगा”। अच्छा जैसे हमें तो ये बात पता ही नहीं थी। ये सब हमें भी पता ही लेकिन अब विचारों को मन में आने से तो रोका नहीं जा सकता न।

Mental Health

Mental Health: तो ऐसे में अब सवाल ये है ऐसा आखिर होता क्यों है? आखिर क्यों हम अच्छी चीजों में भी नेगेटिव साइड निकाल ही लेते है। क्यों हमारे इस दिमाग को नेगेटिव साइड से इतना ज्यादा प्यार है?

Mental Health: ‘नेगेटिव बायस’ कहते हैं इसे साइकोलॉजी में

Mental Health: 2001 में इसे साइकोलॉजी की दुनिया में “नेगेटिव बायस” का नाम दिया गया, जहां हमारे दिमाग का झुकाव नेगेटिव विचारों के प्रति ज्यादा होता है। नाम इसे भले ही अभी मिला हो लेकिन ये बीमारी जब से चली आ रही है जब से ये दुनिया चल रही है। लेकिन अभी तक भी इसकी वजह वैज्ञानिक स्पष्ट नहीं कर पाए हैं।

लेकिन इसकी एक वजह ये भी है कि अच्छी घटनाओं से ज्यादा असर बुरी घटनाएं हमारे दिमाग पर डालती है। होता ये है कि हमारा दिमाग अच्छी घटनाओं को सुरक्षित रख लेता है लेकिन एक ऐसा रिमाइंडर सेट कर देता है जहां हम ये सोचते हैं कि हमें बुरी घटनाओं से हमारे शरीर को बचाना होगा। इसलिए जब भी कोई बुरी घटना होती है हमारा दिमाग ज्यादा एक्टिव होता है और वो बात लंबे समय तक हमारे जेहन में बैठ जाती है।

Mental Health: अब इसे ऐसे समझिये की आप बहुत अच्छे से तैयार होकर अपने दोस्तों के साथ बाहर गए। अच्छे बाल, सुन्दर कपडे, अच्छे जूते। सबने कहा कि आप बहुत सुंदर लग रहे हैं लेकिन शाम को आते टाइम एक पड़ोस की आंटी ने आपको टोक दिया कि ये कैसा रंग पहना है, कैसे बाल कर रखे हैं, बिल्कुल अच्छी नहीं लग रही हो। अब बजाय दोस्तों के तारीफ के आपका दिमाग उन पड़ोस वाली आंटी की बातों को पकड़ेगा और फिर आप खुद को लेकर ही insecure हो जाओगे।

हमारा दिमाग शरीर को बुरी चीजों से बचाने के लिए इतना आतुर होता है कि हमारा पूरा ध्यान बुरे हालातों पर ही चला जाता है और अच्छी बातें तो हम सुन भी नहीं पाते।

नेगेटिव बायस हमारे काम कर पाने की कैपेसिटी, निर्णय लेने की शक्ति, आपसी रिश्तों और हमारी खुशियों पर बहुत असर डालता है। हमारे दिमाग का दो-तिहाई हिस्सा सिर्फ बुरी खबरों पर ही फोकस करने लगता है, जिससे हम अच्छी घटनाओं की जगह बुरी घटनाओं को ही ज्यादा तवज्जु देते हैं।

इस नेगेटिव सोचने की दिक्कत से क्या निपटा जा सकता है?

Mental Health: नेगेटिविटी कहीं न कहीं हम सभी के जीवन का हिस्सा है, बस फर्क है तो कम-ज्यादा का। ये कुछ टिप्स है जिनसे आप अपने सोचने-समझने की क्षमता पर कुछ हद तक कंट्रोल कर पाएंगे।

खुद से अच्छी बातें करें

Mental Health: सबसे पहले रूल ये कि अपने आप से सिर्फ अच्छी बातें करें। होता ये है कि जब कुछ बुरा होता है तो हम उसके बारे में सोचना बंद नहीं कर पाते, ऐसी स्थिति में आप ये देखिये कि आप किस एंगल से सोच रहे हैं। क्या आप उस घटना के लिए खुदको जिम्मेदार मान रहे हैं? और अगर ऐसा है रुक जाइये!!

किसी भी बुरी स्थिति में खुद को जिम्मेदार मानना बंद करें। बस इतना समझ लें की कुछ चीजें आपके भी कंट्रोल से बाहर है। आपने ये जवानी है दीवानी का वो डायलाग तो सुना ही होगा जहां बन्नी कहता है कि “खुद पर दया करना बंद करो”। सही बात है ये बिल्कुल बस आप खुद को माफ़ करना सीखिए और जब वे मेट की गीत की तरह खुद के फेवरेट बन जाइये”। माना ये थोड़ा मुश्किल है लेकिन ये उतना ही जरुरी भी है।

नए तरीकों का इस्तेमाल करें

जब भी आपको ऐसा लगे कि आप नेगेटिव ख्यालों में फंस रहे हैं, तो कुछ ऐसे काम करें जिनसे आपको ख़ुशी मिलती है। जैसे वॉक करें, म्यूजिक सुनें, कोई मजेदार टीवी टीवी शो देखें। ऐसे आप कुछ अच्छा भी पढ़ सकते हैं। इससे आपका ध्यान भटकेगा और मन को शान्ति मिलेगी।

पॉजिटिव और नेगेटिव विचार दोनों ही हमारी जीवन का हिस्सा है। जरुरी है कि हम उनको खुद पर हावी ना दें और ऐसी स्थिति में संयम से काम लें।

दोनों पहलू समझें

Mental Health: जब भी आप किसी घटना के बारे में दूसरों को बताते हैं, तो ध्यान रखें कि उसके अच्छे और बुरे दोनों पहलू बताएं। जा हम किसी को घटना बताते हैं तो दूसरे से ज्यादा उसका फर्क हम पर पड़ता है। इससे आपको वो घटना कम नेगेटिव महसूस होगी।

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