लोककथा से मिली शिक्षा
एक पुरानी लोककथा है कि किसी घर में बिल्ली घुस आती और दूध-दही सहित खाने-पीने का नुकसान करती। परिवार ने उसे सबक सिखाने का निश्चय किया।
एक दिन मौका देखकर उसे कमरे में बंद कर दिया और लाठी-डंडे से मारा। बिल्ली लंबे समय तक गिरी पड़ी रही और मरने का अभिनय करती रही।
दरवाज़ा खुलते ही वह अचानक उठी और तेज़ी से भाग गई। फिर कभी लौटकर उस घर में नहीं आई। बुजुर्गों ने परिवार को समझाया कि यह तरीका घातक हो सकता था।
क्योंकि अगर बिल्ली को बाहर निकलने का रास्ता न मिले तो वह भय से उग्र होकर सीधे इंसान की गर्दन या चेहरे पर झपट सकती है।
इसलिए हमेशा उसे एक खिड़की का रास्ता खुला छोड़ना चाहिए। यही नीति बाद में जीवन और राजनीति दोनों में गहरी शिक्षा देती है।
ट्रम्प और शेर को घेरने की भूल
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इसी नीति की अनदेखी कर दी। उन्होंने मानो बिल्ली नहीं बल्कि पूरे शेर को बिना रास्ता छोड़े घेरने की चेष्टा की।
रूस और चीन के बढ़ते गठजोड़ ने उन्हें ऐसा घेरे में लिया कि उनके पास निकलने का मार्ग ही नहीं बचा। नतीजतन वे कूटनीतिक दबाव में फंसते चले गए।
मोदी का संतुलित कूटनीतिक कदम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रम्प जैसी भूल नहीं की। उन्होंने चीन की विजय परेड में शामिल होने के आमंत्रण को ठुकराकर तीन बड़े संदेश दिए।
पहला, जापान को यह भरोसा दिया कि भारत उसके सम्मान के विपरीत किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगा।
दूसरा, चीन को संकेत दिया कि न तो वह अभी भरोसे योग्य है और न ही उसे एशिया का नेतृत्व सौंपा जा सकता है।
अमेरिका को मिला स्पष्ट संकेत
तीसरा और सबसे अहम संदेश अमेरिका को गया। मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि अमेरिका चीन से अपनी शर्तों पर समझौते कर सकता है।
तो भारत से भी समानता के स्तर पर व्यवहार करना होगा। भारत किसी भी सूरत में द्वितीय दर्जे की भूमिका स्वीकार नहीं करेगा।
खिड़की खोलने का मास्टरस्ट्रोक
मोदी ने चतुराई से वही किया जो लोककथा की सीख थी, उन्होंने पूरी तरह घेरने के बजाय एक खिड़की खुली छोड़ दी।
ट्रम्प के लिए उम्मीद का रास्ता बचाकर उन्होंने वार्ता और संतुलन की संभावना बनाए रखी। यही उनका कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक था, जिसने भारत की स्थिति को और सशक्त किया।