Sambhal Controversy: संभल, उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा शहर, अब एक बड़े विवाद का केंद्र बन चुका है। यहां की प्रसिद्ध शाही जामा मस्जिद, जिसे एक समय श्री हरिहर मंदिर माना जाता था, के मुद्दे ने अब कानूनी रूप ले लिया है। यह मामला कोर्ट तक पहुंच चुका है, और पिछले रविवार को कोर्ट के आदेश पर मस्जिद के सर्वे के दौरान पत्थरबाजी हुई। इस दौरान विशेष समुदाय की भीड़ ने पुलिस पर हमला किया, और खबरें यह भी हैं कि उन्होंने पुलिस से हथियार छीनने की कोशिश की, यहां तक कि पुलिस को जान से मारने की भी कोशिश की।
कई लोग यह दावा करते हैं कि यह वही मंदिर है जहां भगवान विष्णु के आखिरी अवतार, कल्कि का जन्म होगा। इस कारण हिंदू समुदाय का कहना है कि किसी भी हाल में उन्हें इस मस्जिद को गिराकर श्री हरिहर मंदिर का पुनर्निर्माण करना है। दूसरी ओर, विशेष समुदाय के लिए यह मस्जिद अत्यधिक महत्व रखती है, और वे इसे इस तरह से खोने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि दोनों समुदायों के बीच एक बार फिर विवाद और संघर्ष उत्पन्न हो गया है।
इतिहासकार मीनाक्षी जैन ने क्या बताया
Sambhal Controversy: हिस्टोरियन मिनाक्षी जैन ने बताया कि बाबर ने जो दूसरी मस्जिद बनवाई थी, वह संभल में थी। उन्होंने यह मस्जिद उस मंदिर को तोड़कर बनाई, जो हिंदू पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के अंत में अवतार कल्कि के जन्म स्थान के रूप में जाना जाता था। बाबर के आदेश पर इस मस्जिद का निर्माण हुआ, और मस्जिद के इनस्क्रिप्शन से यह स्पष्ट होता है कि यह बाबर के आदेश पर बनाई गई थी। इसके साथ ही, वहां मंदिर के अवशेष भी अब भी देखे जा सकते हैं।
पहले भी हुआ था ASI सर्वे
भारत सरकार के पुरातत्व विभाग, ASI की 1879 की रिपोर्ट में भी इस स्थल के हिंदू मंदिर होने के सबूत मिले हैं। यह रिपोर्ट ए.सी.एल. कार्लाइल द्वारा तैयार की गई थी और “Tours in the Central Doab and Gorakhpur 1874-1875 and 1875-1876” शीर्षक से प्रकाशित हुई थी।
Sambhal Controversy: ASI के सर्वेक्षण में और भी कई ऐसे प्रमाण मिले हैं, जो जामा मस्जिद के हिंदू मंदिर होने का इशारा करते हैं। ASI के अनुसार, मस्जिद का गुंबद हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शासनकाल में पुनर्निर्मित किया गया था। संभल को राजा पृथ्वीराज चौहान की राजधानी माना जाता है, और यह स्थान राजा पृथ्वीराज और कन्नौज के राजा जयचंद की प्रसिद्ध कहानी से जुड़ा है। कहा जाता है कि राजा पृथ्वीराज ने जयचंद की बेटी संयोगिता को बंदी बना लिया था और उसके बाद जयचंद के योद्धा आल्हा, ऊदल और मलखान सिंह संयोगिता का पता लगाने के लिए नटों का रूप धारण करके संभल पहुंचे थे।
संभल के बीचों-बीच स्थित है ये जामा मस्जिद
Sambhal Controversy: जामा मस्जिद संभल शहर के केंद्र में स्थित है। मस्जिद के बाहरी इलाके को “कोट” कहा जाता है, जिसे हिंदू और मुस्लिम समुदाय अलग-अलग नामों से पहचानते हैं। हिंदू इसे ‘कोट पूरवी’ (East) और मुस्लिम इसे ‘कोट ग़रभी’ (West) कहते हैं। स्थानीय लोग इसे मजाक में ‘इंडिया-पाकिस्तान बॉर्डर’ भी कहते हैं। मस्जिद के बाहर स्थित गली, जिसे ‘पोस्ट ऑफिस रोड’ कहा जाता है, मुख्य रूप से हिंदू बहुल है। इस गली के अंत में एक पुलिस चौकी भी है। हालांकि, 2011 की जनगणना के अनुसार, पूरे संभल में हिंदू समुदाय की आबादी केवल 22% है, और कोट इलाके में यह 10% तक सिमट चुकी है।
पत्रकार स्वाति ने संभल में क्या पाया, जानिये
यहां की मस्जिद को ‘शाही जामा मस्जिद’ कहा जाता है, जबकि हिंदू इसे ‘श्री हरिहर मंदिर’ के रूप में पहचानते हैं। यह बात पहले सोशल मीडिया तक ही सीमित थी, लेकिन हाल ही में एक पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा ने इस मामले की गहराई तक जाने के लिए संभल में ग्राउंड रिपोर्टिंग की। स्वाति ने स्थानीय लोगों से बात की और पता चला कि हर हिंदू स्थानीय व्यक्ति ने इस प्रॉपर्टी को ‘श्री हरिहर मंदिर’ के नाम से पहचाना।
स्वाति की रिपोर्ट में 66 वर्षीय अनिल टंडन, ने बताया कि उनका जन्म कोट पूर्वी में पैदा हुआ था, ने बताया कि उनके परिवार ने हमेशा इस स्थान को ‘हरि हर मंदिर’ के नाम से ही जाना। उन्होंने यह भी बताया कि जब वह 8 साल के थे, तो अपने रिश्तेदारों के साथ यहां गए थे और उस समय वहाँ एक बंद कमरा और कुआं भी था।
वहीं, अरविंद अरोड़ा ने बताया वो पार्टीशन के समय पकिस्तान से यहां आकर बस गए, और तब से अब तक उन्होंने भी इसे हरिहर मंदिर के नाम से ही सुना।” आगे उन्होनें ये भी बताया की सालों से यहां पर माहौल ख़राब होता जा रहा है, खासकर जनसँख्या में बड़ा बदलाव हुआ है जिसकी वजह से पार्टीशन के समय यहां आकर बसे परिवार अब क्षेत्र छोड़कर जाते जा रहे हैं।
एक 90 वर्षीय मुनी देवी ने याद किया कि मस्जिद के सामने स्थित कुएं का उपयोग वह अपने बच्चों के कुआं पूजन जैसे धार्मिक अनुष्ठानों के लिए करती थीं। लेकिन बाद में मस्जिद के प्रबंधकों ने उस कुएं को ढक दिया और उस पर दीवार बना दी, और आधे हिस्से को मस्जिद में बदल दिया।
कमल गंभीर, ने बताया कि उनका परिवार मुलतान से आया था, और उन्होनें भी भी इस स्थान को हरि हर मंदिर माना, लेकिन उन्होंने वो इसका विरोध करने से कतराते हैं, क्योंकि इससे हिंसा, कर्फ्यू, इंटरनेट बंदी और व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
एक अन्य 57 वर्षीय निवासी ने बताया कि यहां कभी ASI का एक पट्ट भी था, जिसे अब हटा दिया गया है। 1875-76 के ASI सर्वे में यह दर्ज किया गया था कि यह मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनाई गई थी।
रविवार को पत्थरबाजी के बाद, ‘कोट ग़रभी’ क्षेत्र लगभग खाली हो गया है। पुलिस अब फुटेज के जरिए पत्थरबाजों की पहचान करने में जुटी है। स्वाति गोयल शर्मा की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू समुदाय यहां खुद को अल्पसंख्यक महसूस करता है।
स्वाति की ग्राउंड रिपोर्ट और अन्य सबूत यह संकेत देते हैं कि इस जगह पर कभी कोई मंदिर हुआ करता था, और विवाद अब और भी गहरा चुका है। अब देखना होगा कि कोर्ट का इस पर क्या रुख रहता है और वो दोनों पक्षों के बीच कैसे बिना पक्षपात करे फैसला लेती है।