रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान पर लंबी बातचीत की।
मैक्रो ने अपने पोस्ट में लिखा कि युद्ध रोकने के लिए मित्र देशों के साथ चल रहे प्रयासों की जानकारी उन्होंने मोदी को दी। भारत को उन्होंने “स्ट्रेटजिक पार्टनर” भी कहा।
पिछले बीस दिनों में यह दूसरा मौका है जब भारत और फ्रांस ने उच्च स्तर पर संवाद किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान का रास्ता भारत की कूटनीति से ही होकर गुजरता है और मोदी इस दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
ट्रम्प पर अविश्वास और रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को जानकारी मिली कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प युद्ध के बीच यूक्रेन की जमीन रूस के साथ बांटने की साजिश रच रहे थे।
इसके बाद अमेरिका का यूक्रेन पर नैतिक नियंत्रण लगभग समाप्त हो गया और रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई।
जेलेंस्की अब ट्रम्प पर भरोसा नहीं करते और यही कारण है कि उनके मध्यस्थता प्रयास विफल हो रहे हैं।
यूरोप और यूक्रेन को विश्वास है कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान के लिए भारत और प्रधानमंत्री मोदी ही निर्णायक हो सकते हैं।
रूस-यूक्रेन शांति वार्ता में मोदी की कूटनीति
यूरोप के नेताओं का मानना है कि यदि कोई एक नेता है जो पुतिन के सामने पश्चिमी यूरोप का पक्ष रख सकता है तो वह नरेंद्र मोदी हैं।
रूस-यूक्रेन शांति वार्ता की संभावनाएं भारत की कूटनीति से जुड़ी हैं। इसी वजह से जेलेंस्की से लेकर यूरोपियन राष्ट्राध्यक्ष भारत से लगातार संपर्क में हैं।
भारत रूस से प्रत्यक्ष और यूक्रेन से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों तरह से संवाद कर रहा है। यही कारण है कि रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान में भारत का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है।

नाटो की नीति और रूस की तैयारी
रूस-यूक्रेन युद्ध का मूल कारण अमेरिका और नाटो की रणनीति मानी जा रही है।
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (नाटो) का प्रभाव एशिया तक बढ़ा और रूस को घेरने का प्रयास किया गया। लेकिन रूस ने इतिहास से सबक लेकर युद्ध की तैयारी पहले ही कर ली थी।
रूस की लंबे युद्ध लड़ने की परंपरा और सतर्क रणनीति ने उसे अमेरिका की मंशा पहचानने में मदद की। इसी वजह से रूस ने संघर्ष को स्वीकार कर लिया और रूस-यूक्रेन युद्ध लंबा खिंचता चला गया।
थके हुए अमेरिका-यूरोप और अधूरा समाधान
अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने रूस को अलग-थलग करने की कोशिश की लेकिन लंबा युद्ध और आर्थिक बोझ उन्हें थका चुका है। अब दोनों पक्ष युद्ध को किसी समझौते से समाप्त करना चाहते हैं।
समस्या यह है कि रूस और यूक्रेन युद्ध समाधान में दोनों पक्षों की मांगें अलग-अलग हैं। यही वजह है कि अब तक शांति समझौते की राह आसान नहीं हो पाई है।
रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान में भारत की निर्णायक भूमिका
भारत दोनों पक्षों से संवाद कर रहा है। रूस के साथ प्रत्यक्ष संबंध और यूक्रेन से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बातचीत भारत को इस संघर्ष का अनोखा मध्यस्थ बना रही है।
मोदी की कूटनीति से जल्द ही सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद की जा रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि इस युद्ध के बाद अमेरिका न तो रूस को अपने पाले में रख पाएगा और न ही यूक्रेन को।
इसके विपरीत भारत दोनों पक्षों से संबंध मजबूत कर रूस-यूक्रेन युद्ध समाधान में वैश्विक नेतृत्व की नई ऊंचाई हासिल करेगा।