Monday, December 1, 2025

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: हार के बाद कांग्रेस का सीज़नल गठबंधन मॉडल बेनकाब? RJD से दूरी बनाकर अकेले चलने के संकेत

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मिली भारी हार के बाद महागठबंधन की अंदरूनी खींचतान खुलकर सामने आ गई है।

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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने साफ शब्दों में कहा कि गठबंधन सिर्फ चुनावी था, सांगठनिक नहीं।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अब कांग्रेस अपनी रणनीति और संगठन को स्वतंत्र रूप से संचालित करेगी।

यह बयान न केवल गठबंधन की दिशा बदलता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अब अपने दम पर आगे बढ़ने की तैयारी में है।

कांग्रेस–RJD की पुरानी साझेदारी, भरोसे से ज्यादा बोझ?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: पिछले दो दशकों में कांग्रेस और आरजेडी के रिश्तों में उतार-चढ़ाव ज्यादा रहे हैं, स्थिरता कम।

2000 में राबड़ी देवी सरकार को कांग्रेस ने सहारा दिया, फिर 2009 और 2010 में गठबंधन जारी रहा, पर नतीजे उम्मीद से कम रहे।

2015 में जब RJD–कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया, तो उसमें जेडीयू की मौजूदगी सबसे अहम थी।

इसके बाद लगातार एक-दूसरे को हार का जिम्मेदार ठहराने की परंपरा चलती रही।

कभी कांग्रेस पर आरोप कि उसने सीटें खराब कीं, तो कभी RJD को हार का कारण बताया गया। यह साझेदारी हमेशा भरोसे से ज्यादा दबाव वाली रही।

क्या RJD से दूरी बनाने की तैयारी?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: पटना के सदाकत आश्रम में हुई कांग्रेस की समीक्षा बैठक में साफ हुआ कि पार्टी अब जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए स्वतंत्र रास्ता चुनेगी।

चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस यह मानती दिख रही है कि गठबंधन ने उसे संगठनात्मक रूप से कमजोर किया।

राजेश राम का बयान, “संगठन चलाना और पार्टी की रणनीति बनाना कांग्रेस खुद करेगी” ये संकेत देता है कि RJD से दूरी आने वाले दिनों में और बढ़ सकती है।

महागठबंधन: सिर्फ चुनाव आते ही बनने वाला ‘मौसमी गठबंधन’?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस की गठबंधन शैली अक्सर सीज़नल नजर आती है।

2024 लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस–RJD गठजोड़ प्रदर्शन नहीं कर पाया, और तेजस्वी यादव ने खुलकर कहा कि यह गठबंधन सिर्फ चुनावी था।

2020 में भी कांग्रेस सीटों को लेकर आखिरी वक्त में RJD से जुड़ी, पर महज़ 19 सीटों पर सिमट गई।

RJD तब से लगातार कहती रही है कि कांग्रेस की खराब परफॉर्मेंस ने तेजस्वी को सीएम बनने से रोक दिया।

यूपी, एमपी, हरियाणा, हर चुनाव में ‘गठबंधन और दूरी’ का दोहराव

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: कांग्रेस का गठबंधन इतिहास दूसरे राज्यों में भी पैटर्न बनाकर दिखाता है।

  • उत्तर प्रदेश 2017: समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन, 114 सीटों पर लड़ी, सिर्फ 7 जीतीं।
  • 2022 यूपी: अकेले चुनाव लड़ी, करारी हार।
  • 2023 MP चुनाव: कमलनाथ ने सपा से गठबंधन से इंकार किया, सार्वजनिक बयानबाजी बढ़ी।
  • 2024 हरियाणा: कांग्रेस ने AAP से गठबंधन नहीं किया, और परिणाम उलटे पड़े।

इन सभी उदाहरणों में कांग्रेस के फैसले अधिकतर चुनावी मजबूरी पर आधारित दिखाई देते हैं, न कि दीर्घकालिक रणनीति पर।

चुनावी मौसम में बने गठबंधन, हार के बाद टूटे, क्या यही कांग्रेस की नई पहचान?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ गठबंधन, महाराष्ट्र में शिवसेना–NCP के साथ सहयोग और फिर खींचतान—हर जगह एक ही तरह का पैटर्न दिखता है।

चुनाव नजदीक आए तो कांग्रेस गठबंधन बनाती है, लेकिन अपेक्षित परिणाम न आते ही न तो वह गठबंधन की जिम्मेदारी लेती है और न सहयोगियों के साथ लंबे समय तक टिकती है।

ऐसे में सहयोगी दल भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पा रहे, और कांग्रेस भी लगातार खुद को नुकसान पहुंचा रही है।

जनता का भरोसा कैसे जीतेगी कांग्रेस?

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है, लेकिन उसकी गठबंधन राजनीति लोगों के मन में संदेह पैदा कर रही है।

जनता को यह महसूस होने लगा है कि कांग्रेस गठबंधन सिर्फ सत्ता पाने के लिए बनाती है, और लक्ष्य पूरा न होने पर सहयोगियों से दूरी बना लेती है।

ऐसे व्यवहार से पार्टी अपनी साख खो रही है और मतदाताओं के मन में यह सवाल उभर रहा है कि क्या कांग्रेस किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक निभाने का इरादा रखती भी है?

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