भारत अमेरिका संबंध 2025 की अहमियत
अमेरिका और भारत के बीच रिश्ते कभी पूरी तरह टूटे नहीं और न ही बिना उतार-चढ़ाव के रहे।
आज भारत अमेरिका संबंध 2025 वैश्विक राजनीति का प्रमुख विषय है क्योंकि दोनों देशों के बीच खिंचाव और सहयोग दोनों ही समानांतर चल रहे हैं।
स्वतंत्रता संग्राम से शुरू हुआ रिश्ता
1947 से पहले ही अमेरिकी नेताओं और बुद्धिजीवियों का एक वर्ग भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से सहानुभूतिपूर्ण था।
लेकिन कम्युनिस्ट प्रभाव और गांधी जी की आलोचनाओं ने अविश्वास पैदा किया। यह पृष्ठभूमि आज भी भारत अमेरिका संबंध 2025 और चीन रूस का प्रभाव 2025 में दिखती है।
नेहरू, पटेल और 1962 का सबक
नेहरू ने समाजवादी रास्ता अपनाया और सरदार पटेल की प्रो-अमेरिकी सोच को नज़रअंदाज किया। लेकिन 1962 युद्ध ने उन्हें मजबूर किया कि अमेरिका से मदद मांगे।
यही घटना आगे चलकर भारत अमेरिका रणनीतिक साझेदारी का भविष्य की दिशा तय करने में अहम साबित हुई।
1971 और अविश्वास की गहराई
कैनेडी की सहायता के बाद विश्वास बढ़ा, लेकिन 1971 में अमेरिकी सातवें बेड़े ने भारत के खिलाफ खड़ा होकर सब कुछ बिगाड़ दिया।
इसके उलट रूस की मदद ने भारतीयों का दिल जीता। इसलिए आज भी 2025 में भारत अमेरिका रूस चीन संबंध विश्लेषण में रूस भावनात्मक साझेदार के रूप में देखा जाता है।
2017 से नई रणनीतिक साझेदारी
2017 के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में नजदीकियाँ बढ़ीं और भारत वर्ल्ड ऑर्डर का अहम खिलाड़ी बना।
लेकिन ट्रम्प की नीतियों और टैरिफ ने विश्वास हिला दिया। अब हर विश्लेषण में भारत अमेरिका संबंधों में ट्रम्प की नीति 2025 केंद्र में बनी हुई है।
चीन पर अविश्वास, रूस पर भरोसा
भारत चीन को विश्वासघाती मानता है जबकि रूस को स्थायी मित्र। यही कारण है कि मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन में भाग लिया।
वहां रूस की उपस्थिति ने चीन को संतुलित किया। यह दर्शाता है कि शंघाई सहयोग संगठन में भारत की भूमिका 2025 कितनी अहम है।
हिंद-प्रशांत और भारत की नौसेना
अमेरिकी थिंक टैंक मान चुके हैं कि चीन को केवल पाकिस्तान और जापान के सहारे नहीं रोका जा सकता। इसके लिए भारत की नौसेना का सहयोग अनिवार्य है।
इसलिए हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत अमेरिका सहयोग अब अमेरिकी रणनीति का मुख्य केंद्र बन चुका है।
अमेरिकी डीप स्टेट की अस्थिरता
अमेरिकी डीप स्टेट बंट चुका है और ट्रम्प की अस्थिरता ने स्थिति जटिल कर दी है। कभी नोवारो जैसे सलाहकार उन्हें भारत विरोधी दिशा में धकेलते हैं, कभी चीन-विरोधी लॉबी उन्हें भारत से करीबी की ओर खींचती है।
यही कारण है कि भारत अमेरिका संबंध 2025 स्थायी रूप से स्थिर नहीं हो पा रहे।
मोदी-ट्रम्प पैच अप और भविष्य की उम्मीदें
फिलहाल चीन विरोधी लॉबी हावी रही और ट्रम्प ने मोदी पर सकारात्मक बयान दिया। मोदी ने भी उतना ही गर्मजोशी से जवाब दिया।
अब उम्मीद है कि नवंबर-दिसंबर तक टैरिफ समझौता हो सकता है और भारत अमेरिका संबंध 2025 में नई जान फूंक सकता है।
कव्वाली का संदेश और मौजूदा हकीकत
संभव है कि आने वाले महीनों में मोदी और ट्रम्प फिर गले मिलते दिखें। लेकिन फिलहाल भारतीय मानस में नुसरत फतेह अली खान की पंक्तियाँ गूंज रही हैं, “बरसों बाद मिले हम उनसे, दोनों थे शर्मिंदा से, दोनों ने चाहा भी लेकिन, फिर आती वो बात कहाँ।” यही भारत अमेरिका संबंध 2025 की सच्चाई भी है।