ध्वजारोहण: 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर के शिखर पर ध्वजारोहण किया। उसी राम मंदिर के शिखर पर जिसके लिए न जाने कितने राम भक्तों ने अपने प्राण त्याग दिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही 5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन किया था और 22 जनवरी 2024 को इस मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी।
इस ऐतिहासिक क्षण के लिए पूरे अयोध्या को लगभग 100 टन फूलों से सजाया गया था और शहर दिव्यता, उत्साह और आध्यात्मिक उल्लास से सराबोर रहा।
ध्वजारोहण: महाभारत के बाद,फिर लौटा अयोध्या का प्राचीन ध्वज
ध्वजारोहण से पहले जिस बात ने पूरे देश का ध्यान खींचा, वह था अयोध्या का प्राचीन ध्वज, जिसका ऐतिहासिक उल्लेख महाभारत काल तक जाता है। यह वही ध्वज था जिसकी परंपरा महाभारत युद्ध के बाद लुप्त हो गई थी और सदियों तक इसका स्वरूप-लक्षण इतिहास से गायब रहा।
इंडोलॉजिस्ट ललित मिश्र ने मेवाड़ की चित्रात्मक रामायण का अध्ययन करते हुए इस ध्वज का पहला सुराग खोजा। एक पेंटिंग में उन्हें ऐसा ध्वज दिखा जिसने उन्हें उत्सुक कर दिया। बाद में इसकी पुष्टि वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में मिली और यह स्पष्ट हुआ कि यह वही ध्वज था जो कभी अयोध्या की पहचान माना जाता था।
कोविदार वृक्ष-हज़ारों वर्ष पुरानी वनस्पति विज्ञान की कहानी
ध्वज पर अंकित कोविदार वृक्ष सबसे बड़ा रहस्य था। मिश्र शुरुआत में उसे कचनार समझ बैठे, क्योंकि दोनों का वनस्पतिक नाम एक जैसा बताया जाता है। लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर सामने आया कि कोविदार वास्तव में मंदार और पारिजात का प्राचीन संकर है—एक ऐसा हाइब्रिड जिसे ऋषि कश्यप ने निर्मित किया था।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वनस्पति वैज्ञानिकों—प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे और प्रो. अभिषेक द्विवेदी—ने भी इस बात की पुष्टि की कि कोविदार और कचनार दो अलग वृक्ष हैं और रामायण तथा हरिवंश पुराण में वर्णित गुण कोविदार से मेल खाते हैं।
माना जा रहा है कि ध्वज का यह वृक्ष प्राचीन भारत की प्रयोगात्मक वनस्पति विज्ञान का प्रमाण है।
ध्वज पर ‘ॐ’, सूर्यवंश और कोविदार—तीन पवित्र प्रतीक
अहमदाबाद में विशेष रूप से निर्मित यह ध्वज तीन पवित्र प्रतीकों से सुशोभित है—
ॐ — अनादि, अनंत और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक
सूर्य — भगवान राम के सूर्यवंश का चिह्न
कोविदार वृक्ष — अयोध्या की प्राचीन सांस्कृतिक-साम्राज्यिक पहचान
ध्वज समकोण त्रिकोण आकार का है, 10 फीट ऊँचा और 20 फीट लंबा। यह तेज धूप, बारिश और तेज हवाओं को सहने में सक्षम विशेष सामग्री से बनाया गया।
नागर शैली के शिखर में दक्षिण भारतीय पार्कोटा
ध्वज मंदिर के उस शिखर पर फहराया गया जो पारंपरिक नागर शैली में निर्मित है। इसके चारों ओर 800 मीटर का पार्कोटा है, जिसे दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली में तैयार किया गया। यह मिश्रण मंदिर को सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति का संगम बनाता है।
मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर वाल्मीकि रामायण के आधार पर 87 पत्थरों में उकेरी गई कथाएँ और परिसर की दीवारों पर भारतीय सांस्कृतिक जीवन के 79 कांस्य चित्र स्थापित किए गए थे।
ध्वज की खोज की कहानी—परंपरा टूटी, स्मृति भी खो गई
ललित मिश्र के अनुसार, महाभारत युद्ध में अयोध्या के राजा बृहद्बल के निधन के बाद अयोध्या वीरान हो गई थी। उसी समय उसकी कई परंपराएँ टूट गईं—उसी में ध्वज और कोविदार वृक्ष की स्मृति भी शामिल थी।
सदियों तक यह स्मृति गायब रही—यहाँ तक कि लगभग 299 रामायणों में भी इस ध्वज का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
केवल कालिदास ने अपने ग्रंथों में उस वृक्ष की सुंदरता का वर्णन किया, लेकिन वह भी ध्वज के स्वरूप को नहीं जान पाए।
मिश्र बताते हैं कि यह खोज बिल्कुल संयोग से हुई—एक चित्र देख कर शुरू हुई यात्रा ने अयोध्या की हजारों साल पुरानी परंपरा को फिर जीवित कर दिया।
आखिरकार ध्वज अपने जन्मस्थान लौटा
कई अध्ययनों, वैज्ञानिकों की पुष्टि और शास्त्रीय ग्रंथों की गहन व्याख्या के बाद अंततः वह प्राचीन ध्वज पुनर्स्थापित हुआ। और 25 नवंबर को, जब प्रधानमंत्री मोदी ने राम मंदिर के शिखर पर इसे फहराया—तो ऐसा लगा मानो अयोध्या की खोई हुई स्मृतियाँ फिर से अपने घर लौट आई हों।
यह ध्वज केवल एक प्रतीक नहीं रहा—यह राम राज्य, सांस्कृतिक निरंतरता और भारतीय सभ्यता की अदम्य जड़ों का प्रमाण बन गया।

