बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राज्य की राजनीति में मुस्लिम वोट अभी भी सबसे निर्णायक फैक्टर्स में से एक है।
मुस्लिम समुदाय का वोट पारंपरिक रूप से RJD-कांग्रेस गठबंधन की झोली में जाता रहा है, लेकिन इस बार सीमांचल के चार जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने जो झटका दिया है, उसने सबको चौंकाया है।
बिहार चुनाव 2025, क्या हुआ सीमांचल में?
AIMIM ने 5 सीटों पर जीत हासिल की।
कई अन्य सीटों पर 20,000-40,000 वोट काटकर महागठबंधन के उम्मीदवारों को हरवा दिया।
कुल मिलाकर सीमांचल की 24 सीटों में से NDA को 18, AIMIM को 5 और महागठबंधन को सिर्फ 1 सीट मिली।
यह परिणाम सिर्फ विधानसभा सीटों की कहानी नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज के भीतर चल रहे एक बड़े मानसिक बदलाव की कहानी है।
बिहार चुनाव 2025: ओवैसी की घुसपैठ क्यों हुई गहरी?
ओवैसी जिस अंदाज में मुसलमानों के हक की बात करते हैं, वह उन्हें भावनात्मक रूप से जोड़ता है। RJD-कांग्रेस के नेता “सेक्युलरिज्म” की बात करते हैं, लेकिन मुस्लिम-विशिष्ट मुद्दों पर उतना आक्रामक नहीं दिखते।
सीमांचल बिहार का सबसे पिछड़ा इलाका है। बाढ़, बेरोजगारी, प्रवास, शिक्षा-स्वास्थ्य की बदहाली। नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में भी यहाँ कुछ खास नहीं बदला।
महागठबंधन ने सीमांचल में मुस्लिम उम्मीदवार तो दिए, लेकिन जमीनी कैंपेन में ओवैसी जितनी मेहनत नहीं की। तेजस्वी यादव की रैलियाँ भी यहाँ कम हुईं।
नई पीढ़ी सोशल मीडिया पर सक्रिय है। वह ओवैसी के भाषण सुनती है और उनमें अपना भविष्य देखती है।
बिहार चुनाव 2025: बिहार में मुस्लिम वोट का ऐतिहासिक पैटर्न
बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोटरों का व्यवहार दशकों से एक ही सूत्र पर बंधा रहा है, मजहब को खतरा और BJP को रोकना।
लालू प्रसाद यादव ने मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण बनाकर RJD को मजबूत बनाया। मुस्लिम समुदाय ने BJP को “मुस्लिम-विरोधी” मानते हुए हमेशा विपक्षी दलों (RJD, कांग्रेस) को समर्थन दिया। लालू के “मुस्लिम रक्षक” इमेज ने RJD को सत्ता में रखा।
नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में भी मुस्लिम वोट MY पर टिका रहा। 2015 चुनाव में NDA की हार में मुस्लिम वोटों ने महागठबंधन को 18% से ज्यादा वटों का शेयर दिया।
2020 में AIMIM की एंट्री के बावजूद 68% मुस्लिम वोट महागठबंधन को मिले। BJP को सिर्फ 17%। लेकिन AIMIM ने 5 सीटें जीतकर वोट बांट दिया, जिससे NDA को फायदा हुआ।
2025 में यही पैटर्न जारी रहा। एग्जिट पोल्स और नतीजों से साफ है कि मुस्लिम वोटरों ने BJP को हराने के लिए वोट डाला, लेकिन विकास या स्थानीय मुद्दों से ज्यादा मजहबी असुरक्षा पर फोकस किया।
बिहार चुनाव 2025: क्यों बरकरार रहा यह पैटर्न ?
वक्फ बिल को “संपत्ति कब्जे की साजिश” माना गया। CAA-NRC की आशंका ने BJP-विरोध को तेज किया। ओवैसी ने संसद में CAA बिल फाड़कर मुस्लिम भावनाओं को जगाया।
महागठबंधन ने मजहबियों को टिकट कम दिए। तेजस्वी ने ओवैसी को “कट्टरपंथी” कहा, जो उल्टा पड़ा, और मुस्लिम वोटरों ने इसे “अपमान” माना।
AIMIM ने भाषा और मुस्लिम-विशिष्ट मुद्दों पर फोकस किया और युवा मुस्लिम सोशल मीडिया पर ओवैसी के भाषणों से जुड़े।
सीमांचल सबसे पिछड़ा इलाका माना गया है क्योंकि वहां के लोगों में साक्षरता दर की कमी देखी गयी है।
AIMIM ने महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया, लेकिन BJP ने हिंदू वोटों को एकजुट किया।
बिहार चुनाव 2025: इसके क्या मायने हैं?
मुस्लिम वोट अब एकला चलो की राह पर है, वह अब किसी एक पार्टी का “पॉकेट वोट” नहीं रहा।
RJD-कांग्रेस को सीमांचल में नई रणनीति बनानी पड़ेगी, वरना 2029 लोकसभा चुनाव में भी नुकसान हो सकता है।
BJP के लिए यह दोधारी तलवार है, एक तरफ महागठबंधन को नुकसान और ओवैसी की मौजूदगी से हिन्दू वोट और ज़्यादा एकजुट हो सकते है।
बिहार की राजनीति में एक नया “मुस्लिम क्षेत्रीय दल” उभर रहा है, जिसे नजरअंदाज करना महंगा पड़ सकता है।

