15 साल का चक्र: कहते हैं कि वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता। इतिहास हो या रिश्ते—समय का पहिया जब घूमता है, तो पुराने समीकरण भी बदल जाते हैं। भारत और रूस की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
कभी ऐसा दौर था जब रूस में भगवद्गीता को लेकर विवाद खड़ा हुआ था, और आज वही गीता व्लादिमीर पुतिन के हाथों में सम्मान के साथ चमक रही है। यह बदलाव सिर्फ कूटनीतिक तस्वीर नहीं, बल्कि दो देशों के बीच भरोसे के मजबूत पुल की झलक भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने आधिकारिक आवास 7, लोक कल्याण मार्ग पर पुतिन का स्वागत किया और उन्हें भगवद्गीता का रूसी अनुवाद उपहार में दिया।
यह दृश्य अपने-आप में प्रतीक था—15 साल पुराने तूफान के बाद आज समझ और सम्मान की नई धूप दोनों देशों के बीच चमक रही है।
2011 की वह घटना, जिसने हलचल मचा दी थी
15 साल का चक्र: साल 2011 में रूस के साइबेरिया इलाके में स्थित टॉम्स्क की एक अदालत में भगवद्गीता के रूसी अनुवाद को लेकर अदालती कार्यवाही शुरू हुई। स्थानीय अभियोजकों ने दावा किया कि इस अनूदित संस्करण में ऐसी टिप्पणियाँ हैं जो समाज में वैमनस्य पैदा कर सकती हैं। इसीलिए इसे “एक्सट्रीमिस्ट लिटरेचर” घोषित करने की मांग की गई।
अगर अदालत यह मांग मान लेती, तो गीता भी हिटलर की Mein Kampf जैसी प्रतिबंधित साहित्य की श्रेणी में शामिल कर दी जाती—एक ऐसा विचार जिसने भारत और रूस, दोनों जगह माहौल गर्म कर दिया।
भारत में भी उछला मुद्दा, कूटनीतिक दबाव बना
15 साल का चक्र: भारत में इस मामले ने संसद से लेकर सड़कों तक हलचल मचा दी। हिंदू संगठनों ने जगह-जगह विरोध किया, जबकि भारत सरकार ने रूसी राजनयिकों से इस विषय पर औपचारिक बातचीत की। रूसी विदेश मंत्रालय तक को यह बताना पड़ा कि जांच स्वयं गीता पर नहीं, बल्कि एक विशेष कमेंट्री पर की जा रही है।
आखिरकार, 28 दिसंबर 2011 को अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए साफ कहा कि भगवद्गीता में कोई अतिवादी (Extremist) कंटेंट नहीं है। यह फैसला भारत-रूस संबंधों में तनाव खत्म करने वाला क्षण साबित हुआ।
2025 में तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है
15 साल का चक्र: आज जब प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन को गीता की वही रूसी अनुवादित प्रति भेंट की, तो यह सिर्फ एक किताब नहीं थी—यह 15 साल के रिश्ते का सफ़र, भरोसे की वापसी और सांस्कृतिक कूटनीति की ताकत थी।
2011 में जिस ग्रंथ पर बैन की तलवार लटक रही थी, वही ग्रंथ आज दोनों नेताओं के बीच सम्मान का पुल बनकर खड़ा है। दुनिया बदल गई, राजनीति बदली, लेकिन भारत-रूस के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव ने समय की हर कड़ी परीक्षा को पार कर लिया।
15 साल का चक्र: क्या बताती है गीता की यह गाथा?
2011 में रूस में गीता के अनुवाद को अतिवादी बताकर बैन की मांग उठी।
भारत ने संसद और कूटनीतिक स्तर पर कड़ा विरोध जताया।
अदालत ने मामला खारिज किया और गीता को पूरी तरह वैध घोषित किया।
2025 में उसी गीता की प्रति पुतिन को उपहार में दी गई—एक मजबूत सांस्कृतिक संदेश के तौर पर।
15 साल का चक्र: भारत-रूस संबंधों का यह पूरा सफर बताता है कि विवाद चाहे जितना भी बड़ा हो, समय और संवाद दोनों देशों को फिर से एक ही पृष्ठ पर ला देते हैं। वक्त सच में बलवान होता है—और उसका घूमता पहिया कई बार इतिहास के पन्नों में नए अध्याय लिख देता है।

