बांग्लादेश: फरवरी 2026 में होने वाले आम चुनाव से पहले बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर 1971 के मुक्ति संग्राम और उस दौरान हुए बंगालियों के नरसंहार की बहस में उलझ गई है।
देश के सबसे अहम विपक्षी दल बीएनपी के कार्यकारी अध्यक्ष तारिक रहमान ने लंदन से दिए अपने संबोधन में जमात-ए-इस्लामी को सीधे कटघरे में खड़ा करते हुए चुनावी हवा को और तेज कर दिया है।
अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद से बांग्लादेश में राजनीतिक संतुलन तेजी से बिगड़ा है और इस शून्य को जमात ने अपने पक्ष में बदलने का प्रयास तेज कर दिया है।
बांग्लादेश: अवामी लीग के प्रतिबंध से जमात का उभार
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लगने के बाद जमात-ए-इस्लामी अब एक बड़ी सियासी ताकत के रूप में सामने आ रही है।
राजनीतिक समीकरणों में आए इस बदलाव से बीएनपी चिंतित है और वह जमात की पुरानी भूमिका को फिर से जनता के सामने लाकर इसे एक बड़ा नैरेटिव बनाना चाहती है।
अवामी लीग के हटने से विपक्षी मैदान में जमात की सक्रियता बढ़ी है और वह खुद को वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है।
तारिक रहमान का तीखा हमला
लंदन में दिए गए अपने संबोधन में बीएनपी नेता तारिक रहमान ने जमात पर बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान जमात ने अपने हितों की रक्षा करते हुए लाखों लोगों की हत्या की।
उन्होंने यह भी कहा कि जमात के सहयोगियों ने अनगिनत माताओं और बहनों का शोषण किया और इस इतिहास को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
तारिक का यह बयान तब आया जब जमात ने हालिया वक्तव्य में जनता से फिर एक मौका देने की अपील की थी।
बीएनपी इस बयान को जमात की ऐतिहासिक छवि के संदर्भ में चुनौती देने का अवसर मान रही है।
नई छात्र राजनीति और NCP का उभार
इसी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच छात्र नेतृत्व वाली नेशनल सिटिजन पार्टी, यानी NCP का उभार भी बांग्लादेश की राजनीति को नई दिशा दे रहा है।
यह पार्टी स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन और फरवरी 2025 में गठित छात्र संगठनों से निकली है, जिन पर मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के समर्थन का आरोप है।
हाल ही में NCP ने जमात-ए-इस्लामी और अन्य समूहों के साथ मिलकर ‘गणतांत्रिक संगस्कार जोट’ नामक नया गठबंधन बनाया है। यह वही समूह हैं जिन्होंने पिछले साल व्यापक जन आंदोलन चलाया था, जिससे नई पीढ़ी में इनके प्रति आकर्षण बढ़ा।
द डेली स्टार सर्वे और बदलता जनमत
बांग्लादेश के प्रमुख अखबार द डेली स्टार में प्रकाशित ताज़ा मतदाता सर्वेक्षण बताता है कि यदि आज चुनाव हुए तो बीएनपी को 33 प्रतिशत वोट मिलेंगे, जबकि जमात 29 प्रतिशत पर रहेगी।
यह अंतर भले कम हो, लेकिन दोनों ही पार्टियों के प्रति जनता का रुझान दिलचस्प है। सर्वे के अनुसार बीएनपी के प्रति 51 प्रतिशत और जमात के प्रति 53 प्रतिशत लोग सकारात्मक रवैया रखते हैं।
इससे संकेत मिलता है कि दोनों ही पार्टियाँ एक बड़े मनोवैज्ञानिक संघर्ष में हैं और आम चुनाव बेहद करीबी होने का संकेत दे रहे हैं।
चुनावी माहौल में 1971 का मुद्दा फिर केंद्र में
बांग्लादेश की राजनीति में 1971 का युद्ध मात्र एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक आधार भी है।
हर चुनाव में यह मुद्दा कहीं न कहीं सामने आता है, लेकिन 2026 के चुनाव में इसकी तीव्रता पहले से कहीं अधिक है।
बीएनपी इसे नैतिकता और राष्ट्रीय जिम्मेदारी का सवाल बता रही है, जबकि जमात अपनी वर्तमान राजनीतिक छवि को इतिहास से अलग कर नया भरोसा बनाने में लगी है।
ग्रामीण और पारंपरिक वोटरों के लिए यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है, जबकि युवा वर्ग NCP और नए गठबंधन की ओर भी आकर्षित हो सकता है।
अवामी लीग का प्रतिबंध पूरे चुनावी समीकरण को एक नए ढांचे में ढाल चुका है।

