बिना सिर के 18 महीने जिंदा रहा माइक: अमेरिका के कोलोराडो राज्य में लॉयड ओल्सन नाम का एक किसान अपने फार्म में मुर्गों को काट रहा था। उसी दिन उसके घर में नॉनवेज पार्टी रखी गई थी।
रोज़ की तरह जब उसने एक मुर्गे का सिर कुल्हाड़ी से काटा, तो सबको लगा कि मुर्गा तुरंत मर जाएगा, लेकिन जो हुआ, उसने सबको हैरान कर दिया।
सिर कटने के बावजूद मुर्गा इधर-उधर चलने लगा। लॉयड ने सोचा कि थोड़ी देर में मर जाएगा, इसलिए उसे एक डिब्बे में रख दिया। यह कहानी 18 सितंबर 1945 की है।
बिना सिर के 18 महीने जिंदा रहा माइक: लॉयड ने डिब्बा खोला, तो वह खुद चौंक गया
जब अगली सुबह लॉयड ने डिब्बा खोला, तो वह खुद चौंक गया। मुर्गा अब भी जिंदा था, वो भी बिना सिर के।
गांव में यह खबर आग की तरह फैल गई। लोग इसे भगवान का चमत्कार मानने लगे। किसी ने पहले कभी ऐसा न देखा था कि सिर कटने के बाद भी कोई जीव जिंदा रह सके।
क्या सच में था यह चमत्कार?
शुरुआत में लोग इसे कुदरत का करिश्मा मानते रहे, लेकिन जब वैज्ञानिकों ने इस घटना को समझा, तो सच्चाई कुछ और ही निकली।
विशेषज्ञों ने बताया कि मुर्गों का दिमाग इंसानों की तरह आगे नहीं, बल्कि पीछे की ओर होता है।
इस मुर्गे, जिसे बाद में “माइक” नाम दिया गया, के मामले में कुल्हाड़ी का वार ऐसा पड़ा कि उसका चेहरा, चोंच और आंखें कट गईं, लेकिन ब्रेन स्टेम सुरक्षित रह गया।
ब्रेन स्टेम ने बचाई जान
ब्रेन स्टेम शरीर का वह हिस्सा होता है, जो सांस लेना, दिल की धड़कन और पाचन जैसी जरूरी क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
माइक का ब्रेन स्टेम सलामत रहने की वजह से उसका शरीर काम करता रहा। यही कारण था कि वह बिना सिर के भी जिंदा रह सका।
यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि एक बेहद दुर्लभ जैविक घटना थी।
खून क्यों नहीं बहा ज्यादा?
आमतौर पर सिर कटते ही ज्यादा खून बहने से जान चली जाती है। लेकिन माइक के साथ ऐसा नहीं हुआ।
सिर कटते ही खून का थक्का जम गया, जिसे मेडिकल भाषा में ब्लड क्लॉट कहते हैं।
इस थक्के ने ज्यादा खून बहने से रोक दिया। इसी वजह से माइक तुरंत नहीं मरा और उसका शरीर सामान्य रूप से काम करता रहा।
बिना मुंह माइक को कैसे खिलाया जाता था?
माइक को जिंदा रखने के लिए लॉयड ओल्सन ने उसकी खास देखभाल की। वह सिरिंज की मदद से माइक की ग्रासनली में दूध, पानी और मक्के का तरल भोजन डालता था।
इसके अलावा, सांस की नली में जमा म्यूकस को भी सिरिंज से साफ किया जाता था। यह देखभाल रोज़ करनी पड़ती थी।
इसी मेहनत और देखरेख की वजह से माइक करीब 18 महीने तक जिंदा रहा।
अमेरिका का सबसे मशहूर मुर्गा
धीरे-धीरे माइक की कहानी अखबारों में छपने लगी। लोग उसे देखने दूर-दूर से आने लगे। एक साइडशो प्रमोटर होप वेड माइक को अमेरिका के कई शहरों में लेकर गया।
लोग टिकट खरीदकर बिना सिर के जिंदा मुर्गे को देखने आते थे। इस दौरान ओल्सन परिवार ने अच्छी कमाई भी की। माइक को नाम मिला “Mike the Headless Chicken”।
कैसे हुई माइक की मौत?
अप्रैल 1947 में एरिजोना के फीनिक्स शहर में एक शो के दौरान माइक को अचानक सांस लेने में दिक्कत होने लगी।
दुर्भाग्य से उस वक्त उसकी देखभाल में इस्तेमाल होने वाली सिरिंज पास में नहीं थी।
गले में जमा म्यूकस साफ न हो पाने की वजह से माइक का दम घुट गया और उसकी मौत हो गई।
आज भी जिंदा है माइक की कहानी
आज भी कोलोराडो के फ्रूटा शहर में हर साल “Mike the Headless Chicken Festival” मनाया जाता है।
इसमें रेस, म्यूजिक और माइक की कहानी से जुड़ी कई गतिविधियां होती हैं। माइक की कहानी यह साबित करती है कि कई बार जो हमें चमत्कार लगता है,
उसके पीछे विज्ञान छिपा होता है। यह कहानी सिर्फ हैरानी नहीं, बल्कि यह भी दिखाती है कि शरीर कैसे काम करता है और जीवन कितनी अजीब परिस्थितियों में भी टिक सकता है।

