लव जिहाद: हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी पर मीडिया में सुर्खियाँ बन गईं। कई चैनलों और वेबसाइट्स ने हेडलाइन दी कि “वॉट्सऐप पर भेजे गए ‘अनकहे शब्द’ भी नफरत फैला सकते हैं।”
कई जगह इस टिप्पणी को ऐसे पेश किया गया मानो अदालत अब ‘चुप रहने’ या ‘संकेत देने’ को भी अपराध मान रही हो।
लेकिन सच्चाई इससे काफी अलग है। यह टिप्पणी किसी सामान्य चैट या पोस्ट को लेकर नहीं, बल्कि लव जिहाद और धर्मांतरण से जुड़े एक गंभीर केस में की गई थी।
बिजनौर का ‘लव जिहाद’ केस
पूरा मामला उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले से जुड़ा है। यहाँ एक मुस्लिम युवक अफाक अहमद ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करवाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
उसके भाई आरिफ अहमद पर आरोप है कि उसने एक हिंदू युवती से संबंध बनाकर उसे धर्म परिवर्तन और दुबई ले जाने के लिए राज़ी करने की कोशिश की।
यह शिकायत आरएसएस कार्यकर्ता संदीप कौशिक ने दर्ज कराई थी।
पहले मामूली धाराओं में दर्ज केस बाद में गंभीर धाराओं में बदल गया, जिसमें बलात्कार, धोखाधड़ी, जहर देना, फर्जीवाड़ा और उत्तर प्रदेश धर्मांतरण अधिनियम, 2021 के तहत अपराध शामिल थे।
अफाक अहमद का विवादित संदेश
भाई की गिरफ्तारी के बाद अफाक अहमद ने अपने परिचितों को एक वॉट्सऐप मैसेज भेजा। उसमें लिखा कि
“मेरे भाई को राजनीतिक दबाव में झूठे मामले में फँसाया गया है… मुझे डर है कि कहीं भीड़ मुझे नुकसान न पहुँचा दे, लेकिन मुझे अदालत पर भरोसा है।”
पहली नज़र में यह संदेश सामान्य लग सकता है, लेकिन अदालत ने इसे बहुत गंभीर माना।
कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस जे. जे. मुनिर और प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की बेंच ने कहा कि “संदेश में धर्म का नाम नहीं है, लेकिन इसके अनकहे शब्द बताते हैं कि आरोपी मुसलमान होने के कारण खुद को निशाना बताया जा रहा है। यह धारणा साम्प्रदायिक भावनाएँ भड़का सकती है।”
कोर्ट ने माना कि ऐसा संदेश दो समुदायों के बीच नफरत और अविश्वास का माहौल बना सकता है।
भले ही यह मामला BNS की धारा 353(3) के अंतर्गत नहीं आता, लेकिन धारा 353(2) के तहत यह द्वेष फैलाने वाला अपराध माना जा सकता है।
मीडिया ने असली एंगल क्यों छिपाया?
कई मीडिया हाउसेज़ ने केवल अदालत की लाइन उठाई। “अनकहे शब्द भी अपराध हो सकते हैं, लेकिन यह कहीं नहीं बताया कि यह टिप्पणी लव जिहाद केस के संदर्भ में थी।
इससे पाठकों को यह भ्रम हुआ कि अदालत अब किसी के “संकेत या खामोशी” को भी अपराध घोषित कर रही है।
असल में अदालत यह कह रही थी कि धार्मिक पहचान को लेकर पीड़ित होने का भाव दिखाना भी साम्प्रदायिक नफरत फैलाने का जरिया बन सकता है।
तीन FIR और एक पैटर्न
दिलचस्प बात यह है कि अफाक के परिवार पर तीन अलग-अलग एफआईआर दर्ज हैं
पहली, उसके भाई आरिफ पर लव जिहाद के आरोपों में।
दूसरी, खुद अफाक अहमद पर वॉट्सऐप संदेश भेजने के लिए।
तीसरी, उनके चाचा सादिक पर, जिन्होंने एक चैनल पर बयान दिया कि “भतीजे को फँसाया गया है।”
यह दर्शाता है कि मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पूरा परिवार धार्मिक पहचान का सहारा लेकर समाज को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था।
आरएसएस कार्यकर्ता की भूमिका
शिकायतकर्ता संदीप कौशिक ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि “लड़की का परिवार डरा हुआ था। मैंने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी समझते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई। यह सिर्फ एक लड़की नहीं, बल्कि समाज की सुरक्षा का मामला था।”
अदालत का सख्त संदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि “यह केवल किसी व्यक्ति की निजी पीड़ा का मामला नहीं है, बल्कि ऐसा व्यवहार समाज की साम्प्रदायिक एकता को प्रभावित कर सकता है।”
इसलिए अदालत ने अफाक अहमद की याचिका खारिज करते हुए कहा कि “मामला जाँच के योग्य है और इसे शुरुआती चरण में रोका नहीं जा सकता।

