समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री आज़म ख़ान शनिवार को पहली बार अजमेर शरीफ स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पहुंचे।
उनके साथ बेटा अब्दुल्ला आज़म, करीबी नेता यूसुफ मलिक और दोस्त अनवार भी मौजूद थे।
दरगाह कमेटी की ओर से उन्हें पगड़ी पहनाकर स्वागत किया गया। इसके बाद उन्होंने चादर चढ़ाई, फूल पेश किए और दुआ मांगी।
रिहाई के बाद पहली बड़ी सार्वजनिक मौजूदगी
जेल से रिहा होने के बाद यह आज़म ख़ान की पहली बड़ी सार्वजनिक उपस्थिति रही। उन्होंने दरगाह पर माथा टेकते हुए कहा कि वह यहां शुक्राना अदा करने आए हैं।
उन्होंने कहा कि “बुजुर्गों की दुआ से मुझे सुकून और इंसाफ मिला है। मुझे झूठे आरोपों में फंसाया गया, बहुत सताया गया, लेकिन अब रूहानी ताकत महसूस हो रही है। मुसीबतें कुछ कम हुई हैं, मगर चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं।”
अखिलेश यादव के बाद अजमेर पहुंचे आज़म
गौर करने वाली बात यह है कि एक दिन पहले ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव अजमेर के किशनगंज इलाके में पहुंचे थे। उनके अगले ही दिन आज़म ख़ान की दरगाह यात्रा ने राजनीतिक चर्चाओं को हवा दे दी है।
सपा नेताओं का कहना है कि आज़म ख़ान की यह यात्रा केवल धार्मिक नहीं बल्कि आत्मिक आभार और राजनीतिक पुनर्स्थापन का प्रतीक भी है।
‘मौजूदा हुकूमत कौम को कर रही परेशान’
दरगाह से बाहर निकलने के बाद मीडिया से बातचीत में आज़म ख़ान ने केंद्र और राज्य सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “मौजूदा हुकूमत कौम और मुल्क के लोगों को परेशान कर रही है। हम जिल्लत भरी जिंदगी जी रहे हैं।”
उन्होंने अपने ऊपर लगे मुर्गी और बकरी चोरी के आरोपों को लेकर कहा कि “इन झूठे इल्ज़ामों ने मेरी ज़िंदगी की इज़्ज़त पर चोट पहुंचाई, मगर अब अल्लाह के करम से सुकून है।”
पत्रकारों से सवाल पर भड़के आज़म खान
जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि योगी सरकार ने उन्हें क्यों परेशान किया, तो आज़म ख़ान ने व्यंग्य भरे लहजे में जवाब दिया— “सरकार तो मुझे रोज़ हलवा-पराठा खिला रही थी।”
उनका यह जवाब सुनकर माहौल में हल्की मुस्कान फैल गई, लेकिन यह साफ झलक रहा था कि उनकी नाराजगी और तंज दोनों गहरे थे।
बिहार चुनाव पर साधी चुप्पी
बिहार चुनावों में सपा द्वारा उन्हें स्टार प्रचारक बनाए जाने के सवाल पर आज़म ख़ान ने बिना किसी उत्साह के जवाब दिया—
“मैं इसमें क्या कर सकता हूं?”
उनके इस संक्षिप्त जवाब से यह संकेत मिला कि वे फिलहाल सक्रिय राजनीति से थोड़ा दूरी बनाए रखना चाहते हैं, या फिर सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं।
दरगाह में अकीदत और सियासत की झलक
आज़म ख़ान की अजमेर दरगाह यात्रा को कई राजनीतिक विश्लेषक “रूहानी सुकून और सियासी संकेत” दोनों का मेल मान रहे हैं।
जहां एक ओर उन्होंने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर शुक्राना अदा किया, वहीं दूसरी ओर उनके बयानों से यह भी साफ हुआ कि उनकी राजनीतिक पीड़ा अब भी ताजा है।

