बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: बिहार में इस बार लोकतंत्र का ऐसा उत्सव देखने को मिला, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। शाम 5 बजे तक ही 60% से ज्यादा मतदान हो चुका था, और कई जगह पोलिंग बूथ पर लंबी कतारें अब भी मौजूद थीं।
चुनाव आयोग के आंकड़ों और पिछले रुझानों को देखें, तो अनुमान है कि कुल वोटिंग 65% के पार जाएगी — जो राज्य के इतिहास में पहली बार होगा। सवाल उठता है, इतनी रिकॉर्डतोड़ वोटिंग का असर आखिर किसकी नैया पार लगाएगा?
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: पुराने चुनाव और वोटिंग पैटर्न क्या कहते हैं?
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार में 56.9% वोटिंग हुई थी। उससे पहले 2000 में 62.6% मतदान हुआ था, जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था और राजनीतिक अस्थिरता चरम पर थी।
उस दौर में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से कुछ सीटें कम रह गईं। राबड़ी देवी ने सरकार बनाई, पर राजनीतिक उठा-पटक जारी रही।
अब, 25 साल बाद, जब नीतीश कुमार दो दशक की सत्ता के बाद फिर मैदान में हैं, बिहार एक बार फिर पूरे जोश के साथ मतदान कर रहा है।
सत्तर साल की वोटिंग कहानी: बढ़ता गया जनउत्साह
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: 1951 से अब तक बिहार विधानसभा चुनावों में मतदान का प्रतिशत सिर्फ चार बार घटा है। बाकी हर बार जनता ने पहले से ज्यादा उत्साह दिखाया है।
अगर 2025 में वोटिंग वाकई 65% पार कर जाती है, तो यह पिछले सात दशकों के रुझान को नया मोड़ देगा। यह सिर्फ लोकतंत्र की मजबूती नहीं, बल्कि जनता की राजनीतिक जागरूकता का भी संकेत होगा।
ज्यादा वोटिंग = सत्ता परिवर्तन? अब यह फॉर्मूला नहीं चलता
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: पहले कहा जाता था कि जब वोटिंग बढ़े तो समझो सत्ता बदलने वाली है। लेकिन आंकड़े अब दूसरी कहानी कहते हैं।
बिहार के 11 चुनावों में जब-जब वोटिंग बढ़ी, पांच बार सत्तारूढ़ दल की वापसी हुई, जबकि तीन बार वोटिंग घटने पर दो बार सरकार पलट गई। यानी अब ज्यादा वोटिंग का मतलब सिर्फ “गुस्से का वोट” नहीं, बल्कि “आशा का वोट” भी हो सकता है।
महिलाओं ने बदली तस्वीर: 2010 के बाद आया बड़ा बदलाव
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: 2010 का चुनाव बिहार के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। नीतीश कुमार सरकार के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था बेहतर हुई, सड़कें बनीं और लोगों की पोलिंग बूथ तक पहुंच आसान हुई।
इस बार से महिलाओं की भागीदारी में अचानक वृद्धि देखी गई। कई इलाकों में उन्होंने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले। तभी से बिहार का मतदान प्रतिशत लगातार ऊंचा बना हुआ है।
बिहार में टूटा वोटिंग का रिकॉर्ड: क्या मतलब है इस रिकॉर्ड वोटिंग का?
इतनी भारी वोटिंग का मतलब सिर्फ राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि लोकतंत्र में बढ़ते भरोसे का भी संकेत है। चाहे नीतीश कुमार हों या तेजस्वी यादव — दोनों के लिए यह चुनाव जनता के मूड को समझने की असली परीक्षा है।
इतना तय है कि 65% वोटिंग का यह आंकड़ा बिहार की सियासी किताब में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा — क्योंकि यह सिर्फ वोट नहीं, बल्कि जनता के जागरण की गवाही है।

