अमोल मजूमदार: कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे किरदार गढ़ती है, जो खुद सुर्खियों में नहीं आते, मगर उन्हीं की मेहनत किसी और को चमका देती है। क्रिकेट की दुनिया में ऐसा ही एक नाम है — एक ऐसा इंसान जिसने मैदान पर न सही, पर ड्रेसिंग रूम में बैठकर भारत का भाग्य बदल दिया।
अमोल मजूमदार: एक साधारण लड़का जिसने गढ़ी असाधारण कहानी
अमोल मजूमदार: 11 नवंबर 1974 को मुंबई में जन्मे अमोल मजूमदार के घर में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, एक संस्कार था।
उनके पिता अनिल मजूमदार और चाचा दोनों ही शौकिया क्रिकेटर थे। जब पिता ने बेटे की आंखों में क्रिकेट का सपना देखा, तो उसे 10 साल की उम्र में ही मशहूर कोच रामाकांत आचरेकर की अकादमी में भेज दिया — वही आचरेकर जिन्होंने सचिन तेंदुलकर जैसे लीजेंड को गढ़ा था।
अमोल ने बी.पी.एम. हाई स्कूल में पढ़ाई की, फिर आचरेकर के कहने पर शारदाश्रम विद्यालय में दाखिला लिया, जहाँ उनकी मुलाकात हुई एक और नन्हे बल्लेबाज़ से — सचिन तेंदुलकर। यहीं से अमोल की असली यात्रा शुरू हुई।
पहले ही मैच में रचा इतिहास
अमोल मजूमदार: साल 1993–94 में रणजी ट्रॉफी के अपने पहले ही मैच में, मुंबई की ओर से हरियाणा के खिलाफ अमोल ने जो किया, वह इतिहास बन गया।
उन्होंने अपने डेब्यू मैच में 260 रन ठोके — यह किसी भी खिलाड़ी का फर्स्ट क्लास डेब्यू में सबसे बड़ा स्कोर था।
यह रिकॉर्ड पूरे 24 साल तक उनके नाम रहा, जब तक 2018 में अजय रोहेड़ा ने इसे नहीं तोड़ा।
उनकी तकनीक, धैर्य और क्लास देखकर उन्हें “नया तेंदुलकर” कहा जाने लगा।
जल्द ही वे भारतीय अंडर-19 टीम के उपकप्तान बने, जहाँ उनके साथी थे राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे भविष्य के सितारे।
अमोल मजूमदार: किस्मत का दूसरा पन्ना
हर बड़ी कहानी में एक मोड़ होता है। अमोल के लिए वो मोड़ तब आया जब चयनकर्ताओं ने बार-बार उनका नाम अनदेखा किया।
जहाँ एक ओर तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली और लक्ष्मण भारतीय टीम की रीढ़ बन गए, वहीं अमोल हर बार चयन सूची के बाहर रह गए।
कई क्रिकेट विशेषज्ञों ने इसे बीसीसीआई की चयन नीति की गलती कहा, लेकिन अमोल ने कभी शिकायत नहीं की।
वे सिर्फ इतना कहते थे — “टीम में पहले से चार महान बल्लेबाज़ थे, मेरे लिए वहाँ जगह बनाना लगभग असंभव था।”
घरेलू क्रिकेट के महारथी
अमोल मजूमदार: अमोल ने अपनी लगन नहीं छोड़ी। उन्होंने मुंबई, असम और आंध्र प्रदेश के लिए खेला, और लगातार रन बनाए।
2006–07 में उन्होंने मुंबई टीम की कप्तानी संभाली और रणजी ट्रॉफी जिताई।
जब 2014 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कहा, तब तक वे भारत के घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ बन चुके थे।
बाद में यह रिकॉर्ड वसीम जाफर ने तोड़ा, लेकिन अमोल का नाम हमेशा सम्मान से लिया गया।
अमोल मजूमदार: खिलाड़ी से गुरु बनने का सफर
रिटायरमेंट के बाद अमोल ने मैदान नहीं छोड़ा, बस अपनी भूमिका बदल ली।
2013 में वे नीदरलैंड्स टीम के बल्लेबाज़ी कोच बने,
फिर 2018 में राजस्थान रॉयल्स (IPL) से जुड़े।
2019 में दक्षिण अफ्रीका टीम के भारत दौरे में इंटरिम बैटिंग कोच बने।
और फिर जून 2021 में वे मुंबई रणजी टीम के मुख्य कोच बने।
लेकिन असली इतिहास अक्टूबर 2023 में लिखा गया, जब बीसीसीआई ने उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम का हेड कोच नियुक्त किया।
अमोल मजूमदार: 2025 में जब भारत ने अमोल का सपना पूरा किया
2025 — वही साल जब अमोल की कोचिंग में भारतीय महिला टीम ने
अपना पहला आईसीसी वनडे वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रच दिया।
जिस खिलाड़ी को खुद नीली जर्सी पहनने का मौका नहीं मिला, उसने अपनी टीम को वह पल दिलाया, जिसके लिए करोड़ों भारतीय तरसते हैं।
नाम भले पर्दे के पीछे रहा, पर असर अमर है
अमोल मजूमदार: अमोल मजूमदार की कहानी हमें सिखाती है कि हर सफलता की कहानी सिर्फ मैदान पर नहीं लिखी जाती —
कुछ कहानियाँ नेट्स में, अभ्यास में, और दूसरों को जीत सिखाने में गढ़ी जाती हैं। वो भले ही भारत के लिए नहीं खेले, पर उन्होंने भारत को जीतना सिखाया।

