Baijnath Mahraj: बैजनाथ महाराज, श्रीनाथजी महाराज आश्रम, लक्ष्मणगढ़ (सीकर, राजस्थान) के पीठाधीश्वर हैं। उन्होंने जीवन भर भारतीय संस्कृति, अध्यात्म, शिक्षा और चरित्र निर्माण के क्षेत्र में जो योगदान दिया है।
वह प्रेरणादायक और अनुकरणीय है। भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2025 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया, जो साधु परंपरा, भारतीय शिक्षा और योग के प्रचार-प्रसार में उनके दीर्घकालिक योगदान की मान्यता है।
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Baijnath Mahraj: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बैजनाथ महाराज का जन्म 5 मार्च 1935 को राजस्थान के सीकर ज़िले के पास पनलावा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मात्र 4 वर्ष की उम्र में वे गाँव के ही संत श्रद्धानाथजी महाराज के संपर्क में आए।
उनके देहांत (1985) तक उन्हीं के सान्निध्य में साधना करते रहे। वे शिक्षा में अत्यंत मेधावी थे और राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेज़ी साहित्य और हिंदी में एम.ए. की उपाधियाँ प्राप्त कीं।
शैक्षणिक सेवा और नैतिक शिक्षा
श्री बैजनाथ महाराज ने ज्ञान भारती विद्यापीठ, कोठयारी में 25 वर्षों तक प्रधानाचार्य के रूप में कार्य किया। उनके कार्यकाल में यह विद्यालय न केवल शिक्षा में बल्कि विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के लिए भी पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हुआ।
आश्रमिक जीवन और आध्यात्मिक उत्तराधिकार
1985 में गुरु के आदेशानुसार श्री बैजनाथ ने विद्यालय का पद छोड़ दिया और लक्ष्मणगढ़ के श्रीनाथजी महाराज आश्रम में स्थायी रूप से आकर सेवा आरंभ की।
वहीं उन्हें नाथ संप्रदाय में विधिवत दीक्षित किया गया और अपने गुरु के उत्तराधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उन्होंने आश्रम में अनेक निर्माण कार्य कराए — नए भवन, धार्मिक ग्रंथों की विशाल लाइब्रेरी और ‘श्रद्धा स्मृति मंदिर’ का निर्माण कराया, जहाँ गुरुजी की स्मृतियाँ सुरक्षित रखी गई हैं।
धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियाँ
आश्रम में सालभर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है जिनमें श्रद्धानाथजी की बारसोड़ी (निर्वाण दिवस), शिवरात्रि, गुरुपूर्णिमा, दीपावली, नववर्ष, होली, नवरात्रि, रामनवमी और हनुमान जयंती प्रमुख हैं। साथ ही, उन्होंने माउंट आबू में आश्रम की एक शाखा की स्थापना की जहाँ नियमित रूप से ध्यान और भजन की गतिविधियाँ होती हैं।
शिक्षा और योग के लिए संस्थानों की स्थापना
उन्होंने ‘श्रद्धा संस्कृत विद्यापीठ’ की स्थापना की जहाँ विद्यार्थी वेदों के साथ-साथ सामान्य विषयों की शिक्षा भी प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने हाल ही में ‘श्री श्रद्धा योग एवं दर्शन शिक्षण संस्थान’ की भी स्थापना की है जो श्री रामानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर से मान्यता प्राप्त है। यहाँ प्रशिक्षित शिक्षक विद्यार्थियों को योग डिप्लोमा की तैयारी कराते हैं।
विनम्रता और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक
लगभग 90 वर्षों के अपने जीवन में उन्होंने धर्म, शिक्षा, योग और मानवता की सेवा की है। उन्होंने कभी अपने कार्य का प्रचार नहीं किया और सदा निस्वार्थ सेवा, तपस्या और राष्ट्र निर्माण में ही समर्पित रहे।
पद्म श्री 2025: क्यों मिला सम्मान
भारत सरकार ने उनके द्वारा स्थापित धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों, योग और वैदिक शिक्षा के प्रसार, मानव सेवा, तथा भारतीय परंपरा के संरक्षण हेतु उन्हें वर्ष 2025 में ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया। यह सम्मान न केवल एक व्यक्ति को, बल्कि उन मूल्यों को भी मान्यता है जिन पर भारत की आध्यात्मिक नींव टिकी है।
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