करुणानिधि
तमिलनाडु सरकार की याचिका खारिज, तिरुनेलवेली के बाजार में लगनी थी प्रतिमा
तमिलनाडु की डीएमके सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री और द्रमुक के दिग्गज नेता दिवंगत एम. करुणानिधि की प्रतिमा सार्वजनिक धन से लगवाने की अनुमति माँगी थी।
लेकिन उच्चतम न्यायालय ने 22 सितंबर 2025 को इस याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कहा कि किसी भी राजनीतिक नेता की व्यक्तिगत महिमा के लिए करदाताओं के पैसे का उपयोग नहीं किया जा सकता।
कहाँ लगनी थी प्रतिमा
सरकार की ओर से यह प्रस्ताव रखा गया था कि तिरुनेलवेली जिले के वलियूर डेली वेजिटेबल मार्केट के मुख्य द्वार पर करुणानिधि की एक ब्रॉन्ज मूर्ति और नाम पट्टिका स्थापित की जाए। इस हेतु सरकारी खजाने से खर्च वहन करने की तैयारी थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी की। अदालत ने पूछा,
“किसी नेता की स्मृति या सम्मान में प्रतिमा लगाने से हमें आपत्ति नहीं है। लेकिन जब यह काम पब्लिक मनी से किया जाएगा, तब सवाल उठेंगे। आखिर आम जनता के पैसे का इस्तेमाल केवल नेताओं की महिमा गान के लिए क्यों होना चाहिए?”
पीठ ने आगे कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की पहली जिम्मेदारी जनता के हित में खर्च करना है, न कि किसी विशेष दल या नेता के प्रचार में।
सरकार का पक्ष
तमिलनाडु सरकार ने दलील दी थी कि करुणानिधि राज्य के पाँच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उन्होंने सामाजिक न्याय तथा क्षेत्रीय पहचान के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं।
इसलिए उनकी स्मृति में सार्वजनिक स्थल पर प्रतिमा लगाना राज्य के इतिहास और जनता की भावनाओं से जुड़ा हुआ कदम है।
लेकिन अदालत ने इसे स्वीकार नहीं किया और साफ़ कहा कि यदि दल या परिवार चाहे तो अपनी पार्टी फंड अथवा निजी संसाधनों से मूर्ति स्थापित कर सकता है, लेकिन सार्वजनिक धन का उपयोग अनुचित है।
राजनीतिक सन्दर्भ
डीएमके प्रमुख रहे करुणानिधि तमिलनाडु की राजनीति में दशकों तक केंद्र में रहे। उनके निधन के बाद से द्रमुक सरकार लगातार उनकी विरासत को संरक्षित और प्रचारित करने के लिए कदम उठा रही है।
विपक्षी दल एआईएडीएमके और भाजपा पहले से ही सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह “राजनीतिक पूंजी बनाने” के लिए सरकारी खजाने का दुरुपयोग कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले ने विपक्ष को और बल प्रदान किया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि जनता के पैसों का इस्तेमाल केवल लोकहित और विकास कार्यों के लिए होना चाहिए।
व्यक्तिगत नेताओं की स्मृति या महिमा के लिए नहीं। इस फैसले ने तमिलनाडु सरकार को झटका देकर अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल कायम की है, ताकि राजनीतिक प्रतीकों और सार्वजनिक संसाधनों के बीच स्पष्ट दूरी बनी रहे।