America: अमेरिका के लॉस एंजिल्स शहर में पिछले चार दिनों से हालात बेहद तनावपूर्ण बने हुए हैं।
अवैध अप्रवासियों को निकालने के ट्रंप प्रशासन के फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। हिंसक प्रदर्शनों के चलते अब तक दो लोगों की मौत हो चुकी है।
प्रदर्शनकारियों ने हाईवे को जाम कर दिया है, कई सेल्फ-ड्राइविंग कारों में आग लगा दी गई है और सड़कों पर अफरा-तफरी का माहौल है।
सेना की तैनाती के बाद और भड़की जनता
America: स्थिति को काबू में करने के लिए प्रशासन ने पहले ही 2000 नेशनल गार्ड्स तैनात किए थे, अब उनकी संख्या बढ़ाकर 4000 कर दी गई है।
इसके अलावा 700 मरीन कमांडो भी भेजे जा रहे हैं। इसके बावजूद जनता का गुस्सा शांत नहीं हो रहा।
विरोध की तीव्रता और हिंसा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका एक गृहयुद्ध जैसे हालात की ओर बढ़ रहा है।
ट्रंप की नीतियों पर सवाल
America: इस पूरे संकट के केंद्र में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हैं। उनकी नीतियों को लेकर जनता में असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है।
ट्रंप प्रशासन की नीतियां न सिर्फ अप्रवासियों को निशाना बना रही हैं, बल्कि सामाजिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा दे रही हैं।
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका इस वक्त अपने सबसे कमजोर दौर से गुजर रहा है।
क्या अमेरिका में हो सकता है तख्तापलट?
America: लॉस एंजिल्स और न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों में फैले विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए एक बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिका में पाकिस्तान की तरह तख्तापलट हो सकता है?
इसका जवाब साफ है….. नहीं। अमेरिका में तख्तापलट की संभावना बेहद कम है, क्योंकि यहां की लोकतांत्रिक व्यवस्था काफी मजबूत है।
अमेरिका में तख्तापलट क्यों नहीं हो सकता?
America: अमेरिका का संविधान न केवल विस्तृत है, बल्कि सरकार की शक्तियों पर स्पष्ट अंकुश भी लगाता है।
यहां की न्यायिक व्यवस्था स्वतंत्र और प्रभावी है, जो सत्ता के दुरुपयोग को रोकती है।
सेना भी पूरी तरह से लोकतंत्र के अधीन है और इतिहास में कभी भी उसने राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश नहीं की।
फिर क्यों उठते हैं तख्तापलट के सवाल?
America: हालांकि, जब किसी देश में सामाजिक असमानता बढ़ती है, राजनीतिक ध्रुवीकरण गहराता है और नेतृत्व में भरोसा कम हो जाता है, तब जनता के बीच उथल-पुथल की स्थिति उत्पन्न होती है।
अमेरिका भी फिलहाल इसी दौर से गुजर रहा है। यही कारण है कि लोग तख्तापलट जैसे विचारों पर चर्चा कर रहे हैं, भले ही इसकी व्यावहारिक संभावना न के बराबर हो।