वैश्विक अर्थव्यवस्था में मार्केट में गिरावट तो सब जगह है,पर देशों की परस्पर तुलना करें तो भारत की स्थिति बेहतर है,और उसके बाद यूरोप की। चीन की स्थिति भारत से पीछे है किन्तु अमेरिका और उसपर आश्रित जापान,हांगकांग,ताइवान,सिंगापुर सबसे पीछे हैं। ताइवान,हांगकांग आदि अमेरिकी कम्पनियों पर आश्रित हैं।
देशों का गिरावट सूचकांक (प्रतिशत में)
🇧🇷 ब्राज़ील Bovespa −2.96%
🇿🇦 द. अफ्रीका JSE −3.5%
🇮🇳 भारत BSE −4.123%
🇦🇺 ऑस्ट्रेलिया ASX −4.4%
🇬🇧 ब्रिटेन FTSE −4.756%
🇪🇺 यूरोप Euronext −4.942%
🇨🇦 कनाडा TSX −6.21%
🇸🇬 सिंगापुर STI −6.52%
🇨🇳 चीन शंघाई −7.34%
🇮🇩 इंडोनेशिया JCI −8.04%
🇷🇺 रूस MOEX −8.05%
🇹🇼 ताइवान TAIEX −9.7%
🇺🇸 अमेरिका NYSE −10.262%
🇯🇵 जापान −12.62%
🇭🇰 हांगकांग −13.296%
वैश्विक औसत गिरावट −7.71% लगभग
वैश्विक GDP-आधारित शेयर बाज़ार की औसत गिरावट लगभग −7.71% है। यह दर प्रमुख राष्ट्रों के GNP और उनके शेयर बाज़ार में आई गिरावट के गुणनफल से गणना की गई है।
अप्रैल 2025 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए व्यापक टैरिफ के परिणामस्वरूप, वैश्विक मुद्रा बाजारों में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव देखे गए। इन टैरिफों के कारण निवेशकों की चिन्ताओं और आर्थिक अनिश्चितताओं ने कई प्रमुख मुद्राओं के विनिमय दरों को प्रभावित किया।
दुनिया की प्रमुख मुद्राओं की वर्तमान स्थिति
नीचे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की अमेरिकी डॉलर (USD) की तुलना में अप्रैल 2025 के आरम्भ से लेकर 7 अप्रैल 2025 तक की विनिमय दरों में परिवर्तन का सारांश प्रस्तुत है:
मुद्रा (देश) 1 अप्रैल 2025 विनिमय दर | 7 अप्रैल 2025 विनिमय दर | परिवर्तन (%)
🇯🇵 जापानी येन 149.80 145.75 +2.70%
🇪🇺 यूरो 1.0788 1.0967 +1.66%
🇨🇦 कनाडाई डॉलर 1.4348 1.4199 +1.04%
🇭🇰 हांगकांग डॉलर 7.7744 7.7688 +0.07%
🇮🇳 भारतीय रुपया 85.6024 85.8087 −0.24%
🇨🇳 चीनी युआन 7.2684 7.3120 −0.60%
🇹🇼 ताइवानी डॉलर 33.0147 33.2058 −0.58%
🇬🇧 ब्रिटिश पाउंड 1.29095 1.28265 −0.64%
🇸🇬 सिंगापुर डॉलर 1.3427 1.3514 −0.65%
🇷🇺 रूसी रूबल 84.8707 86.1891 −1.55%
🇮🇩 इंडोनेशियाई रुपिया 16,575 16,873 −1.80%
🇧🇷 ब्राज़ीली रियल 5.7045 5.9055 −3.52%
🇦🇺 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर 0.6269 0.5986 −4.52%
🇿🇦 दक्षिण अफ़्रीकी रैंड 18.3673 19.5891 −6.66%
हर देश के बारे में इससे ये समझ आता है
यूरो (EUR): अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यूरो में 1.66% की वृद्धि हुई, जो यूरोपीय अर्थव्यवस्था में सुधार और निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
जापानी येन (JPY): सुरक्षित निवेश के रूप में येन की मांग बढ़ी, जिससे येन में 2.70% की दृढ़ता आई।
ब्रिटिश पाउण्ड (GBP): पाउण्ड में 0.64% की मामूली गिरावट देखी गई, जो निवेशकों की सतर्कता को दर्शाता है।
चीनी युआन (CNY): युआन में 0.60% की गिरावट हुई, जो अमेरिकी टैरिफों के प्रभाव को दर्शाता है।
भारतीय रुपया (INR): रुपये में 0.24% की गिरावट आई, जो अपेक्षाकृत स्थिर मानी जा सकती है।
रूसी रूबल (RUB): रूबल में 1.55% की गिरावट दर्ज की गई, जो ऊर्जा निर्यात पर निर्भरता के कारण हो सकती है।
कनाडाई डॉलर (CAD): कनाडाई डॉलर में 1.04% की वृद्धि हुई, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ घनिष्ठ सम्बन्धों को दर्शाता है।
ब्राजीली रियल (BRL): रियल में 3.52% की गिरावट हुई, जो उभरते बाजारों में निवेशकों की चिन्ताओं को दर्शाता है।
इण्डोनेशियाई रुपिया (IDR): रुपिया में 1.80% की गिरावट आई, जो वैश्विक व्यापार तनाव के प्रभाव को दर्शाता है।
दक्षिण अफ्रीकी रैण्ड (ZAR): रैंड में 6.66% की महत्वपूर्ण गिरावट हुई, जो निवेशकों की जोखिम से बचने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD): ऑस्ट्रेलियाई डॉलर में 4.52% की गिरावट दर्ज की गई, जो कमोडिटी बाजारों के प्रभाव को दर्शाता है।
सिंगापुर डॉलर (SGD): सिंगापुर डॉलर में 0.65% की गिरावट हुई, जो क्षेत्रीय आर्थिक चिन्ताओं को दर्शाता है।
ताइवानी डॉलर (TWD): ताइवानी डॉलर में 0.58% की गिरावट आई, जो प्रौद्योगिकी निर्यात पर निर्भरता को दर्शाता है।
हांगकांग डॉलर (HKD): हांगकांग डॉलर में 0.07% की साधारण वृद्धि हुई, जो मुद्रा बोर्ड व्यवस्था के तहत अपेक्षित स्थिरता को दर्शाता है।
इन परिवर्तनों से स्पष्ट है कि अमेरिकी टैरिफों और वैश्विक व्यापार तनावों ने मुद्रा बाजारों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है, जिससे निवेशकों की धारणा और आर्थिक स्थिरता प्रभावित हुई है।
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जापान का मार्केट नीचे, पर करेंसी मजबूत क्यों?
जब जापान का शेयर बाज़ार (निक्केई) भारी गिरावट झेल रहा है, तब भी जापानी येन (JPY) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले मज़बूत क्यों हो गया?
यह एक आर्थिक विरोधाभास (anomaly) प्रतीत होता है, परन्तु इसके पीछे कुछ गहरे आर्थिक और मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं:
1. सेफ हेवन करेंसी (Safe Haven Currency) के रूप में येन की भूमिका
जापानी येन को वैश्विक स्तर पर एक “सुरक्षित मुद्रा” (Safe Haven) माना जाता है। जब वैश्विक स्तर पर अस्थिरता (जैसे ट्रम्प के टैरिफ, व्यापार युद्ध, मन्दी की आशंका) होती है, तो निवेशक अपनी पूँजी को जोखिम वाले शेयरों से निकालकर सुरक्षित मुद्राओं में लगाते हैं। इसलिए, भले ही जापान का स्टॉक मार्केट गिर रहा हो, लेकिन विदेशों से येन की माँग बढ़ती है, जिससे येन मज़बूत होता है।
2. कैरी ट्रेड (Carry Trade) का रिवर्सल
जापानी ब्याज दरें लम्बे समय से 0% या ऋणात्मक (negative) हैं। इस कारण कई वैश्विक निवेशक जापानी येन में सस्ते ऋण लेकर उन्हें उच्च ब्याज वाले देशों (जैसे अमेरिका, ब्राज़ील) में निवेश करते हैं। लेकिन जब बाजार अस्थिर होते हैं, तो वे अपने निवेश वापस ले आते हैं और येन्स में भुगतान करते हैं — इससे येन की माँग बढ़ती है और येन मज़बूत हो जाता है।
3. डॉलर में कमजोरी भी एक कारण
यह भी देखा गया है कि USD में खुद भी गिरावट आयी है, ट्रम्प की टैरिफ नीति के कारण। डॉलर कमजोर होता है तो सभी अन्य मुद्राएँ तुलनात्मक रूप से मजबूत दिखती हैं, विशेषतः जो पहले से ही मजबूत मुद्रा मानी जाती हैं, जैसे येन और यूरो।
4. घरेलू निवेशकों की घरेलू संपत्तियों में वापसी
जापानी निवेशक, जब वैश्विक बाज़ार में गिरावट देखते हैं, तो विदेशों में निवेश बन्द करके अपनी पूँजी वापस जापान में लाते हैं — जिससे भी येन की माँग बढ़ती है।
5. BOJ (Bank of Japan) का हस्तक्षेप नहीं करना
यदि जापानी सेण्ट्रल बैंक (BOJ) मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप नहीं करता है, तो येन की माँग प्राकृतिक रूप से बढ़ती रहती है। यदि BOJ को निर्यात को समर्थन देना होता तो वो येन को कमज़ोर करने के लिए बाज़ार में डॉलर खरीदता, लेकिन वह इस बार निष्क्रिय रहा।
इसलिए जापानी शेयर बाज़ार का गिरना और येन का मजबूत होना विरोधाभासी लगता है, पर वास्तव में यह एक क्लासिक उदाहरण है जहाँ “सुरक्षा की तलाश” (flight to safety) के चलते मुद्रा की माँग बढ़ जाती है।
भारतीय रुपया अपेक्षाकृत स्थिर क्यों रहा?
भारतीय रुपया ने अप्रैल 2025 में वैश्विक अस्थिरता (विशेषकर ट्रम्प के टैरिफ युद्ध) के बावजूद अत्यधिक स्थिरता दिखाई, जबकि अधिकांश एशियाई मुद्राएं और उभरती अर्थव्यवस्थाएं कमजोर हुईं। भारतीय रुपया अपेक्षाकृत स्थिर क्यों रहा? (मात्र −0.24% गिरावट: USD की तुलना में)
1. भारतीय शेयर बाज़ार की अपेक्षाकृत सुदृढ़ता
भारत का BSE मात्र −4.12% गिरा, जबकि अमेरिका, जापान, ताइवान, हांगकांग में 10–13% तक गिरावट आयी। निवेशकों को भारत में कम असुरक्षा और दीर्घकालीन सम्भावनाएं दिखीं। विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) ने पूरी तरह भारत से पूँजी नहीं निकाली, जिससे INR को समर्थन मिला।
2. वित्तीय अनुशासन और विदेशी मुद्रा भण्डार
भारत के पास विशाल विदेशी मुद्रा भंडार (>600 अरब USD) है, जिससे RBI को हस्तक्षेप का अवसर मिलता है। आवश्यकता पड़ने पर RBI रुपये को स्थिर बनाए रखने के लिए बाज़ार में डॉलर बेच सकता है — और अकसर करता भी है। इससे रुपये की घबराहट में गिरावट नहीं होती।
3. भारत का विविध व्यापारिक सम्बन्ध
ट्रम्प के टैरिफ का सीधा असर चीन, ताइवान, जापान, यूरोप पर पड़ा, क्योंकि उनके निर्यात अमेरिका पर अधिक निर्भर हैं। भारत की निर्यात संरचना विविध है और घरेलू बाज़ार मजबूत है, जिससे रुपये को सहारा मिला।
4. देश के भीतर मांग और स्थिरता
भारत में खुदरा मांग और सेवा क्षेत्र पर आधारित अर्थव्यवस्था ने रुपये को आन्तरिक समर्थन प्रदान किया। आयात घटा है (टैरिफ के कारण), जिससे डॉलर की आवश्यकता घटी — यह भी रुपये के लिए अनुकूल रहा।
5. RBI की रणनीति और स्थिर नीतियाँ
RBI ने मुद्रास्फीति को नियन्त्रित किया, ब्याज दरों को सन्तुलित रखा, और किसी प्रकार का झटका देने वाले निर्णय नहीं लिए। इससे विदेशी निवेशकों को भरोसा रहा और पूँजी पलायन नहीं हुआ।
6. अन्य एशियाई मुद्राओं की तुलना में श्रेष्ठता
मुद्रा गिरावट/बढ़त टिप्पणी
🇮🇳 भारतीय रुपया −0.24% ✅ अत्यधिक स्थिर
🇨🇳 चीनी युआन −0.60% ❌ हल्की गिरावट
🇮🇩 इंडोनेशिया −1.80% ❌ मध्यम गिरावट
🇯🇵 जापान (येन) +2.70% 🔄 Safe Haven के कारण असामान्य
इसलिए भारतीय रुपये की स्थिरता दर्शाती है कि वैश्विक आर्थिक संकट में भी भारत को स्थिर, आत्मनिर्भर, और कम-असुरक्षा वाली अर्थव्यवस्था माना जा रहा है। भारत के प्रति विश्वास का प्रमाण सिर्फ शेयर बाज़ार या मुद्रा बाज़ार ही नहीं, बल्कि निवेश प्रवाह और दीर्घकालिक नीति स्थिरता भी है।
यूरो (Euro) डॉलर के मुकाबले क्यों मज़बूत हुआ?
(1 अप्रैल 2025 से अब तक ≈ +1.66% बढ़त)
(EUR/USD: 1.0788 → 1.0967)
अमेरिका, एशिया (जापान, ताइवान, चीन) में अत्यधिक टैरिफ प्रभाव और बाजार गिरावट देखी गई, फिर यूरोपीय मुद्रा दृढ़ क्यों हुई? यह आश्चर्यजनक क्यों है?
1. ट्रम्प के टैरिफ से यूरोप कम प्रभावित
अमेरिका ने टैरिफ का मुख्य निशाना चीन और एशिया को बनाया। यूरोप पर अपेक्षाकृत कम शुल्क लगे, जिससे व्यापार प्रभावित नहीं हुआ। यूरोप को अमेरिका से Auto tariffs का डर था, पर 2025 में अभी तक वह नहीं लागू हुआ।
2. ECB (यूरोपीय सेण्ट्रल बैंक) की सतर्क नीति
ECB ने मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण और धीरे-धीरे ब्याज दरों को सन्तुलित रूप से बढ़ाया। इससे यूरो निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बना (carry trade कम हुआ)।
3. अमेरिका में गिरावट > यूरोप की गिरावट
सूचकांक गिरावट
🇺🇸 NYSE −10.26% ❌
🇪🇺 यूरोनेक्स्ट −4.94% ✅
👉 यूरोप की अर्थव्यवस्था कम घबराई, और निवेशक यूरो को Relatively Safe मानने लगे।
4. यूरोप का व्यापार अधिशेष (Trade Surplus)
जर्मनी, नीदरलैंड, आदि देश अब भी अधिक निर्यात करते हैं और व्यापार अधिशेष बनाए रखते हैं। डॉलर की तुलना में यूरो की मांग बनी रही।
5. यूरो एक वैश्विक ‘reserve currency’ भी है
बैंकों और सरकारों के पास यूरो की बड़ी मात्रा रहती है, जिससे तेज उतार-चढ़ाव कम होता है। बड़े निवेशक डॉलर से भागते हुए कभी-कभी यूरो को शरणस्थल मानते हैं।
6. गोल्ड और ऊर्जा मार्केट से जुड़ाव कम
जैसे-जैसे तेल की कीमतों में गिरावट आई, यूरोपीय देशों को राहत मिली (वे आयातक हैं)। अमेरिका के विपरीत, यूरोप की मुद्रा कमोडिटी से कम प्रभावित होती है।
📊 तुलनात्मक अवलोकन, मुद्रा परिवर्तन विश्लेषण
🇪🇺 यूरो +1.66% ✅ स्थिरता + कम टैरिफ प्रभाव
🇬🇧 पाउंड −0.64% ❌ ब्रेग्ज़िट-आशंकाएं + कम नीति स्पष्टता
🇨🇳 युआन −0.60% ❌ टैरिफ से अधिक प्रभावित
🇯🇵 येन +2.70% 🔄 Safe Haven लेकिन अर्थव्यवस्था अशक्त
🇮🇳 रुपया −0.24% ✅ अत्यधिक स्थिर, घरेलू समर्थित
इसलिए यूरो ने 2025 के इस टैरिफ-प्रभाव काल में अपनी स्थिरता और संयमित आर्थिक नीति के कारण डॉलर पर सापेक्ष बढ़त बनाई। यह संकेत करता है कि दुनिया के निवेशक यूरोप को तुलनात्मक रूप से स्थिर समझ रहे हैं — विशेषतः अमेरिका और एशिया की अस्थिरता के बीच।
अमेरिकी स्टॉक मार्केट चीन से ज्यादा गिरा फिर भी डॉलर युआन से मजबूत क्यों?

अमेरिकी शेयर बाज़ार NYSE में -10.26% की गिरावट आई, जबकि चीन का शंघाई सूचकांक केवल -7.34% गिरा, अर्थात अमेरिका की बाज़ारी स्थिति अधिक गम्भीर रही, फिर भी युआन कमजोर हुआ और डॉलर मजबूत। अब इसका विश्लेषण करते हैं:
1. अमेरिका में शेयर बाजार गिरा, फिर भी डॉलर मजबूत क्यों?
डॉलर वैश्विक रिज़र्व करेंसी है। जब संकट आता है, तो दुनिया भर के निवेशक USD, स्विस फ्रैंक, और गोल्ड में निवेश करते हैं। इसलिए भले ही अमेरिका में भी गिरावट आई हो, लेकिन वैश्विक पूँजी अमेरिका भागी, जिससे डॉलर दृढ़ हुआ।
2. युआन क्यों अशक्त हुआ, जबकि चीन में गिरावट कम थी?
1. चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात आधारित है: ट्रम्प के टैरिफ़ सीधे चीनी निर्यातकों पर चोट करते हैं। जैसे ही टैरिफ बढ़े, चीनी उत्पादों की मांग में गिरावट का अंदेशा हुआ।
2. चीन ने जानबूझकर युआन को गिरने दिया: Currency devaluation एक रणनीति है जिससे चीनी उत्पाद महंगे होने के बावजूद सस्ते दिखें। PBOC (People’s Bank of China) ने युआन की रेफरेंस दर को जानबूझकर नीचा रखा।
3. बाजार की धारणा (Sentiment): निवेशकों की धारणा है कि चीन पर व्यापार युद्ध का प्रभाव अधिक होगा, भले ही अब तक स्टॉक्स ज्यादा न गिरे हों।
इसलिए युआन की अशक्तता का कारण केवल शेयर बाजार की गिरावट नहीं, बल्कि व्यापारिक रणनीति + वैश्विक धारणा + केन्द्रीय बैंक की नीति है। वहीं, डॉलर की दृढ़ता संकट काल में उसकी सेफ हेवन (Safe Haven) स्थिति के कारण है, न कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की दृढ़ता के कारण।