गंगा में अस्थि-विसर्जन: सनातन धर्म में मृत्यु केवल जीवन का अंत नहीं, बल्कि आत्मा की एक नई यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। जब किसी व्यक्ति का दाह संस्कार संपन्न होता है, तब उसकी अस्थियों को पवित्र नदियों—विशेषकर गंगा—में प्रवाहित करने की परंपरा का पालन किया जाता है।
यह केवल धार्मिक रिवाज भर नहीं, बल्कि गहरा आध्यात्मिक और दार्शनिक अर्थ रखने वाली सदियों पुरानी मान्यता है।
गंगा में अस्थि-विसर्जन: पंचतत्त्व और शरीर का पुनर्मिलन
गंगा में अस्थि-विसर्जन: गरुड़ पुराण में वर्णित है कि मानव-देह पांच तत्वों—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—से निर्मित होती है। जीवन समाप्त होने के बाद शरीर का इन मूल तत्वों में लौटना स्वाभाविक एवं अनिवार्य है।
दाह संस्कार के समय देह अग्नि-तत्व को सौंप दी जाती है।
इसके पश्चात शेष बची अस्थियों को जल-तत्व के माध्यम से ब्रह्मांड में विलीन करने का विधान है।
यही कारण है कि अंतिम संस्कार के बाद तीन दिनों के भीतर अस्थियाँ इकट्ठा कर दस दिनों के अंदर किसी पवित्र नदी में विसर्जित की जाती हैं।
गंगा को क्यों माना गया सर्वोच्च पवित्र?
गंगा में अस्थि-विसर्जन: गंगा की दिव्यता और राजा भगीरथ की कथा
पुराणों के अनुसार राजा भगीरथ ने कठोर तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित कराया था, ताकि उनके पूर्वजों को मुक्ति मिल सके। इसी घटना के कारण गंगा को ‘पाप-नाशिनी’ और ‘मोक्षदायिनी’ का दर्जा प्राप्त हुआ।
गंगा के स्पर्श से आत्मा का शुद्धिकरण
ऐसा माना जाता है कि गंगा का जल शारीरिक ही नहीं, बल्कि सूक्ष्म रूप में आत्मिक शुद्धि भी प्रदान करता है। अस्थियाँ जब गंगाजल में प्रवाहित की जाती हैं, तो आत्मा को पापों से मुक्ति मिलती है और उसके लिए स्वर्ग की राह प्रशस्त होती है।
अस्थि-विसर्जन और मोक्ष का संबंध
सनातन मान्यता कहती है कि गंगा में प्रवाहित की गई अस्थियाँ आत्मा का मार्ग सरल बनाती हैं।
आत्मा पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो सकती है।
उसे उच्च लोकों—यहाँ तक कि ब्रह्मलोक—की प्राप्ति का अवसर मिलता है।
इस प्रक्रिया को आत्मा की ‘परम शांति’ का मार्ग भी कहा गया है।
गंगा में विसर्जन: एक आध्यात्मिक पुल
गंगा में अस्थि-विसर्जन केवल मृत्यु-संस्कार का एक चरण नहीं, बल्कि जीवन से परे की यात्रा का आधार है। यह परंपरा आत्मा के लिए पृथ्वी से सूक्ष्म लोकों तक का एक दिव्य मार्ग तैयार करती है।
इस विश्वास के कारण ही हजारों वर्षों से गंगा हिंदू समाज में सिर्फ नदी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक पुल, मोक्ष का द्वार और अनंत शांति का प्रतीक बनी हुई है।

