US: डोनाल्ड ट्रंप की नई वीजा नीति ने भारतीय छात्रों के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। अमेरिका की 30 प्रमुख यूनिवर्सिटियों ने करीब 10 हजार भारतीय छात्रों के एडमिशन रद्द कर दिए हैं। इनमें येल, ब्राउन, कार्नेल, स्टैनफर्ड, बोस्टन और वॉशिंगटन जैसी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों के नाम शामिल हैं।
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US: एडमिशन से रोका
इन छात्रों को पहले ही ऑफर लेटर भेज दिए गए थे और जुलाई से उनकी पढ़ाई शुरू होनी थी, लेकिन अब उन्हें एडमिशन से वंचित कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि ट्रंप सरकार द्वारा विदेशी छात्रों को वीजा देने में सख्ती और वित्तीय संसाधनों की कमी इसका मुख्य कारण है।
कई देशों के स्टूडेंट प्रभावित
एक छात्र ने बताया कि वह बोस्टन यूनिवर्सिटी में क्लाइमेट चेंज में पीजी करने वाले थे, लेकिन उनकी पीएचडी एप्लिकेशन को यह कहकर खारिज कर दिया गया कि ट्रंप प्रशासन के लिए क्लाइमेट चेंज अब प्राथमिकता नहीं है और दूसरा बड़ा कारण यह है कि वे विदेशी छात्र हैं। यह मामला सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य देशों के छात्र भी इससे प्रभावित हुए हैं। अमेरिका में शिक्षा के क्षेत्र में जो विविधता और वैश्विक संवाद था, उसे ट्रंप की नीतियों ने गहरा धक्का पहुंचाया है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने ट्रंप का किया विरोध
ट्रंप सरकार के इन आदेशों को अमेरिका में ही जबरदस्त विरोध झेलना पड़ रहा है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने सबसे पहले इसका कड़ा विरोध दर्ज किया। दुनिया की सबसे अमीर यूनिवर्सिटी में शुमार हार्वर्ड के पास करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की संपत्ति है, जो दुनिया के कई छोटे देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है। हार्वर्ड ने साफ तौर पर कहा है कि वह ट्रंप के “मनमाने और गैरकानूनी” आदेशों को स्वीकार नहीं करेगा। यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि शिक्षा का उद्देश्य सीमाओं से परे जाकर ज्ञान का आदान-प्रदान है न कि राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव करना।
हार्वर्ड बनी मजाक- ट्रंप
हार्वर्ड के इस रुख को देख कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भी ट्रंप सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कोलंबिया ने अपने पहले रुख से पीछे हटते हुए साफ किया कि वे राष्ट्रपति के आदेशों का पालन नहीं करेंगे। दूसरी तरफ ट्रंप ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर हमला बोलते हुए कहा कि अब वह मजाक बन चुकी है और वहां वामपंथी विचारधारा हावी हो गई है। टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने भी बयान दिया कि हार्वर्ड को टैक्स में मिलने वाली छूट समाप्त कर उसे एक राजनीतिक संगठन घोषित किया जाना चाहिए।
ट्रंप ने हाल ही में अमेरिका की 60 यूनिवर्सिटियों को यहूदी विरोधी प्रदर्शनों पर रोक लगाने और बाहरी एजेंसी से ऑडिट कराने का आदेश भी दिया है, जिससे यूनिवर्सिटी कैंपस में और अधिक तनाव का माहौल बन गया है। इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल भारतीय छात्रों को शिक्षा के अवसरों से वंचित किया है, बल्कि अमेरिका की लोकतांत्रिक और शैक्षणिक छवि पर भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
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