शीतकालीन सत्र: संसद के शीतकालीन सत्र 2025 का पहला दिन सामान्य कार्यवाही की तरह शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही मिनटों में माहौल गरमाने लगा।
राज्यसभा में पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे का मुद्दा उठते ही सत्ता पक्ष और विपक्ष एक बार फिर आमने-सामने दिखाई दिए।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सभापति सी.पी. राधाकृष्णन के स्वागत भाषण के बीच धनखड़ के इस्तीफे का जिक्र किया।
शीतकालीन सत्र: धनखड़ का इस्तीफा अचानक- बोले खरगे
बीजेपी सांसदों के शोर के बीच खरगे ने कहा कि उन्हें मजबूरी में यह मसला उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि सदन के सभापति न केवल सरकार बल्कि विपक्ष के भी संरक्षक होते हैं।
खरगे ने अफसोस जताते हुए कहा कि सदन को धनखड़ को औपचारिक विदाई देने का मौका नहीं मिला। उन्होंने पूरे विपक्ष की ओर से पूर्व उपराष्ट्रपति के अच्छे स्वास्थ्य की कामना भी की।
तकलीफ हो तो डॉक्टर के पास जाइए- जेपी नड्डा
इस बयान ने सत्ता पक्ष को नाराज कर दिया। सदन के नेता और वरिष्ठ बीजेपी नेता जेपी नड्डा तुरंत खड़े हुए और खरगे की टिप्पणी को ‘विषय से हटकर’ बताया।
नड्डा ने कहा कि स्वागत समारोह की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और अगर विपक्ष पुराने मुद्दे उठाएगा तो सत्ता पक्ष भी अविश्वास प्रस्तावों जैसी चर्चाओं को याद दिलाने से पीछे नहीं हटेगा।
वहीं नड्डा ने तंज कसते हुए कहा कि बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र में हार से आपको काफी तकलीफ हुई है। तकलीफ को डॉक्टर को बताना चाहिए। जब समय आए, डॉक्टर के सामने बताइए।
इस टिप्पणी के बाद सदन का माहौल कुछ देर के लिए और गर्म हो गया।
कब और क्यों दिया इस्तीफा
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस साल मानसून सत्र के पहले दिन सभी को चौंकाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे पत्र में संविधान के अनुच्छेद 67(ए) का हवाला देते हुए कहा था कि स्वास्थ्य समस्याओं और डॉक्टरों की सलाह के कारण वह अपने पद पर बने रहना उचित नहीं समझते।
धनखड़ का अचानक इस्तीफा राजनीतिक हलकों में चर्चा का बड़ा विषय बना रहा। कई विपक्षी दलों ने सवाल उठाए, जबकि सत्ता पक्ष ने इसे पूरी तरह निजी और स्वास्थ्य संबंधी निर्णय बताया।
सत्र की शुरुआत में ही हलचल
शीतकालीन सत्र की शुरुआत जिस तरह तकरार और तीखी टिप्पणियों के साथ हुई, उससे यह साफ है कि आने वाले दिनों में भी सदन में राजनीतिक तापमान ऊंचा रहने वाला है।
धनखड़ के इस्तीफे जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष की भिड़ंत ने संकेत दे दिया है कि इस सत्र में हर चर्चा राजनीतिक रंग ले सकती है।

