Sunday, November 9, 2025

लेह हिंसा, जानें क्यों भड़का लद्दाख आंदोलन और सोनम वांगचुक पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

लेह हिंसा: लद्दाख में लंबे समय से राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग चल रही है।

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शांतिपूर्ण ढंग से चला आ रहा यह आंदोलन सितंबर 2025 में अचानक से हिंसक हो गया।

लेह में हुई झड़पों में चार लोगों की मौत हो गई, दर्जनों घायल हुए और कई वाहन व सरकारी संपत्ति जला दी गई। स्थिति बिगड़ने पर प्रशासन को कर्फ्यू और इंटरनेट बंद करना पड़ा।

क्यों लद्दाख के लोगों में सरकार से नाराजगी?

लेह हिंसा: 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर लद्दाख केंद्रशासित क्षेत्र बना था। स्थानीय लोगों की मांग थी कि उन्हें नौकरियों, भूमि और संसाधनों पर अधिकार मिले और उनकी पहचान सुरक्षित रहे।

पिछले कुछ सालों में केन्डा सरकार ने कई रियायतें दी। जैसे आरक्षण 45% से बढ़ाकर 84%, महिलाओं के लिए 1/3 आरक्षण, नई भाषाओं को मान्यता और हज़ारों पदों पर भर्ती की शुरुआत।

इसके बावजूद, राज्य दर्जे और संवैधानिक सुरक्षा पर बातचीत लगातार खिंचती रही, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ा।

हिंसा अचानक कैसे भड़की?

लेह हिंसा: 23 सितंबर को अनशन पर बैठे दो प्रदर्शनकारियों की हालत बिगड़ने से माहौल गरमाया।

अगले ही दिन प्रदर्शनकारी और सुरक्षाबल आमने-सामने आ गए।

रिपोर्ट्स के मुताबिक युवाओं ने पत्थरबाजी और आगजनी की, जबकि पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग की।

इस झड़प में चार लोगों की मौत हुई और पूरा लेह हिंसक प्रदर्शनों से कांप उठा।

सरकार और आंदोलनकारी संगठनों में गतिरोध

लेह हिंसा: केंद्र सरकार और लेह एपेक्स बॉडी (LAB) के बीच 6 अक्टूबर को बैठक प्रस्तावित थी। लेकिन उससे पहले ही माहौल बिगड़ गया।

आंदोलनकारियों का आरोप है कि सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही, जबकि प्रशासन का कहना है कि स्थानीय नेताओं के भड़काऊ भाषणों ने माहौल खराब किया।

सोनम वांगचुक और कांग्रेस नेताओं पर लग रहे हिंसा भड़काने के आरोप

लेह हिंसा: प्रसिद्ध पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पिछले कई महीनों से इस आंदोलन का चेहरा बने हुए थे।

सरकार के कुछ अधिकारियों और भाजपा नेताओं ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने युवाओं को भड़काया।

इतना ही नहीं, कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर भी उंगलियां उठाई गईं।

सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें स्थानीय कांग्रेसी नेता हिंसक भीड़ के बीच दिख रहे हैं।

वांगचुक के NGO को मिली विदेशी फंडिंग पर भी उठे सवाल

लेह हिंसा: वांगचुक की एनजीओ और विदेशों से मिले चंदे को लेकर सवाल पहले भी उठ चुके हैं।

आरोप है कि उन्होंने विदेशी फंडिंग का उपयोग आंदोलन और अपने प्रोजेक्ट्स के लिए किया।

हालांकि, अब तक कोई ठोस सबूत सामने नहीं आया है जो साबित करे कि लेह हिंसा में विदेशी पैसों का सीधा हाथ था।

सरकारी एजेंसियां इस पहलू की जांच कर रही हैं।

हिंसा भड़काने के तुरंत बाद ही वांगचुक अनशन खत्म कर गांव लौटे

लेह हिंसा: हिंसा भड़कने के बाद सोनम वांगचुक ने अपना अनशन समाप्त कर दिया और मीडिया से कहा कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से ही आगे बढ़ेगा।

लेकिन आलोचकों का कहना है कि जब लेह जल रहा था, तब उनका चुपचाप पीछे हटना यह संकेत देता है कि आंदोलन उनके भी नियंत्रण से बाहर हो चुका था।

विपक्ष और अन्य नेताओं की प्रतिक्रिया

लेह हिंसा: पूर्व श्रीनगर मेयर जुनैद अज़ीम मट्टू ने कहा कि हिंसा किसी भी आंदोलन को कमजोर कर देती है।

उनके मुताबिक, शांतिपूर्ण संघर्ष लंबा ज़रूर होता है, लेकिन वही स्थायी समाधान देता है।

विपक्षी दल सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने युवाओं की नाराजगी को गंभीरता से नहीं लिया, जबकि भाजपा का कहना है कि यह सब राजनीतिक षड्यंत्र था।।

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