Secondary Infertility: अगर आपने पहले सफलतापूर्वक गर्भधारण किया है लेकिन अब दोबारा कंसीव करना मुश्किल हो रहा है, तो यह सेकेंडरी इनफर्टिलिटी हो सकती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, लगभग 50% इनफर्टिलिटी के मामलों में सेकेंडरी इनफर्टिलिटी शामिल होती है।
इसका सही कारण जानना फर्टिलिटी ट्रीटमेंट में काफी मददगार हो सकता है।
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सेकेंडरी इनफर्टिलिटी क्या होती है?
Secondary Infertility: सेकेंडरी इनफर्टिलिटी तब होती है जब किसी महिला को पहला बच्चा सामान्य रूप से हो जाता है, लेकिन दूसरे बच्चे के लिए गर्भधारण में दिक्कत आती है।
इसके पीछे पेल्विक इंफेक्शन, हार्मोनल इंबैलेंस, स्कार टिशू और कई बार सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन भी कारण हो सकते हैं।
उम्र का असर और ओवेरियन रिजर्व की गिरावट
Secondary Infertility: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, खासकर 35 के बाद, महिलाओं के एग्स की क्वालिटी और संख्या तेजी से घटती है।
इससे नेचुरल प्रेग्नेंसी की संभावना भी कम हो जाती है।
Secondary Infertility: पेल्विक इन्फेक्शन, सर्जरी या STD के कारण बनने वाले स्कार टिशू फैलोपियन ट्यूब्स को ब्लॉक कर सकते हैं, जिससे फर्टिलाइजेशन संभव नहीं हो पाता।
हार्मोनल और ओव्यूलेशन डिसऑर्डर्स
कई बार हार्मोनल असंतुलन ओव्यूलेशन को रोक देता है।
क्लोमिड जैसी दवाएं ओव्यूलेशन को शुरू करने में मदद करती हैं, लेकिन यह डॉक्टर की निगरानी में ही होनी चाहिए।
यूटराइन समस्याएं और एंडोमेट्रियोसिस
Secondary Infertility: यूटरस की खराब लाइनिंग और एंडोमेट्रियोसिस से एग्स ठीक से इंप्लांट नहीं हो पाते।
समय रहते इलाज करवाना जरूरी है।
मेल इनफर्टिलिटी को न करें नज़रअंदाज़
Secondary Infertility: कम स्पर्म काउंट, प्रोस्टेट की समस्या या वैरिकोसेल जैसे कारण पुरुषों में इनफर्टिलिटी ला सकते हैं।
सीमन एनालिसिस से इनका जल्दी पता लगाया जा सकता है।
लाइफस्टाइल और वज़न का असर
ओबेसिटी, शराब, धूम्रपान और टॉक्सिन्स से हार्मोनल बैलेंस बिगड़ सकता है।
हेल्दी वज़न और लाइफस्टाइल से सेकेंडरी इनफर्टिलिटी में काफी सुधार हो सकता है।
स्ट्रेस और इमोशनल हेल्थ की भूमिका
Secondary Infertility: तनाव से रिप्रोडक्टिव हार्मोन प्रभावित होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक जांच।
अन्य मेडिकल स्थितियां जैसे थायरॉयड और डायबिटीज
थायरॉयड और डायबिटीज जैसी स्थितियां गुपचुप तरीके से फर्टिलिटी को प्रभावित कर सकती हैं।
रेगुलर हेल्थ चेकअप से इन्हें कंट्रोल में रखा जा सकता है।