लोकसभा चुनाव 2024 के आये परिणामों ने भाजपा के साथ ही बीजेपी समर्थकों को भी बड़ा झटका दिया है। उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 43 सीट सपा और कांग्रेस के पास गयी है। जिस उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने काया पलट दी, आज उसी ने बीजेपी को सबसे बड़ा धोखा दिया है। आधे से ज्यादा यूपी अखिलेश की बिछाई बिसात में फंस गया और बीजेपी को इतना बुरा धकेला की वो सरकार बनाने के लिए बहुमत तक नहीं ला पायी और आज उन्हें इसके लिए NDA का सहारा लेना पड़ रहा है।
इतिहास ने एक बार फिर खुद को दोहराया है
ऐसा तो नहीं है कि यूपी में ये पहली बार हुआ है ये तो बस एक इतिहास का पन्ना है जिसे एक बार फिर पलटा गया है। याद कीजिये वो साल, 1992 जब राम मंदिर के निर्माण के लिए बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किया गया था तब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपना इस्तीफा टेबल पर दे मारा की राम मंदिर तो बनना ही चाहिए। फिर भी एक साल बाद वहां के लोगों ने उस इंसान को सत्ता सौंप दी जिसकी पार्टी ने रामभक्तों और कारसेवकों पर गोलियां चलवायी थी। वो इंसान थे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और आज एक बार फिर जिसने यानि पीएम नरेन्द्र मोदी ने राम मंदिर को बनवाया लोगों ने उसे ना चुनकर मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव और उसकी पार्टी को ही चुना।
ऐसे में सवाल ये उठते हैं की आखिर क्या कारण रहा की भाजपा यूपी खासकर अयोध्या में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी। आइये समझने की कोशिश करते हैं।
राम मंदिर भी बीजेपी के लिए सीटें नहीं ला पाया
इस पूरे लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा चर्चा का विषय रहा राम मंदिर, जिसको बनने में 500 साल लग गए। 1980 में जब बीजेपी का गठन हुआ था तब ही राम मंदिर का पुनः निर्माण करवाना उनका चुनावी वादा रहा। जितने भी बीजेपी समर्थक थे उनका ये दावा था की राम मंदिर से बीजेपी का वोटर काउंट जरूर बढ़ेगा।
जब मतदान के पहले रुझान आये तब ही ये साफ हो गया था की राम मंदिर का मुद्दा फैजाबाद (अयोध्या) तक में खुद को मुख्य वजह नहीं बना पाया। चुनाव के पहले रुझान आने पर ही सांसद लल्लू सिंह पीछे हुए तो आगे बढ़ने की नौबत ही नहीं आयी और सपा प्रत्याशी भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले लगभग 10 हजार वोटों से जीत गया।
कांग्रेस-एसपी ने ऐसे लिखी जीत की स्क्रिप्ट
आखिरी बार दोनों पार्टियों को 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में साथ देखा गया था, लेकिन उस वक्त ये बीजेपी का कुछ ख़ास बिगाड़ नहीं पायी थी। उस समय बीजेपी को 302 सीटें मिली थी और कांग्रेस-SP गठबंधन को सिर्फ 47। इस बार दोनों ने अपनी समझदारी का इस्तेमाल किया और उन फैक्टर्स को पकड़ा जहां से वोटों को तोड़ा जा सकता था और उन्हें अपनी ओर किया का सकता था जैसे की आरक्षण और मुस्लिम वोटों की राजनीती।
Opposition की रणनीति ने बसपा को भाजपा की ‘बी’ टीम साबित कर दिया
विपक्ष के नेताओं ने आरक्षण के मुद्दे को लेकर ऐसा चक्रव्यूह रचा की एक तरफ जहां भाजपा उस जाल में फंस गई तो दूसरी ओर बसपा भी भाजपा की ‘बी’ टीम की जाल में फंस गई। यही कारण रहा की बसपा के मूल कैडर का मत बहुत आसानी से समाजवादी पार्टी के खाते बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के ही शिफ्ट हो गया।
कांग्रेस-एसपी ने की मुस्लिम वोटों की राजनीती
इसको समझने का सबसे बड़ा उदाहरण है उत्तरप्रदेश की रामपुर सीट। रामपुर में ज्यादातर वोटर्स मुस्लिम है। आपको पीएम मोदी की आवास योजना के बारे में तो पता ही है यहां सरकार ने इस योजना के तहत 532 के आसपास गरीब परिवारों को घर दिए थे, लेकिन फिर भी यहां बीजेपी हार गई, क्यूंकि अखिलेश यादव की पार्टी ने वहां के मुसलमानों के मन में ये विचारधारा डाल दी थी कि बीजेपी मुस्लिम्स को माइनॉरिटी समझती है और वो उनकी विचारधारा को कभी नहीं समझेगी। इसी वजह से मुस्लिम वोटर्स आसानी से सपा में शिफ्ट हो गए।
बसपा के मत बढ़ने में जातिवाद एक बड़ा फैक्टर
अखिलेश यादव यदुवंशी वंश से हैं। उनका वोटर काउंट बढ़ने का एक कारण ये भी है क्योंकि वहां के जितने भी यादव वोटर्स हैं उन्होंने अपना वोट सपा को ही दिया है। जिस से ये बात साफ होती है की सपा जातिवाद के दम पर यूपी में खेल गयी। यादव बिरादरी के लिए ऐसा माना जाता है कि चाहे सरकार काम अच्छा करें या ना करें लेकिन वोट तो उस ही को डलेगा जो उनकी बिरादरी से है।
कम मतदान भी रही बड़ी वजह
इस लोकसभा चुनाव में वोटर काउंट घटकर 65 प्रतिशत के आसपास ही रह गया है। बहुत लोग गर्मी और अन्य कारणों की वजह से वोट देने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकले। जिनमें एक बड़ा कारण रहा मोदी का 400 पार का नारा। इस नारे ने शायद लोगों को आश्वस्त कर दिया था की आएगी तो मोदी सरकार ही।
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