बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित होने के बाद भी एनडीए और महागठबंधन के बीच सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन सकी है। वहीं, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट जारी कर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
51 उम्मीदवारों की इस लिस्ट के जरिए प्रशांत किशोर ने हर वर्ग को साधने की रणनीति अपनाई है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि उनकी यह चाल किसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी—नीतीश-भाजपा गठबंधन या तेजस्वी की आरजेडी?
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अति पिछड़ों और अल्पसंख्यकों पर फोकस
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: जन सुराज पार्टी की पहली लिस्ट में अति पिछड़े वर्ग से जुड़े 17 उम्मीदवार शामिल हैं, जबकि 11 पिछड़े वर्ग से और 9 अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।
यह वर्गीय संतुलन साफ बताता है कि प्रशांत किशोर बिहार की सामाजिक गणित को बारीकी से समझते हैं।
पार्टी ने इस लिस्ट में डॉक्टरों, पूर्व अफसरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी जगह दी है।
इसमें भोजपुरी गायक रितेश रंजन पांडे, पूर्व आईपीएस आर.के. मिश्रा, और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर जैसे नाम शामिल हैं।
पिछली बार जिन सीटों पर कांटे का मुकाबला था, वहां उतारे उम्मीदवार
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: जन सुराज ने पहले चरण की 121 सीटों में से 51 पर उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें कई ऐसी सीटें हैं जहां 2020 के चुनाव में जीत-हार का अंतर बहुत कम रहा था।
इन 51 सीटों में से 29 पर हार-जीत का अंतर 16 हजार से कम वोटों का था और 19 सीटों पर तो यह अंतर 10 हजार से भी कम रहा।
इतना ही नहीं, 3 सीटों पर मुकाबला इतना कड़ा था कि विजेता सिर्फ 1000 वोटों से भी कम अंतर से जीते थे।
NDA के लिए सबसे बड़ा खतरा
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: इन 51 सीटों में से 32 पर 2020 में एनडीए ने जीत दर्ज की थी, जबकि महागठबंधन को 16 सीटें मिली थीं और 3 सीटें AIMIM के खाते में गई थीं।
बीजेपी ने 17, जेडीयू ने 13 और जीतन राम मांझी की पार्टी ने 1 सीट जीती थी। आंकड़ों के मुताबिक, 19 सीटों पर एनडीए को बेहद संघर्ष के बाद जीत मिली थी, जहां अब जन सुराज की मौजूदगी खेल बिगाड़ सकती है।
अगर जन सुराज इन क्षेत्रों में थोड़ा भी वोट शेयर काट लेती है, तो सबसे बड़ा नुकसान एनडीए को उठाना पड़ सकता है।
खासकर बीजेपी और जेडीयू को, जिनकी कई सीटें 5 हजार से कम वोटों के अंतर से जीती गई थीं।
महागठबंधन को सीमित असर, लेकिन राहत नहीं
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: महागठबंधन के लिए भी जन सुराज की मौजूदगी पूरी तरह फायदेमंद नहीं है। तेजस्वी यादव की आरजेडी ने पिछली बार 11 सीटें जीती थीं, जिनमें से 7 पर जीत का अंतर 10 हजार से कम था।
यदि जन सुराज ने अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के वोटों में सेंधमारी की, तो ये सीटें भी फिसल सकती हैं।
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जन सुराज का प्रभाव एनडीए पर ज्यादा पड़ेगा, क्योंकि प्रशांत किशोर ने “गांव-गांव संवाद” के जरिए जो जनाधार तैयार किया है, उसका झुकाव ग्रामीण वर्ग और निचले तबके में अधिक है, जो पारंपरिक रूप से एनडीए का वोट बैंक रहा है।
प्रशांत किशोर पर लग रहे आरोप
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जन सुराज वास्तव में आरजेडी की “बी पार्टी” है, जो अप्रत्यक्ष रूप से तेजस्वी यादव को फायदा पहुंचाने के लिए मैदान में उतरी है।
विपक्ष का दावा है कि किशोर की रणनीति एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाकर महागठबंधन का रास्ता आसान करना है।
हालांकि, प्रशांत किशोर इन आरोपों को नकारते हुए खुद को “जनता का प्रतिनिधि” बताते हैं, जो बिहार में एक “विकल्प” देना चाहते हैं।
त्रिकोणीय मुकाबले की आहट
बिहार चुनाव 2025 में नया समीकरण: बिहार का चुनावी परिदृश्य इस बार त्रिकोणीय होता दिख रहा है—एनडीए, महागठबंधन और जन सुराज।
यदि जन सुराज 5-7% तक भी वोट शेयर हासिल करने में सफल रहती है, तो कई सीटों पर नतीजे उलट सकते हैं।
खासकर वो सीटें जहां 2020 में हार-जीत का फासला बेहद कम था।
अब देखने वाली बात यह होगी कि एनडीए इस “प्रशांत फैक्टर” से कैसे निपटता है और क्या महागठबंधन को वाकई इस नई ताकत से फायदा होगा, या फिर प्रशांत किशोर खुद को तीसरे मोर्चे के मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर पाएंगे।
जन सुराज की पहली लिस्ट ने बिहार की राजनीति में हलचल तो मचा दी है, पर इसका वास्तविक असर चुनावी नतीजों में कितना दिखेगा, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।